संविधान की रक्षा और न्यायपूर्ण बिहार की गारंटी — का. विश्वनाथ चौधरी
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,1 नवंबर 2025— बिहार की राजनीति में इस बार राजगीर (सु.) विधानसभा सीट पर एक नया लेकिन अनुभवी चेहरा चर्चा में है — का. विश्वनाथ चौधरी, जो भाकपा–माले (CPI–ML) के प्रत्याशी के रूप में इंडिया गठबंधन से चुनाव मैदान में हैं.
वे सिर्फ एक उम्मीदवार नहीं, बल्कि संघर्ष, समर्पण और सामाजिक न्याय के प्रतीक हैं.छात्र जीवन से लेकर इंजीनियरिंग सेवा और फिर सामाजिक–राजनीतिक आंदोलन तक, उनकी यात्रा लगातार दलित, वंचित और उत्पीड़ित तबकों के अधिकारों की रक्षा में समर्पित रही है.
छात्र जीवन से क्रांतिकारी राजनीति की शुरुआत
नालंदा जिले के कराय परशुराय प्रखंड के सबचक गांव में जन्मे का. विश्वनाथ चौधरी पासी समुदाय से आते हैं.1970 के दशक में जब बिहार के गाँवों में दलित–गरीबों के हक़ की लड़ाई तेज हो रही थी, उस समय उन्होंने बहुत कम उम्र में ही सामाजिक न्याय की इस धारा में कदम रखा था.
उनका गाँव उन्हीं आंदोलनों का एक प्रमुख केंद्र रहा जहाँ से परिवर्तन की आवाज़ गूंजती थी.
1978 में उन्होंने पटना इंजीनियरिंग कॉलेज (अब पीयू) में प्रवेश लिया.उस समय कॉलेज का हॉस्टल भाकपा–माले की छात्र राजनीति का केंद्र था.यहीं से कई नेताओं ने क्रांतिकारी विचारधारा को अपनाया.
का. चौधरी ने क्रिएटिव स्टूडेंट्स यूनियन (CSU) की नींव रखी और बाद में एबीएसयू (ABSU) और भासू (BHASU) जैसे संगठनों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
उन्होंने छात्र जीवन में ही एससी–एसटी छात्रों के अधिकारों के लिए संघर्ष छेड़ा — छात्रवृत्ति, आरक्षण और समान अवसरों के लिए उन्होंने कई ऐतिहासिक आंदोलनों का नेतृत्व उन्होंने किया है.
सार्वजनिक सेवा में ईमानदारी और प्रतिबद्धता का उदाहरण
पढ़ाई पूरी करने के बाद का. विश्वनाथ चौधरी ने बिहार सरकार की इंजीनियरिंग सेवा में योगदान दिया है.
लघु सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण और ग्रामीण विकास से जुड़े विभागों में उन्होंने कई ऐसे कार्य किए, जिन्होंने ग्रामीण इलाकों में पानी और सिंचाई की समस्याओं को हल करने में अहम योगदान दिया है.
उनकी ईमानदारी और पारदर्शिता के लिए वे प्रशासनिक हलकों में भी सम्मानित रहे.
2019 में वे मुख्य अभियंता (Chief Engineer) के पद से सेवानिवृत्त हुए, लेकिन समाज सेवा के प्रति उनका समर्पण वहीं नहीं रुका.
सेवानिवृत्ति के बाद फिर मैदान में — सामाजिक न्याय की आवाज़ बने
सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने फिर से सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई.
एससी–एसटी सब–प्लान, प्रोन्नति में आरक्षण, और संविधानिक अधिकारों की रक्षा जैसे सवालों पर वे निर्णायक आवाज़ बने.
उन्होंने इन मुद्दों पर व्यापक जन–आंदोलन खड़े किए, जो आज भी दलित समुदाय के बीच प्रेरणा का स्रोत हैं.
का. चौधरी ने हमेशा कहा कि,
जब तक समाज में समानता और न्याय की गारंटी नहीं होगी, तब तक विकास अधूरा रहेगा.
उनकी यही सोच उन्हें एक संवेदनशील नेता और नीतिगत योद्धा बनाती है.
राजनीति में नया अध्याय — जनता की जीत के लिए मैदान में
अब भाकपा–माले ने उन्हें राजगीर (सु.) विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है.
यह निर्णय न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता का प्रमाण है, बल्कि जनता के उस विश्वास का भी प्रतीक है जो वे वर्षों से अपने काम और संघर्ष के जरिए अर्जित करते आए हैं.
भाकपा–माले का मानना है कि का. विश्वनाथ चौधरी की जीत से राजगीर में एक नई राजनीतिक संस्कृति स्थापित होगी — जहाँ सत्ता का केंद्र जनता होगी, न कि ठेकेदारों और दलालों का गठजोड़.
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का. विश्वनाथ चौधरी का विज़न — न्यायपूर्ण और समतामूलक बिहार
का. चौधरी का लक्ष्य सिर्फ चुनाव जीतना नहीं, बल्कि एक न्यायपूर्ण बिहार का निर्माण है.
वे शिक्षा, रोजगार, और भूमि सुधार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देने की बात करते हैं.
दलितों और पिछड़ों के अधिकारों की रक्षा, महिलाओं की सुरक्षा, युवाओं को अवसर — यही उनके चुनावी एजेंडे के मूल बिंदु हैं.
वे कहते हैं,
बदलाव किसी नेता का नहीं, जनता की एकजुटता का नाम है. मैं जनता के लिए और जनता के साथ हूं.
निष्कर्ष
राजगीर विधानसभा से का. विश्वनाथ चौधरी की उम्मीदवारी उस राजनीतिक सोच की पुनर्स्थापना है जो ईमानदारी, संघर्ष और जनता के मुद्दों पर टिकी है.
वे इंजीनियर हैं, लेकिन अब वे जनता के इंजीनियर बनकर राजगीर के भविष्य को नया आकार देने के लिए मैदान में उतरे हैं.
उनकी जीत सिर्फ एक सीट की जीत नहीं होगी,
बल्कि यह दलित–वंचित समाज की आवाज़, संविधान की रक्षा और नये बिहार की दिशा में एक बड़ा कदम होगी.

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