वंचितों का नेता, गरीबों की ढाल,जनता के दिल की आवाज !
तीसरा पक्ष डेस्क, पटना:बिहार की सियासत में अगर किसी नाम ने दशकों तक सामाजिक न्याय की अलख जगाई है, तो वह है लालू प्रसाद यादव. गरीबों, पिछड़ों और वंचितों के बीच एक मसीहा की छवि रखने वाले लालू यादव का आज 78वां जन्मदिन पूरे राज्य में “सामाजिक सद्भावना दिवस” के रूप में मनाया जा रहा है. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने इस दिन को सेवा और समर्पण के उत्सव के रूप में चुना है, जिसमें राज्य भर में गरीबों को भोजन कराया जा रहा है और जरूरतमंद बच्चों के बीच शैक्षणिक सामग्री वितरित की जा रही है.
गरीबों की उम्मीद: लालू प्रसाद यादव
1990 के दशक में बिहार की सत्ता संभालने के बाद लालू यादव ने सामाजिक और राजनीतिक तौर पर वंचित तबकों को पहली बार आवाज दी. उन्होंने दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को सत्ता और प्रशासन में प्रतिनिधित्व दिलाने का काम किया. RJD के आधिकारिक X हैंडल पर लिखा,
बिहार के किसी भी गरीब से पूछ लीजिए कि उनका मसीहा कौन है? एक ही जवाब मिलेगा – आदरणीय लालू जी!”
यह बयान उनके व्यापक जनसमर्थन और भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाता है.
सामाजिक सद्भावना दिवस: एक प्रेरणादायक पहल
RJD ने लालू प्रसाद यादव के जन्मदिन को सामाजिक सद्भावना दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है. पार्टी के प्रदेश प्रधान महासचिव रणविजय साहू ने बताया कि,
आज बिहार के सैकड़ों गांवों में जरूरतमंद लोगो के बीच भोजन और बच्चों को किताब-कॉपी जैसी आवश्यक शैक्षणिक सामग्री बाटी जा रही है.
यह पहल लालू यादव के उस सिद्धांत को दर्शाती है जिसमें समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को भी बराबरी का अधिकार दिलाना सर्वोपरि है.
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वंचितों की आवाज बने लालू
लालू यादव की राजनीति का मूल उद्देश्य रहा है – “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी”. उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए भी अहम भूमिका निभाई, जब 1990 में उन्होंने आडवाणी की राम रथयात्रा को समस्तीपुर में रोक दिया.उनकी बेटी रोहिणी आचार्य ने X पर लिखा,
“लालू जी वंचितों की आवाज, ताकत और हिम्मत हैं. पिछले तीस वर्षों से वे हाशिए पर खड़े लोगों के हक के लिए लड़ रहे हैं.
गरीब रथ से कुल्हड़ तक: जनता के दिलों में जगह
- लालू प्रसाद यादव का रेल मंत्री के रूप में कार्यकाल भी उनकी गरीबों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
- गरीब रथ ट्रेनों की शुरुआत ने कम आय वर्ग के लोगों को सस्ती यात्रा की सुविधा दी.
- रेलवे स्टेशनों पर कुल्हड़ के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर ग्रामीण कुम्हारों को रोजगार से जोड़ा.
- इन योजनाओं ने उन्हें सिर्फ नेता नहीं, बल्कि आम आदमी का सच्चा प्रतिनिधि बना दिया.
विवादों में भी अडिग लोकप्रियता
1997 के चारा घोटाले में फंसने और बाद में सजा पाने के बावजूद लालू यादव की लोकप्रियता में खास गिरावट नहीं आई. उनके समर्थकों का मानना है कि यह सब राजनीतिक साजिश थी. X पर @samirmahaseth_ ने लिखा,
“लालू जी ने गरीबों को हक और हौसला दिया. पहले गरीब को जूते और गालियां मिलती थीं, लेकिन लालू जी की सरकार में गरीब ने पलटकर कहना शुरू किया – मार के देख लो!”
भावनात्मक जुड़ाव: जो उन्हें विशेष बनाता है
लालू यादव की सबसे बड़ी ताकत उनका सीधा संवाद और सादगी है. वे लोगों से ऐसे जुड़ते हैं जैसे एक पिता अपने बच्चों से. @priyanka2bharti ने X पर लिखा,
“हर शोषित-वंचित उन्हें अपना मानता है.”
@teamaniketyadav ने उन्हें एक विचार करार दिया:
“लालू प्रसाद यादव केवल एक नेता नहीं हैं, वो एक विचार हैं — संघर्ष का, न्याय का और संवेदनशील पितृत्व का.”
भविष्य की राजनीति और लालू की विरासत
आज भले ही लालू यादव सक्रिय राजनीति से थोड़ा दूर हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक विरासत तेजस्वी यादव और रोहिणी आचार्य जैसे नेताओं के माध्यम से आगे बढ़ रही है. RJD बिहार में एक मजबूत विपक्षी शक्ति बनी हुई है और 2025 के विधानसभा चुनाव में सामाजिक न्याय की लालूवादी राजनीति एक बार फिर केंद्र में है.
निष्कर्ष:
लालू प्रसाद यादव का जीवन और राजनीति गरीबों की ताकत, आवाज और आत्मसम्मान की कहानी है. उनका नाम बिहार के हर गांव-टोले में न केवल एक नेता के रूप में लिया जाता है, बल्कि एक भावनात्मक संबल के रूप में भी याद किया जाता है.

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