खेत बहाए, भविष्य उजाड़ा,जमीन दोबारा उपजाऊ होने की उम्मीद नहीं
तीसरा पक्ष ब्यूरो 3 सितंबर–पंजाब के कई गाँव इस समय नदियों के बढ़ते जलस्तर की चपेट में हैं.बाढ़ का पानी जहाँ गाँवों और घरों में खतरा पैदा कर रहा है. वहीं असली तबाही उस वक्त सामने आई जब नदियों ने अपना रास्ता बदलकर सीधे किसानों की हरी-भरी फसलें बहा दीं.पट्टी विधानसभा के मरार गाँव से उठी यह त्रासदी अब पूरे प्रदेश के किसानों को डराने लगी है.
बाढ़ से नहीं, नदियों के बदलते रास्ते से है असली तबाही
मनीष सिसोदिया ने X (ट्विटर) पर लिखा कि सामान्य बाढ़ में पानी उतरने के बाद जीवन फिर से शुरू हो जाता है.लेकिन अब हालात कहीं ज़्यादा गंभीर हैं. क्योंकि नदियाँ अपना रौद्र रूप दिखाते हुए खेती योग्य जमीन को ही निगल रही हैं. खेत बह जाने का मतलब है कि यह जमीन कभी दोबारा खेती लायक नहीं बनेगी.
हर गाँव में 40–50 एकड़ उपजाऊ भूमि बह गई
मरार गाँव ही नहीं, बल्कि आसपास के हर गाँव में 40 से 50 एकड़ तक की फसलें पानी में समा चुकी हैं.यह सिर्फ मौसमी नुकसान नहीं, बल्कि स्थायी त्रासदी है.बाढ़ उतरने के बाद भी इन खेतों पर फसलें नहीं उगाई जा सकेंगी.
किसानों का दर्द: हमारा भविष्य ही बह गया
स्थानीय किसानों का कहना है कि इस आपदा ने उनका सालभर का श्रम मिट्टी में मिला दिया.पर इससे भी बड़ा संकट यह है कि भविष्य की पीढ़ियाँ अब इन खेतों से जीवन नहीं चला पाएँगी. किसानों का दर्द साफ है – बाढ़ से लड़ लेते, पर जमीन के बह जाने से हमारा भविष्य उजड़ गया.
प्रशासन और सरकार की खामोशी पर सवाल
गाँवों में लगातार कटाव और खेत बहने की खबरें आने के बावजूद प्रशासन की चुप्पी हैरान करने वाली है. राहत और बचाव कार्य धीमी रफ़्तार से चल रहे हैं और मुआवज़े की कोई ठोस घोषणा नहीं की गई है. किसानों का कहना है कि नेताओं के वादे सिर्फ कागज़ों तक सीमित हैं.
ठोस कदम नहीं उठे तो और बर्बाद होगी खेती
विशेषज्ञों का माने तो उनका यह कहना है कि अगर सरकार ने तुरंत नदियों के कटाव को रोकने के लिये और प्रभावित किसानों को मुआवज़ा देने के लिए कोई कदम नहीं उठाया तो आने वाले वर्षों में पंजाब की बड़ी खेती योग्य भूमि नदियों के हवाले हो जाएगी.यह सिर्फ किसानों की समस्या नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की खाद्य सुरक्षा पर संकट है.
किसानों का दर्द: सालभर की मेहनत पर पानी फिरा
मरार गाँव और आसपास के इलाकों के किसानों का कहना है कि यह आपदा उनकी सालभर की मेहनत को मिटा रही है. खेतों के बह जाने का मतलब सिर्फ मौजूदा फसल का नुकसान नहीं, बल्कि भविष्य की खेती भी खतरे में पड़ना है.कई परिवार अब अपने जीविकोपार्जन को लेकर चिंतित हैं.
निष्कर्ष
पंजाब के किसानों के सामने आज जो संकट खड़ा है, वह महज़ प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि प्रशासन की लापरवाही का भी नतीजा है.अब सवाल यह है कि क्या सरकार किसानों की पुकार सुनेगी या फिर उनकी जमीन और भविष्य दोनों नदियों के हवाले कर दिए जाएँगे.

मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.