मायावती का समाजवादी पार्टी पर तीखा हमला: कांशीराम नगर का नाम बदलने वाले अब श्रद्धा दिखा रहे हैं

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Kumar Ranjit

भारतबिहार
मायावती का समाजवादी पार्टी पर तीखा हमला: कांशीराम नगर का नाम बदलने वाले अब श्रद्धा दिखा रहे हैं

लखनऊ से बड़ी खबर: मायावती ने सपा पर साधा निशाना बोला ,ये दोगलापन है!

तीसरा पक्ष ब्यूरो लखनऊ, 09 अक्टूबर 2025 —बहुजन समाज पार्टी (BSP) की सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बहन मायावती ने समाजवादी पार्टी और उसके प्रमुख अखिलेश यादव पर तीखा हमला बोला है.
उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी दोगली राजनीति कर रही है और कांशीराम जी की विरासत का इस्तेमाल सिर्फ राजनीतिक फ़ायदे के लिए कर रही है.

मायावती ने कहा कि,

मैं समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से पूछना चाहती हूँ कि अगर आप सच में आदरणीय श्री कांशीराम जी का सम्मान करते हैं, तो सत्ता में रहते हुए आपने कांशीराम नगर का नाम बदलकर कासगंज क्यों कर दिया?

कांशीराम नगर से कासगंज तक: राजनीति में नाम बदलने की कहानी

कांशीराम नगर से कासगंज तक: राजनीति में नाम बदलने की कहानी

मायावती ने 2010 में अपने शासनकाल के दौरान अलीगढ़ मंडल से अलग एक नया जिला बनाया था — जिसका नाम उन्होंने, कांशीराम नगर रखा था.
यह कदम उन्होंने बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम साहेब की स्मृति और उनके योगदान को सम्मान देने के लिए उठाया था.

लेकिन जब 2012 में समाजवादी पार्टी सत्ता में आई, तो अखिलेश यादव सरकार ने इस जिले का नाम बदलकर,कासगंज कर दिया.
तभी से यह मामला बहुजन राजनीति के दिल में एक दर्द और प्रतीक बन गया.

मायावती ने इसी मुद्दे को फिर से उठाते हुए कहा कि,

जब वे सत्ता में होते हैं, तब न उन्हें हमारे संत, गुरु या महापुरुष याद आते हैं, और न ही उनका सम्मान करते हैं.लेकिन जैसे ही सत्ता से बाहर जाते हैं, उन्हें अचानक कांशीराम जी याद आने लगते हैं.यह राजनीति नहीं, दोगलापन है.

दोगली राजनीति’ शब्द बना बहस का केंद्र

मायावती का यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया.
दोगले लोग और कांशीराम नगर का अपमान जैसे हैशटैग X (Twitter) और Facebook पर ट्रेंड करने लगे.
बसपा कार्यकर्ताओं ने मायावती के इस बयान को सच्चाई की चोट बताया और कहा कि बहुजन आंदोलन के प्रतीकों का सम्मान सिर्फ BSP ने किया है, किसी और ने नहीं.

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह बयान आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले बहुजन वोट बैंक को एकजुट करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
मायावती एक बार फिर अपने पारंपरिक समर्थन आधार — दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग — को सशक्त संदेश देना चाहती हैं.

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सपा की चुप्पी और बसपा का जवाबी अभियान

इस बयान पर अब तक समाजवादी पार्टी की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सपा के कुछ नेताओं ने अनौपचारिक रूप से कहा कि नाम बदलने का निर्णय प्रशासनिक आधार पर लिया गया था, न कि किसी की विरासत का अपमान करने के लिए.

हालांकि बसपा नेताओं का कहना है कि

अगर कांशीराम जी की विरासत का सम्मान करने की बात है, तो नाम बदलना ही अपमान की सबसे बड़ी निशानी है.

बसपा अब कांशीराम विचार यात्रा नामक अभियान की तैयारी कर रही है, जिसमें पार्टी कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर लोगों को बताएंगे कि किस तरह बहुजन नायक की विरासत से बार-बार खिलवाड़ किया गया.

बहुजन राजनीति में कांशीराम जी का स्थान

कांशीराम जी ने बामसेफ, डीएस-4, और बहुजन समाज पार्टी जैसी संस्थाओं के माध्यम से भारत के वंचित समाज को राजनीतिक शक्ति में बदलने का काम किया.
उनकी सोच थी — जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी.

मायावती अक्सर कहती हैं कि उन्होंने अपनी पूरी राजनीतिक यात्रा कांशीराम जी के मिशन को आगे बढ़ाने में लगाई है.
ऐसे में जब समाजवादी पार्टी जैसे दल उनके नाम पर राजनीति करते हैं, तो यह मायावती और उनके समर्थकों के लिए भावनात्मक मुद्दा बन जाता है.

राजनीतिक संदेश और 2027 का संकेत

मायावती का यह बयान सिर्फ सपा पर हमला नहीं, बल्कि आने वाले 2027 विधानसभा चुनावों के लिए बहुजन राजनीति को पुनर्जीवित करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.
उनका संदेश साफ है —

कांशीराम जी के नाम पर दिखावा करने वाले दलों को अब जनता पहचान चुकी है.

राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि मायावती आने वाले महीनों में सपा और कांग्रेस दोनों पर बहुजन विरोधी नीतियों का आरोप लगाकर अपनी पुरानी जमीन दोबारा हासिल करने की कोशिश करेंगी.

निष्कर्ष: कांशीराम की विरासत पर राजनीति या सम्मान?

मायावती का यह बयान एक बार फिर इस सवाल को खड़ा करता है कि,
क्या आज के राजनीतिक दल कांशीराम जी जैसे महापुरुषों की विरासत का सम्मान कर रहा हैं या सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहा हैं?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह बहस अब फिर से गर्म हो गई है.
कांशीराम जी का नाम, उनकी विचारधारा और मायावती का संघर्ष — ये सब मिलकर एक नया राजनीतिक विमर्श गढ़ रहे हैं, जो आने वाले समय में बड़े बदलाव की आहट दे सकता है.

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