नदियों का दर्द: बिहार में जल संकट का हल कब?

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Ajit Kumar

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तीसरा पक्ष डेस्कः बिहार को नदियों का प्रदेश भी कहा जाता है, गंगा, कोसी, गंडक, सोन जैसी प्रमुख नदियां जीवनदायिनी नदियों का गढ़ है. यह नदियाँ न केवल खेती और अर्थव्यवस्था का रीढ़ हैं, बल्कि यहाँ के संस्कृति और सभ्यता का आधार भी हैं. लेकिन विडंबना यह है कि नदियों के इस प्रचुरता के बावजूद बिहार राज्य जल संकट से जूझ रहा है. बाढ़ और सूखा का दोहरा दंश, प्रदूषण, और जल प्रबंधन के कमीया ने नदियों को दर्द में डुबो कर रख दिया है.अब सवाल उठता है—इस संकट का हल कब और कैसे संभव है?इसका समाधान क्या है. यह लेख बिहार के जल संकट के जड़ों को खंगालता है और इसके समाधान के लिए ठोस सुझाव भी प्रस्तुत करता है.

बिहार में जल संकट की जड़ें

बाढ़ और सूखे का दोहरा संकट

बिहार में हर साल बाढ़ आता है और लाखों लोगों को बेघर कर देता है. कोसी नदी जिसको “बिहार का शोक” कहा जाता है, अपने तांडव से किसानो के फसलों, लोगो के घरों और आजीविका को नष्ट कर देती है.तहस नहस कर देता है. दूसरी तरफ दक्षिणी बिहार के कुछ हिस्सों में सूखे की स्थिति काफी भयावह है. जलवायु परिवर्तन ने इस संकट को और गहरा किया है.जिसके कारण वर्षा का पैटर्न भी अनिश्चित हो गया है.समय पर बारिश होगा या नहीं यह अनुमान लगाना अनिश्चित हो गया है.

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नदियों का प्रदूषण

गंगा और इसके सहायक नदियाँ औद्योगिक कचरे, घरेलू सीवेज, और धार्मिक गतिविधियों से लगातार प्रदूषित होते जा रहा है. गंगा सफाई परियोजनाएँ (नमामि गंगे) के प्रयास के बावजूद भी बिहार के नदियां के जल की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार ज्यादा नहीं हुआ है. प्रदूषित जल न केवल पीने के लिए अनुपयुक्त है, बल्कि यह मछली पालन और कृषि को भी प्रभावित करता जा रहा है.

जल प्रबंधन की कमी

बिहार में जल संसाधनों का प्रबंधन भी अपर्याप्त और अव्यवस्थित है. बांधों और नहरों का रखरखाव भी सही तरह से नहीं हो रहा, जिससे सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण में हर साल बाधा आती है. भूजल का अंधाधुंध दोहन भी एक बहुत ही गंभीर समस्या है, जिसके कारण कई इलाको में जल स्तर खतरनाक रूप से नीचे चला गया है.

सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ

जल संकट का सबसे ज्यादा प्रभाव सबसे अधिक गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर अधिक पड़ता है. पानी के कमी और बाढ़ से प्रभावित इलाको में शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के अवसर भी बहुत ही सीमित हो जाता हैं. इसके अलावा, नीतियों के निर्माण में स्थानीय समुदायों के भागीदारी की कमी भी एक बड़ी बाधा बन जाता है.

समाधान के दिशा में कदम

बाढ़ और सूखा प्रबंधन

बाढ़ को नियंत्रण करने के लिए दीर्घकालिक उपाय: बांधों और तटबंधों का आधुनिकीकरण होना चाहिए , साथ ही नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बनाए रखने के लिए वेटलैंड्स और बाढ़ मैदानों का संरक्षण भी जरूरी है. कोसी नदी के लिए विशेष प्रबंधन योजना बनाना चाहिये.

सूखा निवारण: वर्षा जल संचयन और छोटे-छोटे जलाशयों का निर्माण करना चाहिए ड्रिप इरिगेशन और अन्य जल-कुशल तकनीकों को बिशेष रूप से बढ़ावा देना भी जरुरी है.

जलवायु अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए फसल चक्र में बदलाव और सूखा-प्रतिरोधी फसलों को प्रोत्साहन देना चाहिये.

नदियों के सफाई और संरक्षण

प्रदूषण नियंत्रण: औद्योगिक इकाइयों पर सख्त निगरानी की जरुरत है और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का स्थापना करना चाहिये.गंगा और इसके सहायक नदियों के लिए स्थानीय स्तर पर निगरानी समितियाँ बनाने का भी जरुरत है.

जागरूकता अभियान: धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में नदियों के प्रदूषण को कम करने के लिए समुदायों को शिक्षित करना होगा लोगो को जागरूक करना बेहद जरूरी है.

इको-रेस्तरेशन: नदियों के किनारे पेड़ पौधा लगाना चाहिये और जैव-विविधता संरक्षण के लिए परियोजनाएँ शुरू करना भी जरूरी है.

जल प्रबंधन में सुधार

स्मार्ट जल प्रबंधन: नदियों और नहरों के पानी का डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम लागू करना चहिये ताकि जल वितरण में पारदर्शिता आये.

भूजल संरक्षण: भूजल रिचार्ज के लिए रेनवाटर हार्वेस्टिंग को भी अनिवार्य करना चाहिए और अंधाधुंध बोरवेल ड्रिलिंग पर रोक लगाना भी चाहिए.

सिंचाई दक्षता: पुराने नहर प्रणालियों को नवीकरण करना जरुरी है और आधुनिक सिंचाई तकनीकों को अपनाना चाहिये इसके लिये लोगो को भी जागरूक करना चाहिए.

सामुदायिक भागीदारी और नीति में सुधार की आवश्यकता

स्थानीय भागीदारी: जल प्रबंधन करने में पंचायतों और स्थानीय समुदायों को भी शामिल करना होगा. महिलाओं के भूमिका को विशेष रूप से प्रोत्साहित करना होगा क्योंकि वे जल संग्रह और उपयोग में महत्वपूर्ण भूमिका बहुत ही अधिक भूमिका निभाता हैं.

शिक्षा और प्रशिक्षण: जल संरक्षण और प्रबंधन पर स्कूलों और समुदायों में जागरूकता कार्यक्रम चलाना चाहिए.जल के महत्व के बारे में उनको बताना चाहिये.

नीति सुधार: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय होना भी जरूरी है.और जल संसाधन प्रबंधन के लिए एकीकृत नीति का निर्माण करना चाहिये.

बिहार के लिए एक उम्मीद की किरण

बिहार में जल संकट के समाधान करने के लिए केवल सरकारी प्रयास काफी नहीं है. इसके लिए सामुदायिक सहयोग, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, और दीर्घकालिक दृष्टि को भी अपनाने की आवश्यकता है. अगर नदियों के दर्द को समझकर उनके संरक्षण और प्रबंधन पर ध्यान दिया जाये तो बिहार न केवल जल संकट से मुक्त हो सकता है, बल्कि जल-समृद्धि का एक मॉडल भी बन सकता है.

निष्कर्ष

नदियाँ जो बिहार के आत्मा हैं, और इसका दर्द पूरे प्रदेश का दर्द है. समय आ गया है कि हम नदियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से समझें और जल संकट के समाधान के लिए ठोस से ठोस कदम उठाएँ. बाढ़ और सूखा से निपटने के लिए नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए और जल प्रबंधन को स्मार्ट बनाने के लिए एकजुट होकर हम सभी को प्रयास बहुत ही जरूरी हैं. यदि बिहार अपने नदियों को बचा लेता है, तो वह न केवल अपनी अर्थव्यवस्था और संस्कृति को बचा लेगा, बल्कि आने वाला पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य भी सुनिश्चित कर पायेगा.तो आइए हम सब मिलकर नदियों के इस दर्द को उनकी खुशहाली में बदलें—क्योंकि बिहार के नदियाँ सिर्फ जल नहीं, बल्कि जीवन हैं.जल है तो जीवन है अन्यथा कुछ भी नहीं.

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