मायावती का तंज – सपा-कांग्रेस को बहुजन आंदोलन की भावना की नहीं, वोट की चिंता
तीसरा पक्ष ब्यूरो नई दिल्ली, 7 अक्टूबर 2025 — बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस पर कड़ा हमला बोला है.अपने आधिकारिक X (पूर्व ट्विटर) अकाउंट पर उन्होंने एक विस्तृत बयान जारी करते हुये दोनों पार्टियों पर घोर जातिवादी और दलित विरोधी मानसिकता का आरोप लगाया है .
मायावती ने कहा कि सपा प्रमुख द्वारा 9 अक्टूबर को बहुजन आंदोलन के प्रणेता मान्यवर कांशीराम जी के परिनिर्वाण दिवस पर संगोष्ठी आयोजित करने की घोषणा केवल राजनीतिक दिखावा और छलावा है.उन्होंने कहा है कि ,
यह उन पार्टियों की राजनीति का हिस्सा है, जिन्होंने कांशीराम जी के जीवनकाल में भी उनके मिशन को कमजोर करने का हरसंभव कोशिश किया था .
कांशीराम जी के नाम पर राजनीति करने का आरोप
मायावती ने कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर के मिशन को जन-जन तक पहुँचाने और दलित, पिछड़े व आदिवासी समाज को शोषित से शासक वर्ग बनाने में कांशीराम जी का योगदान ऐतिहासिक रहा है.लेकिन, उन्होंने आरोप लगाया कि सपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने हमेशा इस मिशन को कमज़ोर करने की नीतियाँ अपनाईं है.
उन्होंने याद दिलाया कि बीएसपी सरकार ने 17 अप्रैल 2008 को कांशीराम नगर के नाम से एक नया जिला बनाया था, जिसे बाद में सपा सरकार ने कासगंज कर दिया.मायावती के अनुसार,
सपा की जातिवादी सोच और राजनीतिक द्वेष के कारण ही इस जिले का नाम बदला गया, ताकि बहुजन समाज के नायकों का सम्मान मिटाया जा सके.
बीएसपी सरकार की उपलब्धियाँ और सपा की नीतियों की तुलना
मायावती ने अपने बयान में कहा कि बीएसपी सरकार ने कांशीराम जी के सम्मान में कई विश्वविद्यालय, कॉलेज, अस्पताल और संस्थान स्थापित किये थे, जिनमें से कई के नाम बाद में बदल दिया गया. उन्होंने सवाल उठाया कि जब देश कांशीराम जी के निधन पर शोक में डूबा था,
तब भी सपा सरकार ने एक दिन का राजकीय शोक तक घोषित नहीं किया.
इसी तरह, उन्होंने कांग्रेस पर भी हमला बोलते हुए कहा कि केंद्र में कांग्रेस सरकार होने के बावजूद राष्ट्रीय शोक दिवस घोषित नहीं किया गया.उन्होंने इसे कांग्रेस की दलित विरोधी मानसिकता का प्रमाण बताया है.
संकीर्ण राजनीति और वोट बैंक की चाल
मायावती ने लिखा है कि जब भी चुनाव या राजनीतिक लाभ की स्थिति बनती है, तब सपा और कांग्रेस जैसी पार्टियाँ कांशीराम जी का नाम लेकर बहुजन समाज के वोटों को लुभाने की कोशिश करती हैं.उन्होंने कहा कि यह उनके वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा है, जिसमें वास्तविक सम्मान नहीं बल्कि स्वार्थ की गंध है.
उनके शब्दों में,
समय-समय पर कांशीराम जी को याद करने का दिखावा केवल वोटों की राजनीति है.इन पार्टियों की सोच जातिवादी और संकीर्ण है.जनता को सजग और सावधान रहना चाहिये.
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कांशीराम जी का मिशन और बहुजन चेतना
मायावती ने कहा कि मान्यवर कांशीराम जी ने डॉ. अंबेडकर के मिशन को आगे बढ़ाते हुए समाज के सबसे वंचित वर्गों में आत्म-सम्मान और राजनीतिक चेतना जगाई.उनका लक्ष्य था कि समाज के जो लोग सदियों से शोषित और उपेक्षित रहे हैं, उन्हें सत्ता में उचित भागीदारी मिले.
उन्होंने कहा कि,
कांशीराम जी ने शोषित से शासक बनाने की जो नींव रखी, वही आज बहुजन आंदोलन की आत्मा है.बीएसपी इसी मिशन के प्रति समर्पित है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि और चुनावी संदेश
यह बयान ऐसे समय आया है जब उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव की राजनीतिक सरगर्मियाँ तेज हो रहा हैं.सपा प्रमुख द्वारा कांशीराम जी के नाम पर आयोजित संगोष्ठी को मायावती ने चुनावी रणनीति बताया है.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती का यह बयान न सिर्फ सपा और कांग्रेस के खिलाफ राजनीतिक प्रतिक्रिया है, बल्कि यह बीएसपी के बहुजन एकता संदेश को भी पुनर्जीवित करने की कोशिश है.
निष्कर्ष: बहुजन आंदोलन का असली स्वरूप बनाम राजनीतिक दिखावा
मायावती का यह बयान स्पष्ट करता है कि बीएसपी अपने संस्थापक मान्यवर कांशीराम जी की विरासत को राजनीतिक संपत्ति नहीं बल्कि सामाजिक आंदोलन मानती है. उन्होंने अपने संदेश के अंत में अपील किया है कि,
बहुजन समाज के लोग जातिवादी और छलपूर्ण राजनीति से दूर रहें और अपने असली मिशन— आत्म-सम्मान और समान अधिकार— के लिए संगठित हों.
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