खड़गे का पीएम मोदी को पत्र: संसदीय मर्यादा टूट रही है!
तीसरा पक्ष डेस्क,नई दिल्ली: भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब दो लगातार लोकसभा कार्यकालों में उपाध्यक्ष की कुर्सी खाली रही है. इस संवैधानिक स्थिति पर चिंता जताते हुए कांग्रेस के तरफ खड़गे द्वारा एक सार्वजनिक पत्र प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को संबोधित करते लिखा गया है, जिसमें तत्काल प्रभाव से लोकसभा उपाध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने की मांग की गई है.
लोकसभा उपाध्यक्ष की कुर्सी अब और खाली क्यों?
सोशल मीडिया X पर इस पत्र में कहा गया है कि स्वतंत्र भारत में अब तक प्रथम से लेकर सोलहवीं लोकसभा तक, हर बार लोकसभा में उपाध्यक्ष की नियुक्ति की गई थी. यह संसदीय परंपरा रही है कि उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी मुख्य विपक्षी दल के किसी योग्य सांसद को दी जाती रही है, जिससे सत्ता और विपक्ष के बीच संतुलन बना रहे और लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत हो.
हालांकि, यह परंपरा सत्रहवीं लोकसभा में टूट गई, और अब अठारहवीं लोकसभा में भी यही स्थिति बनी हुई है. दो कार्यकालों तक उपाध्यक्ष का पद खाली रहना न केवल संसदीय मर्यादाओं का उल्लंघन है, बल्कि संविधान की भावना और स्पष्ट प्रावधानों के भी प्रतिकूल है.
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सोशल मीडिया X: पत्र में क्या कहा गया है?
लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है कि लोकसभा उपाध्यक्ष का चुनाव शीघ्र कराया जाए और संवैधानिक परंपराओं का पुनः पालन सुनिश्चित किया जाए.
My letter to PM Shri @narendramodi on the urgency to initiate the process of electing a Deputy Speaker of Lok Sabha without any further delay.
— Mallikarjun Kharge (@kharge) June 10, 2025
From the First to the Sixteenth Lok Sabha, every House has had a Deputy Speaker. By and large, it has been a well-established… pic.twitter.com/WUyIPlTVqx
पत्र में यह भी रेखांकित किया गया है कि उपाध्यक्ष का पद न केवल संसद की कार्यवाही के संचालन के लिए आवश्यक है, बल्कि वह एक तटस्थ मंच होता है जहाँ सत्ता और विपक्ष दोनों की आवाज़ों को समान सम्मान दिया जाता है. ऐसे में इस संवैधानिक पद को लंबे समय तक रिक्त रखना भारतीय लोकतंत्र की सेहत के लिए उचित संकेत नहीं है.
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निष्कर्ष
यह मुद्दा अब केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रणाली की साख और संतुलन से जुड़ा हुआ है. समय की मांग है कि इस विषय पर केंद्र सरकार गंभीरता दिखाए और संसदीय गरिमा को बहाल करने के लिए आवश्यक कदम उठाए.

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