क्या देश की जनता से छुपाया गया जीवन का सबसे बड़ा सच?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,4 जुलाई :प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति और छवि को लेकर एक बड़ा सवाल सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रहा है. यूज़र @priyanka2bharti के एक पोस्ट ने चुनावी पारदर्शिता, वैवाहिक स्थिति और हलफनामों की सच्चाई को लेकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है.प्रियंका भारती ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) @priyanka2bharti हैंडल पर लिखा कि,
4 बार CM रहते हुए मोदी ने अपनी पत्नी नहीं होने का झूठा हलफनामा दिया, कायदे से जिस व्यक्ति को जेल में होना था वो आज PM बने बैठे हैं!बिहार के डिप्टी CM तो 10 साल में 28 साल बड़े हो जाते हैं.हलफनामे पर भाजपा एक शब्द भी बोलेंगे तो मोदी समेत कई भाजपाई जेल के सलाखों के पीछे होंगे!
क्या वाकई देश के प्रधानमंत्री ने चार बार मुख्यमंत्री रहते हुए झूठा हलफनामा दिया? अगर हां, तो क्या भारत का कानून सिर्फ आम नागरिकों के लिए है?
हलफनामे में पत्नी का जिक्र नहीं: क्या मोदी ने जानबूझकर छुपाई जानकारी?
सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया गया है कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए चार बार अपने चुनावी हलफनामे में पत्नी की जानकारी नहीं दी. ये वही जशोदाबेन हैं जिन्हें मोदी ने एक सार्वजनिक भाषण में अपनी पत्नी माना था. लेकिन लंबे समय तक चुनावी दस्तावेज़ों में उनका कोई जिक्र नहीं था.
यह सीधे-सीधे भारतीय दंड संहिता की धारा 125A के तहत अपराध की श्रेणी में आता है. जहां जानबूझकर गलत जानकारी देने पर 6 महीने तक की सज़ा या जुर्माना भी हो सकता है.सवाल यह है कि जब कानून स्पष्ट है.तो कार्यवाही क्यों नहीं हुई?
कानून का डर आम नागरिक के लिए ही क्यों? प्रधानमंत्री क्यों हैं ‘अछूत’?
भारत में अगर कोई आम नागरिक अपने बैंक दस्तावेज़ या किसी सरकारी फॉर्म में गलत जानकारी देता है तो उस पर तुरंत कार्रवाई होता है. मगर जब बात देश के प्रधानमंत्री की हो.तो सारे कानून चुप क्यों हो जाते हैं?
@priyanka2bharti का दावा है कि “जिसे जेल में होना चाहिए, वो आज प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा है.” यह एक बेहद गंभीर टिप्पणी है. जो सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि नैतिक और संवैधानिक सवाल भी खड़ा करता है.
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बिहार के डिप्टी सीएम पर तंज: 10 साल में 28 साल कैसे बड़े हो गए?
पोस्ट में बिहार के उपमुख्यमंत्री का भी जिक्र किया गया है.आरोप है कि उनके दस्तावेजों में उम्र को लेकर भारी अंतर है.10 साल में 28 साल बड़ा होना कोई वैज्ञानिक चमत्कार नहीं है बल्कि दस्तावेज़ी धोखाधड़ी का साफ संकेत है.
ऐसे में क्या चुनाव आयोग ने कभी सत्यापन की प्रक्रिया को गंभीरता से लिया? और क्या इन नेताओं के झूठे हलफनामे सिर्फ फॉर्मेलिटी बनकर रह गया हैं?
भाजपा हलफनामे पर बोले तो जेल के कगार पर होंगे कई नेता?
पोस्ट के अंत में सीधा चैलेंज दिया गया है कि,अगर भाजपा हलफनामे पर एक शब्द भी बोले. तो मोदी समेत कई भाजपाई जेल के सलाखों के पीछे होंगे!” यह बयान जितना सनसनीखेज है. उतना ही सच्चाई के करीब भी. अगर जांच निष्पक्ष हो.
देश की सबसे बड़ी सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के हलफनामों की जांच यदि स्वतंत्र एजेंसी करे. तो क्या वह भी कुछ ऐसा उजागर करेगी जिसे अब तक छुपाया गया था?
सवाल जनता के लिए: क्या हम सिर्फ चेहरे पर वोट कर रहे हैं. चरित्र पर नहीं?
जब जनता नेता को चुनती है. तो वह उसके चरित्र, ईमानदारी और पारदर्शिता पर भरोसा करता है. अगर वही नेता अपने निजी जीवन और दस्तावेज़ों को लेकर झूठ बोलता है. तो लोकतंत्र की बुनियाद ही हिल जाता है.
यह सिर्फ मोदी या भाजपा की बात नहीं है. यह हर उस नेता की बात है जो अपने पद की गरिमा को झूठ और चालाकी से बचाने की कोशिश करता है.
निष्कर्ष:
आज देश को जरूरत है सिर्फ बड़ी-बड़ी रैलियों और नारों की नहीं.बल्कि सच बोलने वाले, जिम्मेदार और जवाबदेह नेताओं की है.हलफनामा सिर्फ कागज़ नहीं होता,वो जनता से किया गया एक कानूनी और नैतिक वादा होता है. और अगर यही वादा झूठ पर टिका हों. तो लोकतंत्र का क्या भविष्य?

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