राज्य कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की खुद कीचड़ में उतरकर धान रोपने लगीं

| BY

Ajit Kumar

झारखण्ड
राज्य कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की खुद कीचड़ में उतरकर धान रोपने लगीं

पहली बारिश, पहली हंसी: झारखंड में धान रोपनी का लोकपर्व शुरू

तीसरा पक्ष ब्यूरो रांची, 19 जुलाई 2025 – झारखंड की धरती एक बार फिर हरियाली से ढकने लगी है क्योंकि राज्य भर में धान रोपनी का मौसम पूरे उत्साह और पारंपरिक उल्लास के साथ आरंभ हो चुका है.यह वह समय है जब न केवल खेतों में नई जिंदगी डाली जाती है. बल्कि गांवों में सामाजिक एकजुटता, सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं की भी पुनः स्थापना होती है.

राज्य कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की खुद कीचड़ में उतरकर धान रोपने लगीं

राज्य की कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने इस पारंपरिक कृषि उत्सव में भाग लेकर राज्य के किसानों और कृषि परंपरा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई.
उन्होंने चान्हो ब्लॉक के रघुनाथपुर गांव में स्थानीय महिला किसानों के साथ धान कि रोपाई किया. जहाँ लोकगीतों की गूंज और मिट्टी की खुशबू ने एक जीवंत वातावरण रच दिया.

धरती की बेटी की भावनात्मक अभिव्यक्ति

मंत्री तिर्की ने 18 जुलाई को सोशल मीडिया मंच एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक भावुक पोस्ट साझा किया. जिसमें उन्होंने लिखा कि :

झारखंड में धान रोपनी के समय एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि इस बार भी झारखंड के खेत धान की फसल से लहलहाएं, ताकि हमारे किसानों के चेहरों की चमक बनी रहे.

उन्होंने खुद को “इस धरती की बेटी” कहते हुए खेती में भाग लेना अपना गर्व बताया. जिससे यह संदेश गया कि नेतृत्व अगर धरातल पर हो तो नीति और नीयत दोनों में दम होता है.

खेतों में उतरीं मंत्री, दिल से जुड़ीं जमीनी हकीकत से

खेतों में उतरीं मंत्री, दिल से जुड़ीं जमीनी हकीकत से

राज्य कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की जब खुद चान्हो के रघुनाथपुर गांव में किसानों के साथ कीचड़ में उतरकर धान रोपने लगीं. तो यह महज एक फोटो-ऑप” नहीं. बल्कि मिट्टी से रिश्ते की पुनर्पुष्टि थी.उन्होंने कहा कि

मैं इस धरती की बेटी हूँ, और इसकी हर बूँद मेरे दिल से जुड़ी है.

उनकी मौजूदगी में खेतों में लोकगीतों की गूंज और महिलाओं की सजीव ऊर्जा ने यह स्पष्ट किया कि यह मौसम केवल बीज बोने का नहीं.उम्मीदें उगाने का भी है.

झारखंड की अर्थव्यवस्था में धान की भूमिका

झारखंड में धान की खेती खरीफ सीजन को रीढ़ माना जाता है.यहां लगभग 15 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की

खेती होता है. राज्य की भौगोलिक विविधता – उच्चभूमि, मध्यम और निचली भूमि इसे विभिन्न किस्मों की धान फसल के लिए उपयुक्त बनाती है.

राज्य की 78% ग्रामीण आबादी कृषि पर निर्भर है.

2024 में धान उत्पादन 3.7 लाख मीट्रिक टन रहा था.

इस वर्ष अच्छी मानसूनी बारिश की उम्मीद है, जिससे उत्पादन में वृद्धि संभव है.

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चुनौतियाँ भी कम नहीं…

हालांकि धान रोपनी का यह समय उमंग से भरा है. पर कुछ प्राकृतिक और तकनीकी चुनौतियाँ अभी भी सामने हैं.

झारखंड की खेती वर्षा पर निर्भर है. और मानसून की अनिश्चितता चिंता का कारण बन सकती है.

राज्य में मिट्टी अम्लीय (Acidic) प्रवृत्ति की है.जो फसल की गुणवत्ता पर असर डाल सकती है.

सीमित सिंचाई सुविधाएँ और परंपरागत बीजों पर निर्भरता भी उत्पादन को प्रभावित करती हैं.

सरकार की पहल और भविष्य की दिशा

कृषि विभाग और राज्य सरकार किसानों को समर्थन देने के लिए कई कदम उठा रही है.

हाइब्रिड धान की किस्मों को प्रोत्साहन.

सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं का विस्तार.

किसान प्रशिक्षण शिविर और कृषि मेला का आयोजन.

सहकारी समितियों के माध्यम से बीज और खाद का वितरण.

शिल्पी नेहा तिर्की का खुद खेत में उतरकर धान रोपाई में भाग लेना एक प्रेरणात्मक पहल है.जिससे न केवल किसानों का मनोबल बढ़ता है. बल्कि राज्य के युवाओं को भी कृषि के प्रति आकर्षण होता है.

परंपरा और लोकसंस्कृति की झलक

धान रोपनी केवल कृषि कार्य नहीं.बल्कि सांस्कृतिक उत्सव भी है. इस दौरान महिलाएं पारंपरिक “रोपनी गीत” गाती हैं. जो खेतों में ऊर्जा और सामूहिकता का संचार करते हैं. गांवों में यह समय मेल-मिलाप, सहयोग और खुशियों से भरा होता है.

लोकगीतों में बसी लोक-आस्था

धान रोपनी के समय खेतों में गूंजते लोकगीत सिर्फ गीत नहीं, संघर्ष, प्रेम और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का भाव हैं. महिलाएं “धान बोए ननदिया, झूमें रे खेतवा” जैसे पारंपरिक गीतों को गाकर काम को त्योहार बना देती हैं.

निष्कर्ष

झारखंड में धान रोपनी का यह समय केवल खेती का नहीं, बल्कि जीवन के उत्सव का प्रतीक है. जब खेतों में किसान अपने पसीने से फसल बोते हैं. तब यह स्पष्ट होता है कि असली समृद्धि जमीन से जुड़ी मेहनत में छिपी है. कृषि मंत्री का भागीदारी दिखाता है कि सरकार न केवल नीति बना रही है. बल्कि जमीनी स्तर पर साथ भी दे रही है.

जैसे-जैसे हरियाली खेतों में फैल रही है, झारखंड की मिट्टी एक बार फिर जीवन के गीत गा रही है – आशा, परिश्रम और परंपरा के गीत.

नोट :X पोस्ट: @ShilpiNehaTirki (18 जुलाई 2025),राज्य कृषि विभाग आंकड़े,स्थानीय समाचार रिपोर्ट्स

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