मनरेगा पर खर्च की कैची, खड़गे ने पूछा – गरीबों का क्या दोष?

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kmSudha

भारततीसरा पक्ष आलेख
मनरेगा पर खर्च की कैची, खड़गे ने पूछा – गरीबों का क्या दोष?

आधार-शर्तों से 7 करोड़ मजदूर बाहर, खड़गे बोले – ये किसका विकास मॉडल?

तीसरा पक्ष डेस्क,नई दिल्ली: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने केंद्र की मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला है. खड़गे ने आरोप लगाया कि सरकार गरीबों के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रही है और मनरेगा जैसी ज़रूरी योजना को जानबूझकर खत्म करने की कोशिश कर रही है.

खड़गे का तीखा प्रहार: मनरेगा की आत्मा को खत्म कर रही है सरकार

मनरेगा पर खर्च की कैची, खड़गे ने पूछा – गरीबों का क्या दोष?

खड़गे ने कहा-“मोदी सरकार गरीबों के हक की योजना पर तड़पा-तड़पाकर कुल्हाड़ी चला रही है. जो मनरेगा कभी गरीब की जीवन-रेखा थी, आज वो खुद वेंटीलेटर पर है – और उसके लिए जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ केंद्र सरकार है.”

उन्होंने आरोप लगाया कि बजट में भारी कटौती कर और मनरेगा की पहली छमाही में खर्च की सीमा 60% तक तय कर केंद्र सरकार ने करोड़ों गरीब मजदूरों की आजीविका संकट में डाल दी है.

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खड़गे ने सरकार से पूछे पांच बड़े सवाल:

  • क्या सरकार सिर्फ इसलिए खर्च सीमित कर रही है ताकि ₹25,000 करोड़ गरीबों के हक से काटकर बजट का दिखावा किया जा सके?
  • अगर आपदा या मौसम के कारण पहली छमाही में काम की मांग बढ़ गई, तो क्या मजदूरों को काम से वंचित किया जाएगा?
  • खर्च की सीमा पार हो जाने पर क्या राज्य मजदूरों को काम देने से मना कर देंगे?
  • क्यों आज भी केवल 7% परिवारों को ही साल के वादे के मुताबिक 100 दिन का रोजगार मिला है?
  • आधार आधारित भुगतान व्यवस्था के नाम पर 7 करोड़ से अधिक मनरेगा मजदूरों को योजना से क्यों बाहर किया गया?
सरकार गरीबों को क्यों बना रही निशाना?

खड़गे ने यह भी कहा कि पिछले दस वर्षों में मनरेगा को लगातार बजटीय उपेक्षा का शिकार बनाया गया है। 2024-25 में मनरेगा का आवंटन देश के कुल बजट का मात्र 0.25% था — जो अब तक का सबसे न्यूनतम आंकड़ा है. उन्होंने कहा कि इस सरकार की नीति स्पष्ट है: “अमीरों के टैक्स माफ, गरीबों का रोजगार खत्म.”

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कांग्रेस की मांगें: मनरेगा को पुनर्जीवित करो

कांग्रेस अध्यक्ष ने दो प्रमुख मांगें रखीं:
मनरेगा के तहत मजदूरी ₹400 प्रतिदिन की जाए.
हर परिवार को साल में न्यूनतम 150 दिन का रोजगार सुनिश्चित किया जाए.

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राजनीतिक संकेत और आने वाला संघर्ष

मनरेगा, जो कभी यूपीए सरकार की सबसे सफल योजनाओं में गिनी जाती थी, अब एनडीए शासन में लगातार चर्चा और आलोचना का विषय बनती जा रही है. जहां सरकार इसे सुधार का नाम दे रही है, वहीं विपक्ष इसे गरीबों की पीठ में छुरा बता रहा है.
आने वाले महीनों में, खासकर जब चुनाव नजदीक होंगे, यह मुद्दा एक बार फिर सियासी विमर्श का बड़ा हिस्सा बन सकता है.

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