मायावती का तीखा संदेश: अंबेडकर पर टिप्पणी करने से बचें, मनुस्मृति विरोध की वजह समझें”

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Ajit Kumar

भारत
मायावती का तीखा संदेश: अंबेडकर पर टिप्पणी करने से बचें, मनुस्मृति विरोध की वजह समझें”

साधु-संतों को सलाह: अंबेडकर की विद्वता को चुनौती देना असंभव

तीसरा पक्ष ब्यूरो नई दिल्ली, 13 सितंबर 2025 -बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने एक बार फिर भारतीय राजनीति के केंद्र में चर्चा छेड़ दी है. उन्होंने सीधे-सीधे कुछ साधु-संतों को चेतावनी देते हुए कहा है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर पर विवादित टिप्पणियां करने से बचें. मायावती का कहना है कि यह साधु-संत सुर्खियों में बने रहने के लिए अंबेडकर और संविधान पर टिप्पणी कर रहे हैं. जबकि वास्तविकता यह है कि उन्हें अंबेडकर की विद्वता और योगदान की गहराई का अंदाज़ा ही नहीं है.

मायावती ने अपने आधिकारिक एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल पर लिखा कि जो लोग अंबेडकर पर टिप्पणी कर रहे हैं, वे उनकी महानता के आगे कुछ भी नहीं हैं.इसलिए, उन्हें इस विषय पर चुप रहना चाहिए और अपनी जातिवादी सोच को त्यागना चाहिए.

अंबेडकर बनाम मनुस्मृति: क्यों है यह संघर्ष?

डॉ. अंबेडकर ने अपने जीवनभर सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई लड़ी है . उन्होंने स्पष्ट कहा था कि मनुस्मृति जातिवाद को जन्म देती है और दलितों-पिछड़ों को दमन की ओर धकेलती है.इसी कारण अंबेडकर ने सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति को जलाकर उसका विरोध किया था.

मायावती ने साधु-संतों को याद दिलाया कि अंबेडकर के अनुयायी मनुस्मृति के विरोध को सिर्फ एक धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई का प्रतीक मानते हैं. ऐसे में, जो लोग अंबेडकर और उनके विचारों पर हमला करते हैं.वे असल में संविधान और सामाजिक न्याय पर प्रहार कर रहे होते हैं.

सोशल मीडिया पर मायावती की पोस्ट हुई वायरल

मायावती की यह पोस्ट सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गई. देखते ही देखते हजारों लाइक्स और रीपोस्ट के साथ यह चर्चा का विषय बन गई.अंबेडकर समर्थक संगठनों और दलित समाज से जुड़े लोगों ने मायावती की इस नसीहत का समर्थन किया है.

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राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती का यह बयान न केवल सामाजिक न्याय की राजनीति को मजबूती देगा, बल्कि धर्म और राजनीति के बीच चल रही बहस को भी नई दिशा देगा.खासकर तब जब आने वाले चुनावों में संविधान और सामाजिक समानता बड़े मुद्दे बनने वाले हैं.

सरकार और प्रशासन पर दबाव: क्या उठेंगी ठोस कार्रवाइयाँ?

मायावती का यह संदेश सिर्फ साधु-संतों तक सीमित नहीं है. असल में यह सरकार और प्रशासन के लिए भी चुनौती है. सवाल यह है कि जब संविधान निर्माता अंबेडकर पर विवादित बयान दिए जाते हैं तो प्रशासन चुप क्यों रहता है? क्या यह लोकतंत्र की गरिमा का अपमान नहीं है?

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार ऐसे विवादित बयानों पर कार्रवाई नहीं करती है, तो यह संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की अवमानना होगी.मायावती ने अप्रत्यक्ष रूप से सरकार और प्रशासन को भी कठघरे में खड़ा किया है.

राजनीतिक नतीजे: चुनावी समीकरणों पर असर

मायावती का यह बयान केवल सामाजिक चेतावनी नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति भी माना जा रहा है. दलित, पिछड़े और वंचित वर्गों में अंबेडकर का प्रभाव गहरा है. ऐसे में मायावती ने इस वर्ग को एकजुट करने की कोशिश की है.

विश्लेषकों का कहना है कि आने वाले चुनावों में यह मुद्दा बड़े पैमाने पर गूंज सकता है. मायावती का सीधा संदेश यह है कि अंबेडकर पर हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और संविधान को कमजोर करने की हर कोशिश का डटकर विरोध होगा.

निष्कर्ष: मायावती ने छेड़ी सामाजिक न्याय की नई बहस

मायावती का बयान इस समय बेहद अहम है. यह न केवल साधु-संतों के लिए चेतावनी है, बल्कि देश की राजनीति को भी झकझोर देने वाला है.अंबेडकर की विद्वता, मनुस्मृति का विरोध और संविधान की ताकत—इन तीनों मुद्दों को मायावती ने एक साथ जोड़कर बड़ा संदेश दिया है.

उनका यह कदम एक बार फिर से बहुजन राजनीति को धार देगा और सामाजिक न्याय की लड़ाई को केंद्र में ले आएगा.अब देखना यह है कि सरकार और प्रशासन इस बयान के बाद क्या कदम उठाते हैं.क्योंकि मायावती ने यह साफ कर दिया है कि अंबेडकर और संविधान पर टिप्पणी करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा.

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