ग्रेट निकोबार परियोजना को बताया आदिवासी अधिकारों पर हमला
तीसरा पक्ष ब्यूरो नई दिल्ली, 8 सितंबर 2025 — कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ग्रेट निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित मेगा परियोजना को लेकर केंद्र सरकार पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. प्रियंका ने इसे आदिवासी अधिकारों का हनन और पर्यावरणीय विनाश की ओर उठाया गया खतरनाक कदम बताया है.
उन्होंने अपने X (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर पोस्ट करते हुए लिखा है कि – ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना एक गंभीर दुस्साहस है, जो आदिवासी अधिकारों का हनन करती है और कानूनी व विचार-विमर्श प्रक्रियाओं का मज़ाक उड़ाती है.जब शोम्पेन और निकोबारी जनजातियों का अस्तित्व ही दांव पर लगा हो, तो हमारी सामूहिक अंतरात्मा चुप नहीं रह सकती और न ही रहनी चाहिए.
प्रियंका गांधी ने आगे कहा कि आने वाली पीढ़ियों के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम एक अत्यंत विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट होने से बचाएं. उनके मुताबिक, यह परियोजना केवल पेड़-पौधों और जंगलों को खत्म करने तक सीमित नहीं है. बल्कि इससे स्थानीय समाज और संस्कृति पर भी गहरा आघात होगा.
सोनिया गांधी का समर्थन
इस मुद्दे पर कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी चिंता जताई है. उन्होंने प्रतिष्ठित अख़बार द हिंदू में प्रकाशित एक स्तंभ में लिखा है कि निकोबार जैसे संवेदनशील क्षेत्र में इस तरह का विकास मॉडल भारत की पारंपरिक मूल्यों और सतत विकास की प्रतिबद्धता के खिलाफ है.
सोनिया गांधी ने अपने लेख में कहा कि जब विकास और पर्यावरण में संतुलन बिगड़ जाता है. तो उसका खामियाजा हमेशा सबसे कमजोर तबके—जैसे कि आदिवासी और स्थानीय समुदायों—को भुगतना पड़ता है.
ग्रेट निकोबार परियोजना क्या है?
केंद्र सरकार की ग्रेट निकोबार परियोजना में एक बड़े स्तर का इंफ्रास्ट्रक्चर विकास शामिल है. इसमें शामिल हैं:
अंतरराष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट पोर्ट
हवाई अड्डा
पावर प्लांट
नए टाउनशिप और औद्योगिक क्षेत्र
इस पूरी परियोजना के लिए हजारों हेक्टेयर जंगल काटे जाने की योजना है. पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि इससे शोम्पेन और निकोबारी जनजातियों के जीवन पर सीधा असर पड़ेगा, क्योंकि वे जंगलों और प्रकृति पर निर्भर रहते हैं.
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विपक्ष का सरकार पर हमला
कांग्रेस का आरोप है कि सरकार ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने में न तो स्थानीय समुदायों से सही परामर्श लिया और न ही कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया. प्रियंका गांधी ने इसे न्याय का उपहास और राष्ट्रीय मूल्यों के साथ विश्वासघात” करार दिया है.
पर्यावरणविदों का भी कहना है कि परियोजना के नाम पर विकास की एक ऐसी परिभाषा थोप दी जा रही है. जो न तो स्थानीय समाज के अनुकूल है और न ही पारिस्थितिकीय संतुलन के अनुकूल है .
आदिवासी अधिकारों का सवाल
भारत का संविधान और अंतरराष्ट्रीय समझौते आदिवासी समुदायों के अधिकारों और उनकी भूमि की रक्षा की गारंटी देते हैं. लेकिन निकोबार में रहने वाले शोम्पेन और निकोबारी समुदाय के लोग आज अपनी भूमि, संस्कृति और अस्तित्व को लेकर सबसे बड़े खतरे का सामना कर रहे हैं.
सामाजिक संगठनों का कहना है कि अगर यह परियोजना अपने वर्तमान स्वरूप में लागू की जाती है, तो इससे आदिवासी समाज को विस्थापन और सांस्कृतिक विनाश का सामना करना पड़ेगा.
आगे की राह
प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी के बयानों से स्पष्ट है कि कांग्रेस इस परियोजना को लेकर राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर विरोध का मोर्चा खोलने की तैयारी कर रही है. विपक्षी दलों की ओर से भी केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ाया जा रहा है कि वह इस परियोजना पर पुनर्विचार करे और व्यापक जन संवाद शुरू करे.
अब सवाल यह है कि केंद्र सरकार बढ़ते विरोध और पर्यावरणीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए क्या कदम उठाएगी. क्या यह परियोजना समीक्षा के लिए भेजी जाएगी या सरकार अपने वर्तमान रुख पर अड़ी रहेगी?
मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.



















