मोदी सरकार में ‘दो हिंदुस्तान ? एक, अरबपतियों का और दूसरा आम जनता का – राहुल गांधी

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Ajit Kumar

भारतबिहार
मोदी सरकार में 'दो हिंदुस्तान ? एक, अरबपतियों का और दूसरा आम जनता का – राहुल गांधी

किसान, मजदूर और बेरोज़गार युवा बनाम अमीरों का भारत!

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 8 जुलाई: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर मोदी सरकार को घेरते हुए देश में बढ़ती आर्थिक असमानता को लेकर बड़ा बयान दिया है. अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर पोस्ट करते हुए उन्होंने कहा कि भारत आज दो हिस्सों में बंट चुका है – एक हिंदुस्तान अमीरों का है, और दूसरा आम लोगों का, जो किसान, मजदूर और बेरोजगार युवाओं का हैं.

“अरबपतियों का हिंदुस्तान बन गया है”
राहुल गांधी ने लिखा:

मोदी सरकार में ‘दो हिंदुस्तान’ बन रहे हैं – एक अमीरों का, दूसरा किसानों, मजदूरों और बेरोजगार युवाओं का.”

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की नीतियाँ केवल कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को लाभ पहुंचा रही हैं. जबकि आम जनता की जिंदगी दिन-ब-दिन कठिन होती जा रही है.बेरोजगारी, महंगाई और किसानों की आत्महत्याएं आज भी गंभीर समस्या बनी हुई हैं.

किसान, मजदूर और युवा क्यों हैं परेशान?

किसान, मजदूर और युवा क्यों हैं परेशान?

किसान, मजदूर और युवा क्यों हैं परेशान?
बीते कुछ वर्षों में सरकार द्वारा लाए गए आर्थिक फैसलों और कृषि सुधारों ने कई सवाल खड़े किए हैं. किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा अभी भी अधूरा है. उधर, बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रहा है जो चिंता का विषय बनी हुई है.

वहीं, मजदूर वर्ग को न्यूनतम वेतन, श्रम अधिकार और सुरक्षित काम की स्थिति जैसी सुविधाएं अभी भी पूरी तरह नहीं मिली हैं. राहुल गांधी इसी असंतुलन को “दो हिंदुस्तान” की संज्ञा दे रहे हैं.

सोशल मीडिया पर मिला समर्थन और विरोध

राहुल गांधी की यह पोस्ट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है.उनके समर्थकों ने इसको आम आदमी की आवाज़” बताया है, वहीं भाजपा समर्थकों ने इसे राजनीतिक स्टंट करार दिया है.

क्या यह चुनावी रणनीति का हिस्सा है?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान 2025 के विधानसभा चुनावों की तैयारी का संकेत हो सकता है. कांग्रेस पार्टी अब आम आदमी, किसान और युवा वर्ग को केंद्र में रखकर चुनावी रणनीति बना रही है.

निष्कर्ष

राहुल गांधी की “दो हिंदुस्तान” वाली टिप्पणी एक गंभीर सवाल खड़ा करता है. क्या भारत में आर्थिक विकास सभी वर्गों तक पहुंच पा रहा है? या फिर अमीर और गरीब के बीच की खाई और गहरी होती जा रही है?

आगामी चुनावों में यह मुद्दा कितना असर डालेगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल इतना तय है कि राजनीतिक बयानबाज़ी ने देश की वास्तविक आर्थिक स्थिति पर एक बार फिर ध्यान खींचा है.

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