गुजरात में करदा प्रथा: किसानों के लिए खतरे की घंटी
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,13 अक्टूबर 2025 – गुजरात में किसानों की स्थिति लगातार चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है. आज, आम आदमी पार्टी (AAP) ने ट्वीट के माध्यम से यह बताया कि राज्य में बीजेपी की सरकार ने एक कुप्रथा, जिसे करदा प्रथा कहा जाता है, को लागू किया है. इस प्रथा के तहत किसानों को मजबूर किया जाता है कि वे अपनी फसल या तो कम दामों पर बेचें या फिर अपनी फसल उठाकर घर ले के जाओ.
किसानों के अनुसार, यह प्रथा उनके लिए गंभीर आर्थिक संकट का कारण बन रहा है. उनकी मेहनत की कमाई पर अवैध नियंत्रण लगाया जा रहा है और उन्हें मजबूरी में बाजार के निहित मूल्य से बहुत कम दाम पर अपनी फसल को बेचना पड़ रहा है.
बोटाद मंडी में किसानों की शांतिपूर्ण आवाज
10 अक्टूबर को बोटाद मंडी में किसानों ने इस अन्याय के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया. उनका उद्देश्य था कि मंडी समिति और स्थानीय प्रशासन तक अपनी समस्याएँ पहुँचाया जाये और उचित समाधान निकाला जाए.
हालाँकि, मंडी समिति ने किसानों की आवाज़ सुनने से इंकार कर दिया. AAP के अनुसार, यह कदम BJP सरकार के इशारे पर उठाया गया था, जिससे किसानों के अधिकारों का उल्लंघन हुआ.
किसानों का कहना है कि उन्हें लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है. उन्हें अपने हितों की रक्षा के लिए कोई वैध मंच नहीं दिया जा रहा है.
करदा प्रथा के प्रभाव
करदा प्रथा के कारण किसानों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
कम दाम पर फसल बेचने की मजबूरी – किसान अपनी मेहनत की पूरी कीमत नहीं पा रहे हैं.
आर्थिक नुकसान – किसान उत्पादन लागत और जीवन यापन के खर्चों को पूरा करने में असमर्थ हो रहा हैं.
मानसिक दबाव – आर्थिक असुरक्षा और प्रशासनिक दबाव किसानों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल रहा हैं.
स्थानीय मंडियों में नियंत्रण – मंडी समितियाँ और स्थानीय व्यापारी किसानों की फसल के दामों और बिक्री पर अनुचित नियंत्रण रखता हैं.
इस प्रकार, यह प्रथा केवल आर्थिक संकट ही नहीं, बल्कि किसानों के सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन गया है.
AAP की प्रतिक्रिया
AAP ने इस मामले में तुरंत प्रतिक्रिया दिया. पार्टी के नेता गोपाल राय ने ट्वीट करते हुए कहा कि गुजरात की बीजेपी सरकार किसानों के अधिकारों का हनन कर रहा है.
उन्होंने स्पष्ट किया कि यह केवल एक स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि पूरे राज्य के किसानों के लिए चेतावनी है.AAP ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वे किसानों की आवाज़ दबाने के लिए प्रशासन का दुरुपयोग कर रहे हैं.
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समाधान की आवश्यकता
किसानों की स्थिति को देखते हुए निम्नलिखित कदम उठाना आवश्यक है
मंडी समितियों का पारदर्शी संचालन – किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिले.
सरकारी हस्तक्षेप – राज्य सरकार को किसानों की शिकायतों पर ध्यान देना चाहिये.
शांतिपूर्ण संवाद – किसानों और मंडी समितियों के बीच संवाद स्थापित किया जाये.
सकारात्मक नीतियाँ – कृषि उपज के मूल्य को सुनिश्चित करने के लिए उचित नीतियाँ लागू की जाये.
यदि ये कदम उठाए गए, तो किसान न केवल आर्थिक सुरक्षा महसूस करेंगे, बल्कि उनका जीवन स्तर भी सुधरेगा.
निष्कर्ष
गुजरात में करदा प्रथा एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जो किसानों के आर्थिक और सामाजिक हितों के लिए खतरा है.10 अक्टूबर को बोटाद मंडी में हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसान अब अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने से नहीं डर रहे.
AAP ने इस मुद्दे को उजागर करते हुए सरकार पर आरोप लगाया कि वे किसानों के खिलाफ दमनकारी नीतियाँ लागू कर रहे हैं. इसे नजरअंदाज करना राज्य और देश के कृषि क्षेत्र के लिए गंभीर संकेत है.
यह समय है कि सरकार किसानों की समस्याओं को गंभीरता से सुने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाये. नहीं तो यह अन्याय केवल किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए खतरे की घंटी बन सकता है.
मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.



















