राहुल गांधी ने केंद्र और हरियाणा सरकार को घेरा
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 14 अक्टूबर — देश की प्रशासनिक व्यवस्था और समाज की अंतरात्मा को झकझोर देने वाली एक दर्दनाक घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। हरियाणा कैडर के आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या ने न केवल पुलिस व्यवस्था बल्कि शासन-प्रशासन की संवेदनहीनता पर भी गंभीर सवाल खड़ा किया है.
इस घटना को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री से कड़ी कार्रवाई करने की मांग किया है.उन्होंने कहा है कि यह केवल एक आत्महत्या नहीं, बल्कि,सिस्टम की आत्मा पर लगा एक गहरा घाव है.
राहुल गांधी का दर्दभरा ट्वीट: पत्नी एक सप्ताह से सम्मानजनक अंतिम संस्कार की प्रतीक्षा कर रही हैं
राहुल गांधी ने अपने आधिकारिक X (Twitter) हैंडल पर लिखा है कि,
IPS अधिकारी वाई. पूरन कुमार जी की आत्महत्या हमारे समाज और सिस्टम की अंतरात्मा को झकझोर देने वाली त्रासदी है. इससे पीड़ादायक क्या हो सकता है कि वाई. पूरन कुमार जी की पत्नी एक सप्ताह से अपने पति का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार करने का इंतेज़ार कर रही हैं. वह, उनके बच्चे और पूरा दलित समाज जिस मानसिक पीड़ा से गुजर रहा है, उसकी कल्पना भी भयावह है.
उन्होंने आगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा की सरकार पर तीखा प्रहार करते हुए कहा है कि,
दिन बीते जा रहे हैं मगर अब भी कोई गिरफ्तारी नहीं – यह साफ़ अन्याय है.प्रधानमंत्री और हरियाणा मुख्यमंत्री तुरंत कार्रवाई करें, दोषियों को सज़ा दें और इस दलित परिवार को न्याय और सम्मान दिलाएं.
दलित समाज में उबाल — न्याय की मांग तेज़
वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या के बाद से दलित समाज में भारी आक्रोश है.सोशल मीडिया पर लगातार न्याय की मांग को लेकर तेजी से आवाज उठ रहा है कई सामाजिक संगठनों और दलित अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी इस घटना को सिस्टमेटिक भेदभाव और जातिगत उत्पीड़न का परिणाम बताया है.
कहा जा रहा है कि वाई. पूरन कुमार को लगातार मानसिक उत्पीड़न और अपमान का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से उन्होंने यह कदम उठाया है.
दलित अधिकार संगठनों का कहना है कि जब एक आईपीएस अधिकारी सुरक्षित नहीं है, तो एक आम दलित नागरिक के लिए न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
सरकार पर सवाल: कानून सबके लिए समान’ या सत्ता के हिसाब से?
राहुल गांधी के ट्वीट ने इस बहस को और तीखा बना दिया है कि क्या भारत में कानून सबके लिए समान है?
उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा हमला बोलते हुए कहा है कि,
कितने पत्थरदिल हैं मोदी जी और उनकी हरियाणा सरकार, जिनका दिल नहीं पसीज रहा। उनके शासन में दलितों पर नृशंस ज़ुल्म जारी हैं, और अब तक कोई गिरफ्तारी तक नहीं हुई है।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं बल्कि सत्ता, जाति और न्याय प्रणाली की संरचनात्मक विफलता को उजागर करता है.
मानवाधिकार और संविधान पर चोट
भारत का संविधान समानता और न्याय के सिद्धांत पर आधारित है. लेकिन हालिया घटनाएँ इस सोच पर सवाल खड़ा कर रही हैं.वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या के बाद जो घटनाएँ सामने आई हैं, वे दिखाती हैं कि जातिगत भेदभाव और संस्थागत पक्षपात आज भी समाज में गहराई तक मौजूद हैं.
राहुल गांधी ने इस संदर्भ में कहा कि,
पूरा दलित समाज जिस मानसिक पीड़ा से गुजर रहा है, उसकी कल्पना से ही मन विचलित हो रहा है. यह केवल एक परिवार का दर्द नहीं, बल्कि पूरे देश की आत्मा पर चोट है.
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विपक्ष की एकजुट प्रतिक्रिया — दलित उत्पीड़न पर अब चुप्पी नहीं
कांग्रेस के अलावा कई विपक्षी दलों ने भी इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया दी है.
प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि, अगर एक आईपीएस अधिकारी को भी न्याय नहीं मिल रहा, तो आम नागरिक की हालत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
आप नेता संजय सिंह ने ट्वीट किया कि,यह सिस्टम की नाकामी है, और दलितों के साथ दोहरे मापदंड का उदाहरण.
विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार को तत्काल न्यायिक जांच करवानी चाहिए और दलित अधिकारियों एवं कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए.
जनता का सवाल — न्याय कब मिलेगा?
देशभर में इस घटना के बाद से ही सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कब तक दलित समुदाय के साथ ऐसी घटनाएँ होती रहेंगी?
क्या वाई. पूरन कुमार की मौत भी सिर्फ एक आंकड़ा बनकर रह जाएगी, या फिर यह किसी बड़े बदलाव की शुरुआत होगी?
राहुल गांधी का यह बयान इस मुद्दे को केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का आह्वान बनाता है. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि,
दोषियों को सज़ा दो, और दलित परिवार को न्याय और सम्मान दिलाओ.
निष्कर्ष: न्याय और संवेदना की परीक्षा का समय
वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या केवल एक दुखद घटना नहीं, बल्कि भारतीय समाज के लिए आत्ममंथन का क्षण है.
राहुल गांधी का बयान इस बात की याद दिलाता है कि ,न्याय में देरी, न्याय से इनकार के बराबर होती है.
अब देखना यह है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस त्रासदी को केवल राजनीतिक विवाद बनाकर छोड़ देंगी या फिर सच्चे अर्थों में न्याय और संवेदना का परिचय देंगी.
मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.



















