प्रशांत किशोर को जमीनी हकीकत का अंदाजा नही: भाकपा-माले का तीखा प्रहार

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Ajit Kumar

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बिना होमवर्क के बयानबाज़ी कर रहे हैं जमीनी आंदोलनों से बेखबर हैं प्रशांत किशोर: माले

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 23 जुलाई:बिहार की राजनीति में एक बार फिर बयानबाज़ी का दौर तेज़ हो गया है.इस बार निशाने पर हैं जनसूराज अभियान के अगुवा प्रशांत किशोर जिनकी टिप्पणियों पर भाकपा-माले ने तीखी प्रतिक्रिया दिया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता और अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर संगठन के राष्ट्रीय महासचिव धीरेंद्र झा तथा संगठन के राज्य अध्यक्ष व पूर्व विधायक मनोज मंजिल ने कहा है कि प्रशांत किशोर को न तो बिहार की गरीब जनता के संघर्षों की गहराई का अंदाज़ा है और न ही उनकी समस्याओं की असली समझ है.

नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा घोषित 94 लाख महागरीब परिवारों को दो-दो लाख रुपये देने की योजना कोई हवा में आई बात नहीं है. बल्कि इसके पीछे लंबे समय से चला आ रहा गरीब जनता का आंदोलन है. जिसकी अगुवाई भाकपा-माले और उससे जुड़े जनसंगठनों ने किया है.

हक दो – वादा निभाओ’ अभियान

मनोज मंजिल ने कहा कि हक दो – वादा निभाओ,अभियान के तहत हमने पूरे राज्य में आंदोलन चलाया है. गरीबों के लिए आय प्रमाण पत्र दिलाने से लेकर वास-अधिकार और भूमिहीनों के लिए कानून की मांग तक, हमने सड़क से लेकर विधानसभा तक आवाज़ उठाई है.

प्रशांत किशोर की आलोचना करते हुए माले नेताओं ने कहा कि वे पहले आंदोलनों को निष्प्रभावी बताकर खारिज करते थे.और अब जब उनके असर के कारण सरकार को योजनाएं लागू करना पड़ रहा हैं, तब भी वे इन आंदोलनों की भूमिका को नजरअंदाज़ कर रहे हैं. यह रवैया न केवल गैर-जिम्मेदाराना है. बल्कि उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता को भी उजागर करता है.

विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान पर प्रशांत किशोर चुप क्यों हैं?

धीरेंद्र झा ने सवाल उठाया कि जब राज्य में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान चल रहा है और हजारों गरीबों व प्रवासी मजदूरों के वोटिंग अधिकार पर खतरा मंडरा रहा है. तब प्रशांत किशोर इस गंभीर मुद्दे पर चुप क्यों हैं?

माले नेताओं का कहना है कि यह चुप्पी प्रशांत किशोर के राजनीतिक चरित्र की एक झलक दिखाई देता है .एक ऐसा नेता जो जनता के संघर्षों को समझने की बजाय सतही विश्लेषण में व्यस्त है.

बिहार की राजनीति में यह बयानबाज़ी आने वाले समय में और तेज हो सकता है.लेकिन एक बात तो साफ है कि जनता के मुद्दों पर ज़मीनी काम करने वाले संगठन अपने योगदान को अनदेखा नहीं होने देना चाहते है.

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