भारत सरकार की चुप्पी पर उठाए सवाल
तीसरा पक्ष ब्यूरो नई दिल्ली,12 अगस्त 2025 – सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक ऐसा बयान दिया है जिसने सत्ता की चुप्पी अंतरराष्ट्रीय राजनीति और इंसानियत – तीनों को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है. उन्होंने इज़राइल पर फ़िलिस्तीन के निर्दोष नागरिकों विशेषकर बच्चों पर नरसंहार का आरोप लगाया हैऔर भारत सरकार की शर्मनाक खामोशी पर तीखा सवाल दागा है.
प्रियंका का यह पोस्ट महज़ एक राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं बल्कि एक मानवीय चेतावनी भी है. जब मासूम बच्चे भूख से तड़पकर मर रहे हों और दुनिया ताक रही हो – तब भारत जैसे देश की चुप्पी क्या एक नई तरह की क्रूरता नहीं है?
आइए, जानते हैं प्रियंका गांधी के इस वायरल पोस्ट में क्या कहा गया है और क्यों यह बयान सत्ता के गलियारों में भूचाल ला सकता है.
प्रियंका गांधी वाड्रा का X (ट्विटर) पोस्ट पर ट्विट करते हुये लिखा
प्रियंका गांधी वाड्रा का X (ट्विटर) पोस्ट पर ट्विट करते हुये लिखा कि,
इज़राइली सरकार नरसंहार कर रही है.उसने 60,000 से ज़्यादा लोगों की हत्या की है, जिनमें 18,430 बच्चे थे.
उसने सैकड़ों लोगों को भूख से मार डाला है. जिनमें कई बच्चे भी शामिल हैं और लाखों लोगों के भूख से मरने का खतरा है.
चुप्पी साधकर और निष्क्रियता से इन अपराधों को बढ़ावा देना अपने आप में एक अपराध है.
यह शर्मनाक है कि भारत सरकार चुप है जबकि इज़राइल फ़िलिस्तीन के लोगों पर यह कहर ढा रहा है.
इस पोस्ट ने न केवल सोशल मीडिया पर हलचल मचा दिया है बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी गंभीर बहस छेड़ दिया है. इसके बाद प्रियंका गांधी के इस बयान को लेकर जनता, मीडिया और विपक्ष में कई तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रहा हैं.
इज़राइल का नरसंहार: जब खामोशी भी जुर्म बन जाती है…
60,000 मौतें, 18,000 बच्चे – प्रियंका गांधी ने उठाई अंतरात्मा को झकझोरने वाली आवाजकांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने इज़राइल द्वारा गाज़ा में की जा रही कथित हत्याओं को नरसंहार करार देते हुए भारत सरकार की खामोशी पर सीधा हमला बोला है. उन्होंने एक्स (Twitter) पर पोस्ट करते हुए बताया कि अब तक 60,000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों की जान जा चुका है. जिनमें 18,430 मासूम बच्चे भी शामिल हैं.यह आँकड़े सिर्फ़ संख्या नहीं बल्कि मानवता की हत्या की गवाही हैं.
भूख से तड़पते बच्चे सन्नाटा साधे नेता – प्रियंका ने किया सवाल: क्या भारत की आत्मा मर गई है?
प्रियंका गांधी ने कहा कि सैकड़ों लोगों की मौत भूख से हो चुकी है और लाखों की जान ख़तरे में है. सिर्फ़ हथियारों से नहीं भूख से भी नरसंहार हो रहा है – और दुनिया देख रही है. भारत चुप है. उन्होंने भारत की नैतिक भूमिका पर सवाल उठाया है कि,क्या हम सिर्फ़ व्यापार और रणनीति के लिए ज़िंदा हैं.या इंसानियत भी कोई चीज़ है?
भारत सरकार की शर्मनाक चुप्पी – क्या दोस्ती की कीमत इंसानियत है?
प्रियंका गांधी के शब्दों में स्पष्ट नाराज़गी दिखी जब उन्होंने लिखा कि,यह शर्मनाक है कि भारत सरकार चुप है जबकि इज़राइल फिलिस्तीन के लोगों पर कहर बरपा रहा है.इस चुप्पी को उन्होंने अपराध को बढ़ावा देना करार दिया है.क्या इज़राइल के साथ कूटनीतिक रिश्ते इंसानियत की कीमत पर निभाये जा रहे हैं?
ये भी पढ़े :तानाशाही बनाम लोकतंत्र:विपक्ष का सरकार पर सबसे बड़ा हमला
ये भी पढ़े :फतेहपुर की आग से पहले चेत जाए सरकार: मायावती का सख़्त संदेश
क्या भारत अब भी वैश्विक नैतिक ताकत है? विपक्ष ने उठाया बड़ा सवाल
विपक्ष लगातार यह मांग कर रहा है कि भारत सरकार को इस जनसंहार पर स्पष्ट और मानवीय रुख अपनाना चाहिये.मगर अब तक न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और न ही विदेश मंत्रालय की ओर से कोई ठोस बयान सामने आया है. क्या भारत अब वैश्विक नैतिक ताकत के रूप में अपनी पहचान खो रहा है?
प्रियंका गांधी बनीं मानवाधिकार की आवाज़ – क्या जनता को झकझोर पाएगी यह पुकार?
प्रियंका गांधी का यह पोस्ट सिर्फ़ एक राजनीतिक बयान नहीं बल्कि एक मानवीय चेतावनी भी है. उन्होंने हर भारतीय से सवाल पूछा है कि –अगर हम चुप हैं.तो क्या हम भी दोषी नहीं? अब देखना यह है कि क्या यह पुकार जनता और सिविल सोसाइटी को जागृत कर पाएगा और क्या सरकार को अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ेगी?
निष्कर्ष: अब वक्त है जब सिर्फ़ चुप रहना भी अपराध है
यह लेख किसी पार्टी के समर्थन या विरोध में नहीं है बल्कि उस मूलभूत सवाल को उठाता है – क्या एक लोकतांत्रिक और संवेदनशील राष्ट्र को नरसंहार पर खामोश रहना चाहिए? प्रियंका गांधी वाड्रा की इस पोस्ट ने न केवल सत्ता की चुप्पी को उजागर किया है.बल्कि हर भारतीय की आत्मा को झकझोरने की कोशिश भी किया है.

मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.