मोदी है तो मुमकिन है? — सुप्रिया श्रीनेत का तीखा हमला

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Ajit Kumar

भारत
मोदी है तो मुमकिन है? — सुप्रिया श्रीनेत का तीखा हमला

देश की सच्चाई और वास्तविकता पर खड़ा किया बड़ा सवाल

तीसरा पक्ष ब्यूरो, नई दिल्ली,16 अक्टूबर —कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने एक बार फिर केंद्र की मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला है.सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (Twitter) पर उन्होंने लिखा है, मोदी है तो मुमकिन है?!? और इसके बाद उन्होंने एक लंबी सूची गिनाई जिसमें देश के सामाजिक, आर्थिक और संवैधानिक संकटों का जिक्र किया गया है. उनका यह पोस्ट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है और इसने एक बार फिर सत्ता बनाम विपक्ष की बहस को हवा दे दी है.

मोदी है तो मुमकिन है — तंज या हकीकत?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मशहूर नारा मोदी है तो मुमकिन है एक समय विकास, प्रगति और आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक माना जाता था. लेकिन सुप्रिया श्रीनेत ने इसी नारे को पलटकर सरकार के खिलाफ एक सवालिया हथियार बना दिया है.उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है कि,

दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों पर अत्याचार मुमकिन है
संविधान पर प्रहार मुमकिन है
नफरत की हर ओर भरमार मुमकिन है
जलता हुआ मणिपुर मुमकिन है
चीन का लद्दाख में कब्ज़ा मुमकिन है…”

यह ट्वीट न केवल एक राजनीतिक बयान है, बल्कि देश की मौजूदा परिस्थितियों पर एक गहरी चिंता भी जताता है.

सामाजिक असमानता और बढ़ती नफरत

सुप्रिया श्रीनेत ने अपने ट्वीट में समाज में बढ़ रही नफरत, हिंसा और असमानता की ओर इशारा किया है.उन्होंने कहा कि दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों पर अत्याचार आज आम हो गया है. संविधान पर प्रहार मुमकिन है जैसे शब्द यह संकेत देता हैं कि कांग्रेस के मुताबिक, देश में लोकतांत्रिक संस्थाएँ और संवैधानिक मूल्यों पर हमला बढ़ा है.

देश के कई हिस्सों में साम्प्रदायिक तनाव, मॉब लिंचिंग और सामाजिक विभाजन की घटनाएं बढ़ी हैं — और विपक्ष का आरोप है कि यह माहौल राजनीतिक रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है.

आर्थिक मोर्चे पर मुमकिन संकट

सुप्रिया श्रीनेत ने भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर भी गंभीर सवाल उठाया है और उन्होंने लिखा है कि,
कमरतोड़ महंगाई मुमकिन है, बेरोजगारी मुमकिन है, हर व्यक्ति पर औसत 4.5 लाख का कर्ज मुमकिन है, और अडानी महाघोटाला मुमकिन है.
देश में लगातार बढ़ती बेरोजगारी, घटती बचत दर और बढ़ते ऋण बोझ को लेकर विपक्ष सरकार पर निशाना साधता रहा है. आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सीमित हुआ है.श्रीनेत के अनुसार, चपरासी की नौकरी के लिए MBA और PhD उम्मीदवारों का आवेदन देना, इस सरकार की नीतिगत विफलता का प्रमाण है.

बुनियादी ढांचे पर सवाल – नई संसद की छत चूना मुमकिन है

सरकार की विकास की छवि पर प्रहार करते हुए सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि,नई संसद की छत चूना मुमकिन है, एयरपोर्ट का उद्घाटन के बाद टूटना मुमकिन है, पुल और फ्लाईओवर धंसना मुमकिन है.
यह बयान हाल ही में हुए कई निर्माण हादसों से जोड़ा जा रहा है, जिनमें नए बने पुलों का ध्वस्त होना और इंफ्रास्ट्रक्चर की गुणवत्ता पर भीं सवाल उठा हैं.

उनका कहना है कि जब विकास का नारा सिर्फ प्रचार तक सीमित रह जाए, तब जनता को सिर्फ दिखावे का ढांचा मिलता है — न कि स्थायी प्रगति का.

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संविधान और लोकतंत्र पर खतरा

कांग्रेस प्रवक्ता ने सबसे गंभीर आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया है.उन्होंने कहा है कि,
ED, CBI, Income Tax BJP के पालतू बन जाना मुमकिन है, वोट चोरी मुमकिन है, चुनाव आयोग का वोट चोरी आयोग बन जाना मुमकिन है.

इस बयान में उन्होंने चुनाव आयोग, जांच एजेंसियों और मीडिया की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठाये. विपक्ष का यह पुराना आरोप रहा है कि सरकार एजेंसियों का राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है.

पत्रकारों की गिरफ्तारी और बुद्धिजीवियों की आवाज़ दबाने के मामले भी श्रीनेत के ट्वीट में शामिल था.पत्रकारों की हत्या मुमकिन है, बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी मुमकिन है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख पर चोट

सुप्रिया श्रीनेत ने भारत की विदेश नीति पर भी सवाल उठाया है,
अमेरिका का पाकिस्तान को महान कहना मुमकिन है, अमेरिका का भारत को बेइज़्ज़त करना मुमकिन है, चीन का लद्दाख में कब्जा मुमकिन है.

उनका तर्क है कि विकासशील भारत की छवि अब कमजोर पड़ रही है.छोटे देश जैसे तुर्किये या पाकिस्तान भी भारत के खिलाफ बयान देने में हिचकते नहीं है , यह अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के गिरने का संकेत है.

विपक्ष का संदेश – देश बचाना है तो सवाल पूछना ज़रूरी है

सुप्रिया श्रीनेत का यह ट्वीट केवल विरोध नहीं, बल्कि एक संदेश भी है कि नागरिकों को अब जागरूक होकर सवाल करने चाहिये उनका कहना है कि देश का बर्बाद होना, मोदी है तो मुमकिन है — यह नारा सिर्फ व्यंग्य नहीं बल्कि हकीकत की ओर संकेत है.

विपक्ष यह दावा कर रहा है कि सरकार के प्रचार और वास्तविकता के बीच गहरी खाई है.
जहाँ सरकार विकसित भारत का सपना दिखा रही है, वहीं ज़मीनी स्तर पर बेरोजगारी, कर्ज़ और असमानता बढ़ रही है.

निष्कर्ष: मुमकिन भारत को कौन दिशा देगा?

सुप्रिया श्रीनेत का ट्वीट आने वाले चुनावी माहौल में विपक्ष के लिए एक बड़ा हथियार साबित हो सकता है.
उन्होंने मोदी है तो मुमकिन है”के नारे को पूरी तरह पलट दिया है और इसे देश की विफलताओं के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है.

अब सवाल यह है कि क्या जनता इस तंज को एक सच्चाई के रूप में देखेगी या इसे राजनीतिक बयानबाज़ी मानेगी?
क्योंकि भारत की दिशा,क्या वास्तव में मुमकिन है? — इसका जवाब अब जनता ही देगी.

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