मेड इन इंडिया या मेड इन चाइना पुर्ज़ों से भारत में असेंबल?
तीसरा पक्ष ब्यरो पटना,19 जुलाई: भारत को एक वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने के उद्देश्य से वर्ष 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ पहल की शुरुआत किया गया था. इसका उद्देश्य न केवल विदेशी निवेश को आकर्षित करना था. बल्कि घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित कर रोजगार सृजन, तकनीकी आत्मनिर्भरता और औद्योगिक विकास को गति भी देना था. हालांकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा उठाए गए सवालों ने इस महत्वाकांक्षी योजना की वास्तविकता और प्रभावशीलता पर एक नई बहस को जन्म दिया है.
राहुल गांधी का दावा है कि मेक इन इंडिया के अंतर्गत जो उत्पाद या बनाये जा रहा है. वह वास्तव में भारत में निर्मित नहीं बल्कि केवल असेंबल किए जा रहा है. उन्होंने विशेष रूप से चीन से आयातित पुर्जों पर भारत की निर्भरता को उजागर किया है.जिससे देश की मैन्युफैक्चरिंग नीति की आत्मनिर्भरता पर प्रश्नचिह्न लगाता हैं. यह मुद्दा सिर्फ तकनीकी या आर्थिक नहीं है.बल्कि भारत की औद्योगिक दिशा और नीति नियोजन से जुड़ा एक बड़ा प्रश्न बन गया है.इस लेख में हम राहुल गांधी के आरोपों मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की वर्तमान स्थिति और आत्मनिर्भर भारत के सपने की व्यवहारिकता पर विस्तार से चर्चा करेंगे.
मेक इन इंडिया’ बनाम ‘असेंबल इन इंडिया’?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने देश की मैन्युफैक्चरिंग नीति को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दिया है.उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट के जरिए ‘मेक इन इंडिया’ की जमीनी हकीकत पर सवाल उठाते हुए उन्होंने दावा किया कि यह पहल अब केवल ‘असेंबल इन इंडिया’ बनकर रह गई है.
उनका सबसे प्रमुख तर्क यह है कि भारत में जो उत्पाद बनाये जा रहे हैं. जैसे कि टीवी और आईफोन , यह असल में भारत में निर्मित नहीं होता है बल्कि इकट्ठा किए जा रहा है. उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि एक सामान्य टीवी में इस्तेमाल होने वाले 80% पुर्जे चीन से आयात किए जाते हैं. जिससे स्थानीय उत्पादन की भूमिका गौण हो जाता है.
क्या ‘मेक इन इंडिया’ अपने लक्ष्य से भटक रहा है?
2014 में लॉन्च गया ‘मेक इन इंडिया’ पहल का उद्देश्य भारत को एक वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना था. जहां घरेलू और विदेशी कंपनियां मिलकर उत्पादन करें और रोजगार के अवसर बढ़ें.लेकिन राहुल गांधी के अनुसार इस पहल ने स्थानीय रोजगार सृजन और तकनीकी आत्मनिर्भरता को अपेक्षित गति से नहीं बढ़ाया है.
राहुल गांधी उनका आरोप है कि:
- भारत के अधिकांश उद्योग अब भी कच्चे माल और तकनीक के लिए विदेशी आपूर्ति पर निर्भर हैं.
- छोटे और मझोले उद्योगों (MSMEs) को पर्याप्त सहयोग या प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है.
- चुनिंदा कॉरपोरेट्स को दिया जा रहा है प्राथमिकता और भारी करों के कारण आम उद्यमी पीछे छूट रहा है.
राहुल गांधी की मांगें और सुझाव
राहुल गांधी ने कुछ ठोस कदमों की मांग किया है ताकि भारत को वास्तव में एक मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस बनाया जा सके:
- घरेलू उत्पादन क्षमता को मजबूत करने वाली नीतियां लागू किया जायें.
- आयात पर निर्भरता कम की जाये खासकर चीन जैसे देशों से.
- छोटे और मझोले उद्यमों के लिए टैक्स राहत सस्ती पूंजी और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराया जाये.
- शिक्षा और कौशल विकास में निवेश करके युवाओं को मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के लिए तैयार किया जाये .
- उन्होंने चेतावनी दिया कि अगर इन मूलभूत सुधारों पर ध्यान नहीं दिया गया. तो ‘मेक इन इंडिया’ सिर्फ एक राजनीतिक नारा बनकर रह जयेगा.
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
राहुल गांधी की पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गया है.कुछ यूजर्स ने उनके तर्कों को आंखें खोलने वाला बताया है जबकि अन्य ने ‘मेक इन इंडिया’ को अब तक की प्रगति का बचाव किया है. कुछ प्रमुख बिंदु जो बहस में उभरे.
सरकार समर्थकों ने कहा कि देश में आईफोन असेंबली शुरू होना FDI और तकनीकी ट्रांसफर की दिशा में सकारात्मक संकेत है.
आलोचकों ने कहा कि मूल मैन्युफैक्चरिंग के बजाय स्क्रूड्राइवर असेंबली से भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जायेगा.
यह भी पढ़े :सांकेतिक विरोध से सम्मान तक,भैंस बाले बाबा’ बना जन-आंदोलन का चेहरा
यह भी पढ़े :प्रियंका भारती का तीखा प्रहार: चुनाव आयोग से लेकर नीतीश-प्रशांत तक
सवाल जो उठते हैं…
क्या भारत की मैन्युफैक्चरिंग नीति दीर्घकालिक सोच से संचालित हो रहा है?
क्या ‘मेक इन इंडिया’ का असर स्थानीय रोजगार और तकनीकी आत्मनिर्भरता पर दिख रहा है?
क्या MSMEs को वास्तव में उतना समर्थन मिल रहा है जितना प्रचारित किया जा रहा है?
निष्कर्ष
राहुल गांधी का यह हस्तक्षेप केवल राजनीतिक आलोचना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की औद्योगिक नीति की वास्तविक स्थिति पर एक तीखी और सटीक टिप्पणी भी है. यह जरूरी है कि हम केवल असेंबली हब बनने की बजाय तकनीकी और औद्योगिक शक्ति के रूप में उभरने के लिए स्थानीय उत्पादन, नवाचार और कौशल विकास को केंद्र में रखें.मेक इन इंडिया’ को अगर सच में सफल बनाना है तो यह ‘मेड बाय इंडिया’ की भावना से भी जुड़ना होगा न कि सिर्फ ‘मेड इन इंडिया’ के लेबल से.

मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.