निषाद समाज की दस्तक: क्या 2025 में सत्ता के समीकरण बदलेंगे?

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Kumar Ranjit

बिहार
निषाद समाज की दस्तक: क्या 2025 में सत्ता के समीकरण बदलेंगे?

सामाजिक न्याय और हक की लड़ाई से राजनीतिक क्रांति की ओर

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 22 जुलाई: बिहार की राजनीति में आगामी 2025 विधानसभा चुनाव एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है.और इस बार सियासी चर्चाओं के केंद्र में है निषाद समाज.एक ऐसा समुदाय जो वर्षों से अपने हक, प्रतिनिधित्व और सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकारों की मांग करता रहा है..इस समुदाय की उम्मीदों को नया बल मिला है विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुखिया और निषाद समाज के प्रमुख नेता मुकेश साहनी के उस बयान से, जिसमें उन्होंने महागठबंधन के साथ मिलकर 2025 में सरकार बनाने का संकल्प जताया है.

क्यों है निषाद समाज इतना महत्वपूर्ण?

बिहार में निषाद समाज की आबादी 14% से अधिक माना जाता है जो इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद अहम बनाता है. पारंपरिक रूप से जल संसाधनों और मछली पालन से जुड़ा यह समुदाय लंबे समय से सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित महसूस करता रहा है.यही कारण है कि यह समुदाय अब अपने मुद्दों पर केंद्रित राजनीति की मांग कर रहा है.

वीआईपी की रणनीति और महागठबंधन के साथ सहभागिता

वीआईपी प्रमुख मुकेश साहनी ने अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) पोस्ट में स्पष्ट रूप से कहा कि,

“निषाद समाज को सदियों तक उसके हक से वंचित रखा गया है. 2025 में महागठबंधन की सरकार के साथ हम सुनिश्चित करेंगे कि हमारी आवाज सुनी जाए और हमारे अधिकार मिलें.

मुकेश साहनी का यह बयान सिर्फ चुनावी घोषणा नहीं है.बल्कि एक रणनीतिक सन्देश है. जिसमें वीआईपी अपनी भूमिका को महागठबंधन के भीतर एक निर्णायक शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है. एनडीए के मुकाबले महागठबंधन को मजबूत करना और हाशिए पर रहे समुदायों को राजनीतिक मंझधार में लाना. इस गठबंधन की व्यापक रणनीति का एक हिस्सा है.

प्रमुख मुद्दे: अधिकार, प्रतिनिधित्व और बुनियादी ढांचा

मुकेश साहनी और निषाद समाज की अन्य आवाजें सिर्फ प्रतिनिधित्व की बात नहीं कर रहा हैं वह आर्थिक और सांस्कृतिक पहचान की बहाली पर भी जोर दे रहा हैं. कुछ मुख्य मांगें इस प्रकार हैं.

अनुसूचित जाति (SC) में शामिल करने की मांग: निषाद समाज को अब तक पिछड़ा वर्ग (OBC) में रखा गया है. समाज की मांग है कि उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाए ताकि उन्हें आरक्षण और सरकारी योजनाओं का व्यापक लाभ मिल सके.

मछली पालन के अधिकार: समुदाय की पारंपरिक आजीविका मछली पालन को कानूनी संरक्षण और व्यावसायिक अवसरों के रूप में विकसित करना. जैसे कि मत्स्य मंडियों (फिश मार्केट) की स्थापना.

जल संसाधनों पर नियंत्रण: पारंपरिक तालाबों, पोखरों और नदियों को अतिक्रमण से बचाना और इन्हें निषाद समुदाय को सौंपना.

शिक्षा और रोजगार में हिस्सेदारी: शिक्षा तक बेहतर पहुंच, छात्रवृत्तियाँ, और स्किल डेवलपमेंट की मांग जो समुदाय के युवाओं को मुख्यधारा में ला सके.

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राजनीतिक विश्लेषण: वोटबैंक से सत्ता के केंद्र तक

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि निषाद समाज का वोटबैंक अगर संगठित रूप से महागठबंधन के पक्ष में जाता है. तो यह पूरे चुनावी नतीजों को पलट सकता है. विशेष रूप से सीमांचल, मिथिलांचल और मगध क्षेत्रों में यह समुदाय निर्णायक भूमिका निभा सकता है.

वीआईपी का एक बार फिर से महागठबंधन से जुड़ना इस चुनाव में विपक्ष को मजबूती देगा. खासकर तब जब एनडीए को दलित-पिछड़ा वोटबैंक में सेंध लगने की आशंका है.

सामाजिक सशक्तिकरण की राजनीति – एक नया विमर्श

2025 का बिहार विधान सभा का चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं. बल्कि सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व के नए विमर्श का चुनाव बनता जा रहा है. मुकेश साहनी की राजनीति अब केवल जाति की राजनीति नहीं है.बल्कि यह एक हाशिए पर पड़े समुदाय का सामूहिक सामाजिक चेतना को राजनीति में परिवर्तित करने की कोशिश है.

निष्कर्ष: क्या बदलेगी बिहार की राजनीति की धारा?

निष्कर्ष: क्या बदलेगी बिहार की राजनीति की धारा?
अगर महागठबंधन निषाद समाज की आकांक्षाओं को वास्तविक योजना और नीति में बदलने का भरोसा दे पाया.तो वीआईपी की भूमिका सिर्फ एक सहयोगी दल की नहीं. बल्कि सत्ता निर्माण की धुरी बन सकता है.

2025 के चुनावों में निषाद समाज की एकजुटता और वीआईपी की सक्रियता बिहार की राजनीतिक कहानी का केंद्र बन सकता है. और यह कहानी सिर्फ सत्ता की नहीं सामाजिक सम्मान और भागीदारी का भी होगा.

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