हवाई चप्पल वालों का सपना टूटा – अब उड़ान सिर्फ अमीरों की!
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, १६ अक्टूबर 2025 — त्योहारों का मौसम आते ही देश की जनता एक तरफ खुशियों की तैयारी में जुट जाती है, तो दूसरी ओर महँगाई का भूत उनके बजट को निगलने लगता है.इसी बीच, भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस पुराने बयान की याद दिलाई जिसमें उन्होंने कहा था,
मैं हवाई चप्पल पहनने वालों को हवाई जहाज़ में बैठते देखना चाहता हूँ.
लेकिन आज, वास्तविकता इससे कोसों दूर दिखती है.
आसमान छूते हवाई किराए और जनता की जेब पर डकैती
चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने पोस्ट में कहा कि दिल्ली से लखनऊ जैसी छोटी दूरी की फ्लाइट टिकटें भी आसमान छू रही हैं. उन्होंने बताया कि 18 अक्टूबर से दो दिन पहले तक जो टिकट ₹3,000 से ₹4,000 में मिल रहा था, वही 18 अक्टूबर को ₹15,000 का हो गया है — और 24 तारीख के बाद वही टिकट फिर से ₹3,000-₹4,000 का.
यह अचानक बढ़ा हुआ किराया किसी ‘तकनीकी कारण’ का नतीजा नहीं बल्कि, उनके शब्दों में,
मिडिल क्लास और गरीब मेहनतकश परिवारों की जेब पर खुली डकैती है.
यह आरोप केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि एक वास्तविकता को उजागर करता है जिसे आम नागरिक हर दिन झेल रहे हैं — बढ़ती उड़ान कीमतें, सीमित विकल्प, और त्योहारी सीजन में बढ़ता आर्थिक बोझ.
त्योहारी सीजन में जनता की कमाई पर लूट
भारत में दीपावली, दशहरा, छठ जैसे त्योहारों पर देशभर में यात्रियों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है.इन अवसरों पर एयरलाइंस टिकटों की कीमतें डायनामिक प्राइसिंग के नाम पर बढ़ा देती हैं.लेकिन सवाल यह है कि,
क्या सरकार ने कभी यह सोचा कि इन ऊँची कीमतों से आम परिवारों का क्या हाल होता है?
चंद्रशेखर आज़ाद ने इस पर सवाल उठाया है कि जब केंद्र सरकार गरीबों को हवाई यात्रा का सपना दिखाती है, तो फिर उन्हीं के त्योहारों पर किराए क्यों दोगुने-तीन गुने हो जाते हैं?
वो भी हिंदू धर्म के धार्मिक त्योहारों के अवसर पर, मेहनतकश लोगों की गाढ़ी कमाई की लूट — ऐसे में केंद्रीय नागर विमानन मंत्री को जवाब देना चाहिये.
क्या यह उड़ान योजना की विफलता है?
मोदी सरकार ने साल 2016 में उड़ान योजना,की शुरुआत की थी ताकि देश के आम नागरिक सस्ते में हवाई सफर कर सकें.
लेकिन आज, स्थिति यह है कि आम आदमी हवाई अड्डे के पास जाने से पहले ही टिकट का दाम सुनकर पीछे हट जाता है.
सवाल यह उठता है कि,
क्या उड़ान योजना अब केवल कागज़ों तक सीमित रह गई है?
क्या एयरलाइंस को इस तरह जनता की जेब पर बोझ डालने की छूट दी जा रही है?
क्या सरकार इस महँगाई पर नियंत्रण खो चुकी है?
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जनता के हक़ की आवाज – चंद्रशेखर आज़ाद
भीम आर्मी प्रमुख का यह बयान केवल टिकट दामों पर टिप्पणी नहीं, बल्कि व्यापक आर्थिक असमानता पर प्रहार है. उनका कहना है कि देश की आर्थिक नीतियाँ अब केवल अमीरों के पक्ष में झुकी हुई हैं, जबकि गरीब और मिडिल क्लास परिवार हर फैसले की कीमत चुका रहा हैं.
उन्होंने सवाल उठाया कि जो सरकार गरीब कल्याण की बात करती है, वह त्योहारों के मौके पर गरीबों की जेब क्यों खाली करवा रही है?
हवाई चप्पल पहनने वाले को आसमान दिखाने का वादा किया गया था
लेकिन अब उसी के पंख महँगाई ने काट दिए हैं.
जनता की उम्मीदें और सरकार की जिम्मेदारी
भारत जैसे देश में हवाई यात्रा अब लक्ज़री नहीं रही — बल्कि, यह ज़रूरत बन चुकी है. काम, पढ़ाई, इलाज, और पारिवारिक कारणों से लाखों लोग सफर करते हैं.ऐसे में सरकार का यह कर्तव्य बनता है कि वह एयर किरायों पर नियंत्रण और पारदर्शिता सुनिश्चित करे.
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार चाहे तो एयरलाइंस से किराए की सीलिंग लिमिट तय करवा सकती है, जिससे त्योहारों या इमरजेंसी के समय जनता को लूटा न जाए.
निष्कर्ष
चंद्रशेखर आज़ाद का यह बयान केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी है — कि अगर व्यवस्था आम जनता के हित में नहीं है, तो लोकतंत्र का असली मकसद खो जाता है.
त्योहारों के मौसम में जब हर भारतीय अपने परिवार के साथ खुशियाँ बाँटना चाहता है, तब महँगाई और मनमानी किराया नीति उनकी उम्मीदों पर पानी फेर देती है.
सवाल अब यह नहीं कि हवाई चप्पल पहनने वाला आसमान में उड़ेगा या नहीं — सवाल यह है कि क्या सरकार उसे उड़ने देगी भी या नहीं?
मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.



















