कर्ज नहीं रोजगार चाहिए!बिहार की महिलाओ की हुंकार से कांपी सत्ता

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kmSudha

बिहार
कर्ज नहीं रोजगार चाहिए!बिहार की महिलाओ की हुंकार से कांपी सत्ता

रोजगार या आत्महत्या? बिहार की महिलाएं पूछ रही हैं असली सवाल

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना :बिहार, जो देश के सबसे गरीब राज्यों में गिना जाता है. आज एक ऐसे संकट से जूझ रहा है जो न केवल आर्थिक है बल्कि सामाजिक और मानसिक भी है.कर्ज़ का संकट. कर्ज़, जिसे कभी ज़रूरत के समय का सहारा माना जाता था.आज लाखों गरीब महिलाओं के लिए एक असहनीय बोझ और आत्महत्या तक की वजह बन गया है.

कर्ज नहीं, रोजगार चाहिए!बिहार की महिलाओ की हुंकार से कांपी सत्ता

माइक्रोफाइनेंस कंपनियों द्वारा मनमाने ढंग से दिया गया ऋण, भारी ब्याज दरें और अमानवीय वसूली के तरीकों ने ग्रामीण समाज की रीढ़ कही जाने वाली महिलाओं को गहरे फंदे में जकड़ लिया है. इसी मुद्दे को लेकर 31 जुलाई 2025 को प्रेमचंद जयंती के अवसर पर पटना में कर्ज़ मुक्ति महिला सम्मेलन आयोजित किया गया.जहां महिलाओं का आक्रोश, पीड़ा और परिवर्तन की चाह एकजुट होकर उभरा है.

यह सम्मेलन सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं था. बल्कि एक नए जनांदोलन की शुरुआत बनकर उभरा है जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिक नेता और सबसे अहम, स्वयं पीड़ित महिलाएं ,अपनी आवाज़ लेकर सामने आईं. यह आवाज़ अब चुनावी गलियारों में गूंजने को तैयार है.आइये जानते है बिस्तार से,

रोजगार या आत्महत्या? बिहार की महिलाएं पूछ रही हैं असली सवाल

प्रेमचंद की धरती पर नया जनसंघर्ष

बिहार पटना 31 जुलाई को साहित्य और समाज की आवाज़ के प्रतीक प्रेमचंद की जयंती पर आज बिहार की राजधानी पटना में कुछ असाधारण हुआ. IMA हॉल में आयोजित ‘कर्ज़ मुक्ति महिला सम्मेलन में राज्यभर से हज़ारों कर्ज़ग्रस्त महिलाएं जुटीं.यह कोई औपचारिक कार्यक्रम नहीं था बल्कि आंसुओं, संघर्ष और संकल्पों से भरा जनमंच था जिसने बिहार में चुनावी हवा का रुख बदलने की संभावनाओं को जन्म दिया है .

कर्ज़: ज़रूरत से ज़ंजीर बनने की कहानी

जहाँ एक ओर कर्ज़ को आर्थिक सशक्तिकरण का साधन बताया जाता है तो वहीं हॉल में मौजूद महिलाओं के अनुभव कुछ और ही बयान कर रहे थे. कर्ज़, उनके लिए ज़रूरत से अधिक एक ऐसा फंदा बन चुका है. जिसने उनके परिवार, आजीविका और आत्मसम्मान को धीरे-धीरे नष्ट कर डाला है.

कई महिलाओं ने फूट-फूट कर बताया कि कैसे ब्याज चुकाने के बाद घर चलाना भी मुश्किल हो गया है.और बच्चों की पढ़ाई तक छूट गया है.कुछ ने बताया कि अपमानजनक वसूली और धमकियों के चलते वे गाँव तक छोड़ने पर मजबूर हो गया है.

कर्ज नहीं, शोषण है ये: दीपंकर भट्टाचार्य

कर्ज नहीं, शोषण है ये: दीपंकर भट्टाचार्य

भाकपा(माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने सम्मेलन में सरकार की नीतियों को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि लोगों को कर्ज के जाल में फँसाना अब एक रणनीति बन चुका है. ताकि वे अन्य मूलभूत सवालों से भटक जाये,आगे उन्होंने कहा कि ,

“जब जनता भूखी है नौजवान बेरोज़गार हैं और महिलाएं कर्ज से तबाह हैं तब सत्ता शिव चर्चा और SIR जैसे तमाशों में उलझी है”

दीपंकर ने चेतावनी दिया कि अब यह सवाल सिर्फ आर्थिक नहीं, राजनीतिक है. और इसे बिहार चुनाव 2025 का मुख्य मुद्दा बनाया जाएगा. उन्होंने 2004 के ‘इंडिया शाइनिंग’ के पतन के याद दिलाते हुए कहा कि कर्ज की राजनीति एक बार फिर सत्ताधारी गठबंधन को झटका दे सकता है.

दीपंकर भट्टाचार्य की हुंकार: “सुदखोर बिहार छोड़!”

सम्मेलन को संबोधित करते हुए भाकपा(माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने सरकार की मौजूदा नीतियों पर सीधा हमला बोला है.

यह नीतिगत रणनीति बन चुका है कि गरीबों को कर्ज़ में फंसाओ ताकि वे कोई और सवाल पूछ ही न सकें”

दीपंकर ने याद दिलाया कि किस तरह 2004 में किसानों की आत्महत्या और कर्ज़ के मुद्दे ने ‘इंडिया शाइनिंग’ के प्रचार को ध्वस्त कर दिया था.
उन्होंने चेतावनी दिया कि –

“आज बिहार उसी मोड़ पर खड़ा है. अगर यह आवाज़ गली-गली पहुंची, तो चुनावी नतीजे भी बदल सकते हैं”

उनका नारा अब जनआंदोलन बनता दिख रहा है:”सुदखोर बिहार छोड़, चुनाव चोर गद्दी छोड़!”

ज्यां ड्रेज की चेतावनी: बिना नियंत्रण की लूट

ज्यां ड्रेज की चेतावनी: बिना नियंत्रण की लूट

प्रख्यात अर्थशास्त्री ज्यां ड्रेज ने बताया कि माइक्रोफाइनेंस कंपनियां भारी ब्याज दरों पर बिना किसी निगरानी के कर्ज़ बांट रही हैं.

ब्याज पर ब्याज और फिर उस पर भी ब्याज लिया जा रहा है. RTI में भी इन कंपनियों की जानकारी नहीं मिलता है.यह पूरी व्यवस्था एक अंधेरी सुरंग बन चुकी है.

उन्होंने सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग किया है और उन्होंने चेताया कि यदि यह मॉडल ऐसे ही चलता रहा तो सामाजिक असंतोष विस्फोटक रूप ले सकता है.

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कर्ज़ अब मौत बन गया है – ज्यां ड्रेज

प्रख्यात अर्थशास्त्री ज्यां ड्रेज ने एक सच्चाई सामने रखी –“लोग ज़रूरत में कर्ज़ लेते हैं, लेकिन यह कर्ज़ जल्द ही जानलेवा जाल बन जाता है”

ड्रेज़ ने बताया कि माइक्रोफाइनेंस कंपनियां फर्जी नामों से बिना जवाबदेही के भारी ब्याज पर कर्ज़ दे रहा हैं.और इन पर कोई नियंत्रण नहीं.उन्होंने चेतावनी दिया कि ये कंपनियां बिहार और झारखंड में खुली लूट मचा रही हैं और सरकारें चुपचाप देख रही हैं.

मीना तिवारी का खुलासा: “49,500 करोड़ का कर्ज़ – किस कीमत पर?”

एपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने आंकड़ों के ज़रिए एक चौंकाने वाला सच सामन रखा.

  • 2020 में बिहार में कुल कर्ज़: ₹6,000 करोड़
  • 2023 तक यह बढ़कर: ₹49,500 करोड़
  • उन्होंने कहा कि ये कंपनियां महिलाओं के सशक्तिकरण के नाम पर दरअसल उनका आर्थिक और मानसिक शोषण कर रहा हैं.
  • ब्याज दरें 35% से 40% तक पहुंच चुकी हैं. ये शुद्ध महाजनी प्रथा की वापसी है – बस इस बार ‘डिजिटल’ लिबास में.”

कल्पना विल्सन की नीति पर चोट: “कर्ज़ नहीं, काम चाहिए”

अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री कल्पना विल्सन ने तीखे शब्दों में कहा कि,

महिलाओं को शिकारी कर्ज़ नहीं चाहिए. उन्हें स्थायी और सम्मानजनक रोज़गार चाहिए – जिससे वे खुद की परिवार की और समाज की रीढ़ बन सकें.”

नका कहना था कि महिलाओं के ‘सशक्तिकरण’ के नाम पर शुरू हुई ये योजनाएं अब उन्हें गुलामी की ओर धकेल रही हैं.

उनका सुझाव था कि सरकार को माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की लूट रोकनी चाहिए और रोजगारपरक योजनाओं में निवेश बढ़ाना चाहिए.

सम्मेलन से निकला संकल्प: पांच मांगें, एक आवाज

सम्मेलन में निम्नलिखित 5 प्रस्तावों को सर्वसम्मति से पारित किया गया

  • माइक्रोफाइनेंस कंपनियों पर सख़्त नियंत्रण और नया कानून
  • आत्महत्या करने वाले कर्ज़ पीड़ितों के परिवारों को ₹20 लाख का मुआवजा
  • महिलाओं को सरकारी बैंक से 2% ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना
  • जीविका समूह की महिलाओं को रोजगार और उत्पादों की सरकारी खरीद की गारंटी
  • जीविका योजना का ग्राम पंचायत स्तर पर सामाजिक अंकेक्षण और रिपोर्ट का सार्वजनिक प्रकाशन

जनसुनवाई और बूथ चलो अभियान की घोषणा

1 अगस्त से भाकपा (माले) द्वारा ‘बूथ चलो अभियान’ की शुरुआत की जाएगी.इसके तहत:

  • महिलाएं अपने नाम वोटर लिस्ट में चेक करेंगी
  • हर बूथ पर जनसुनवाई आयोजित होगी
  • और हर गांव में कर्ज़ के खिलाफ जागरूकता फैलाई जाएगी

इस आंदोलन का लक्ष्य साफ़ है – राजनीति को उन मुद्दों की ओर मोड़ना जो ज़मीन से उठते हैं, टीवी स्टूडियो से नहीं.

निष्कर्ष: क्या बिहार बदलेगा दिशा?

कर्ज़ का सवाल अब सिर्फ एक आर्थिक मुद्दा नहीं रहा. यह सम्मान, अस्तित्व और भविष्य का प्रश्न बन गया है. इस सम्मेलन ने बिहार में एक नये जनआंदोलन की नींव रख दी है. और यह लहर आने वाले चुनावों में असर डाल सकता है.इस सम्मेलन ने न केवल कर्ज़ के खिलाफ आवाज़ उठाई है बल्कि बिहार की राजनीति को एक नए मोड़ पर खड़ा कर दिया है.अब यह सिर्फ आर्थिक मुद्दा नहीं रहा अब एक चुनावी एजेंडा बनने जा रहा है.बिहार अब बोलेगा –
“कर्ज़ नहीं, इज़्ज़त और रोज़गार चाहिए!”

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