पटना हाई कोर्ट का बड़ा फैसला — माले नेता की अपील खारिज!
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 7 अक्टूबर 2025 — बिहार की राजनीति और न्यायिक व्यवस्था एक बार फिर सुर्खियों में है.भोजपुर के बहुचर्चित बड़गांव मामले में पटना उच्च न्यायालय ने भाकपा-माले के पूर्व विधायक मनोज मंजिल समेत अन्य दोषियों की सजा को बरकरार रखते हुए उनकी अपील को खारिज कर दिया है.
इस फैसले के बाद बिहार की सियासत में हलचल मच गया है. भाकपा-माले (CPI-ML) ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण और राजनीतिक दबाव में लिया गया निर्णय करार दिया है.पार्टी ने स्पष्ट किया है कि वह अब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.
कुणाल ने कहा — राजनीतिक साजिश का नतीजा है यह फैसला
भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल ने पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा कि,
यह फैसला न्याय की हत्या जैसा है. यह पूरी तरह राजनीतिक दबाव में लिया गया है. जिस मामले में मनोज मंजिल और अन्य साथियों को सजा दी गई थी, उसमें उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया है.
उन्होंने आगे कहा कि जिस व्यक्ति की हत्या का आरोप मनोज मंजिल और उनके साथियों पर लगाया गया था, उसकी लाश तक बरामद नहीं हुई, फिर भी सभी को उम्रकैद की सजा सुना दिया गया.
कुणाल का आरोप है कि यह फैसला गरीबों, दलितों और वंचित वर्ग के नेताओं के खिलाफ चल रही एक सुनियोजित राजनीतिक मुहिम का हिस्सा है.
जब गरीबों का बेटा राजनीति में आता है और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाता है, तो सत्ता में बैठे लोग उसे कुचलने की कोशिश करता हैं. यह फैसला उसी मानसिकता का परिणाम है.
बड़गांव मामला क्या है?
भोजपुर का बड़गांव मामला 2015 में घटित हुआ था. इस घटना में एक व्यक्ति की कथित हत्या का आरोप भाकपा-माले से जुड़े कार्यकर्ताओं पर लगाया गया था.हालांकि माले नेताओं का कहना है कि मामले की जांच अधूरी और पक्षपातपूर्ण था .
स्थानीय स्तर पर यह भी आरोप लगाया गया था कि पुलिस और प्रशासन ने सत्तारूढ़ दलों के इशारे पर कार्रवाई किया है , ताकि ग्रामीण इलाकों में माले के बढ़ते जनाधार को कमजोर किया जा सके.
जिला अदालत ने 2023 में मनोज मंजिल सहित कई लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाया था.इस सजा के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर किया गया था, जिसे अब 7 अक्टूबर 2025 को खारिज कर दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट में लड़ी जाएगी अंतिम लड़ाई
भाकपा-माले ने कहा है कि अब न्याय के लिए आखिरी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में लड़ा जायेगा.
कुणाल ने बताया कि पार्टी की कानूनी टीम ने तैयारी शुरू कर दिया है और जल्द ही अपील दाखिल की जाएगी.
उन्होंने कहा कि, हम हार मानने वाले नहीं हैं. न्याय की लड़ाई जारी रहेगा .बिहार और भोजपुर की जनता हमारे साथ है. आने वाले चुनाव में जनता उन ताकतों को सबक सिखाएगी जिन्होंने गरीबों के हक की आवाज को दबाने की साजिश रची है.
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बिहार की राजनीति में नया मोड़
यह फैसला ऐसे समय आया है जब बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव नजदीक हैं.
मनोज मंजिल जैसे नेताओं की लोकप्रियता ग्रामीण और पिछड़े वर्गों में काफी मजबूत रहा है. ऐसे में इस फैसले को राजनीतिक समीकरणों से जोड़कर देखा जा रहा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला आने वाले चुनावों में गरीब बनाम सत्ताधारी के राजनीतिक विमर्श को और तेज कर सकता है.
राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि,
मनोज मंजिल जैसे नेता केवल राजनीति नहीं करते, वे संघर्ष की प्रतीक हैं. अगर जनता को लगे कि उनके साथ अन्याय हुआ है, तो इसका असर वोटों पर पड़ सकता है.
निष्कर्ष: न्याय की लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट तक
पटना उच्च न्यायालय का यह फैसला बिहार की राजनीति और न्याय व्यवस्था दोनों के लिए एक नए मोड़ की तरह है.
भाकपा-माले अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने जा रही है, जिससे यह लड़ाई अब जनता बनाम व्यवस्था के रूप में और गहरी हो जाएगी.
मनोज मंजिल, जो गरीबों और मजदूरों की आवाज माने जाते हैं, उनके समर्थन में बिहार के ग्रामीण इलाकों में न्याय मार्च और संघर्ष सभाएं आयोजित किए जाने की तैयारी भी की जा रही है.
कुणाल ने अपने बयान के अंत में कहा है कि,
हम डरेंगे नहीं, झुकेंगे नहीं.
न्याय मिलेगा और यह लड़ाई आखिरी सांस तक जारी रहेगी.

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