संघर्षों से सपनों तक: एक बहुजन महिला की शिक्षा यात्रा

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kmSudha

बिहारतीसरा पक्ष आलेख
संघर्षों से सपनों तक: एक बहुजन महिला की शिक्षा यात्रा

ये सिर्फ शिक्षा की यात्रा नहीं, यह सामाजिक न्याय की साधना है – प्रियंका भारती

तीसरा पक्ष डेस्क,पटना: हम बहुजन समाज से आने वाले लोग जीवन से बहुत बड़ी अपेक्षा नहीं रखते.हमारा सपना बस इतना होता है कि हम कुछ अच्छा कर पाएं .अपने परिवार, अपने समाज, और अपने आत्मसम्मान के लिए.जो समाज से पाया है उसे वापस देना चाहते हैं. लेकिन जिस सामाजिक पृष्ठभूमि से हम आते हैं, वहाँ सपने देखना भी एक विलासिता होता है.

मेरे लिए 12वीं के बाद JNU में दाखिला लेना किसी चमत्कार से कम नहीं था. कम फीस की वजह से प्रवेश लिया और फिर MCM स्कॉलरशिप, JRF, और SRF फेलोशिप ने पढ़ाई की पूरी राह को आसान बनाया. BA से लेकर PhD तक का सफर, जो शायद असंभव लगता, वो मुमकिन हुआ.

विदेश यात्रा? वो तो कभी कल्पना में भी नहीं था. लेकिन Fully Funded Scholarships ने बीते तीन सालों में मुझे चार बार यूरोप भेजा.हर बार एक नया देश, एक नई भाषा, एक नई संस्कृति… और हर बार एक नई सीख.

संघर्षों से सपनों तक: एक बहुजन महिला की शिक्षा यात्रा

हमारे पास सपने नहीं थे… लेकिन संघर्ष था

हम पहली पीढ़ी थे जो किसी तरह विश्वविद्यालय तक पहुंचे वहाँ भी रास्ते आसान नहीं थे. पढ़ाई के साथ-साथ विरोध, आंदोलन, बहस और बहिष्कार भी थे.हमने अपने लिए रास्ते बनाए — और फिर उन्हें आने वाली पीढ़ी के लिए भी खुला रखा.

हमारे परिवारों ने कभी “अच्छा” नहीं देखा था. इसलिए जब कुछ अच्छा होता है तो वो चमत्कार जैसा लगता है भले ही वो हमारी अपनी मेहनत का ही क्यों न हो.

मैंने पढ़ाई को और हक की लड़ाई को कभी अलग नहीं किया. दोनों को बराबर समय दिया और शायद इसीलिए दोनों में कुछ बेहतर कर पाई. मेरा मानना है कि शिक्षा और संघर्ष मिलकर इंसान के व्यक्तित्व को गढ़ते हैं.और ये प्रक्रिया कभी रुकती नहीं.

प्रेरणाएँ: अंधेरे में रौशनी की किरणें

जब जूठन के लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि स्कूल पहुंचे या मुर्दहिया के प्रोफ़. तुलसीराम विश्वविद्यालय, तो वो सिर्फ एक यात्रा नहीं थी वो एक सामाजिक क्रांति थी. उनके अनुभवों को पढ़कर मन आक्रोश और पीड़ा से भर जाता है.

मेरे आदर्शों में हैं:

बाबा साहब अंबेडकर – जिनके संविधान ने हमें इंसान माना.

मंडल कमीशन – जिसने पिछड़ों के लिए अवसर खोले.

VP सिंह, अर्जुन सिंह – जिनकी नीतियों ने पढ़ाई और रोज़गार में बराबरी दी.

लालू यादव, मायावती, फूलन देवी – जिनसे लड़ने का साहस, बोलने का हक और सपने देखने की प्रेरणा मिली.

कांशीराम, फूले, पेरियार, कर्पूरी ठाकुर, लोहिया, रविदास, फातिमा शेख – जिनके विचार मेरे संघर्ष की जमीन बने.

जगदेव प्रसाद, रामस्वरूप वर्मा, बाबासाहब, लूथर किंग, मैलकॉम X, मंडेला, फ्रीडा काहलो – जो रोज़ एक नई प्रेरणा देते हैं.

अब फिर विदेश में हूं…

अब मैं एक बार फिर यूरोप पहुंची हूं.उद्देश्य वही है — सीखना, समझना और लौटकर समाज को लौटाना. यह सफर सिर्फ मेरा नहीं है. यह उन लाखों-करोड़ों बहुजन युवाओं की कहानी है जो आज भी हाशिए से मुख्यधारा तक पहुंचने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

मैं लौटूंगी — नए अनुभवों के साथ, नई ताक़त के साथ.

क्योंकि ये सिर्फ शिक्षा की यात्रा नहीं, यह सामाजिक न्याय की साधना है.

जय भीम | जय हिंद | जय सामाजिक न्याय

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