दलित नेतृत्व, तिरंगा विवाद और अंग्रेजों से संबंध पर घेरा
तीसरा पक्ष ब्यूरो नई दिल्ली, 1 अक्टूबर 2025 – आम आदमी पार्टी (AAP) के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्ष पूरे होने पर संघ से कुछ कड़े, तीखे और सच्चे सवाल उठाये हैं. उन्होंने सवाल किया कि आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद संघ ने देश के प्रति अपनी भूमिका स्पष्ट क्यों नहीं की और क्यों दलित, पिछड़े और आदिवासी समुदाय से कभी भी शीर्ष नेतृत्व नहीं चुना गया .

संजय सिंह ने कहा कि “जो राष्ट्र के नहीं हुआ , हम उनके नहीं हो सकते. यह बयान सीधे तौर पर संघ की विचारधारा और उसके 100 साल के सफर पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है.
संजय सिंह के सवाल – RSS के 100 साल का हिसाब
संजय सिंह ने अपने आधिकारिक एक्स (Twitter) हैंडल पर आरएसएस से जुड़ी कई ऐतिहासिक और वैचारिक बातों पर सवाल उठाये . उनके मुख्य सवाल इस प्रकार हैं –
दलित, पिछड़े और आदिवासी नेतृत्व की कमी
100 साल के इतिहास में एक भी RSS प्रमुख दलित, पिछड़ा या आदिवासी क्यों नहीं हुआ?
क्या संघ केवल उच्च जाति आधारित संगठन है?
मुस्लिम लीग और अंग्रेजों से रिश्ता
जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार क्यों बनाई गई?
क्या यह स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा के खिलाफ नहीं था?
आज़ादी के आंदोलन में भूमिका
क्रांतिकारियों की मुखबिरी अंग्रेजों को क्यों की गई?
क्या संघ ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?
अंग्रेजी सेना में भर्ती का सवाल
संघ के लोगों को अंग्रेजों की सेना में क्यों भर्ती कराया गया?
क्या इससे स्वतंत्रता आंदोलन कमजोर नहीं हुआ?
तिरंगे का विरोध
भारत की आन-बान-शान तिरंगे का विरोध क्यों किया गया?
आरएसएस मुख्यालय पर 52 साल तक तिरंगा क्यों नहीं फहराया गया?
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क्यों उठ रहे हैं ये सवाल?
आरएसएस इस साल अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है. संघ खुद को भारत की सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रतिनिधि बताता है, लेकिन विपक्ष और कई इतिहासकार लंबे समय से संघ पर आरोप लगाते रहे हैं कि उसने स्वतंत्रता आंदोलन में कोई सीधी भूमिका नहीं निभाया है .
संजय सिंह का यह सवाल इसलिए अहम माने जा रहे हैं क्योंकि –
संघ के 100 साल के मौके पर उसकी भूमिका पर नई बहस छिड़ गई है.
दलित, पिछड़े और आदिवासी समुदायों के प्रतिनिधित्व का मुद्दा फिर चर्चा में आया है.
आज़ादी के आंदोलन में संघ की भागीदारी पर सवाल उठाना विपक्ष की रणनीति का हिस्सा है.
विपक्ष का आरोप बनाम संघ की दलील
विपक्ष का आरोप
संघ आज़ादी की लड़ाई से दूर रहा.
संघ ने हमेशा हिंदुत्व की राजनीति को प्राथमिकता दी, न कि स्वतंत्रता संग्राम को.
संघ जाति आधारित वर्चस्ववादी संगठन है.
संघ की दलील
संघ कहता है कि उसने “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” के जरिए देश की एकता और संगठन पर काम किया.
संघ का मानना है कि “सीधा राजनीतिक आंदोलन” उसकी भूमिका नहीं थी.
स्वतंत्रता के बाद तिरंगे को स्वीकार करने में समय लगा, लेकिन आज संघ पूरे सम्मान के साथ उसे मानता है.
आरएसएस के 100 साल और राजनीतिक मायने
आज बीजेपी का पूरा राजनीतिक ढांचा आरएसएस की विचारधारा पर आधारित है.
संघ का असर अब केवल सांस्कृतिक नहीं बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर है.
ऐसे में विपक्ष RSS पर सवाल उठाकर अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बना रहा है.
निष्कर्ष
संजय सिंह के सवाल आरएसएस के 100 साल के इतिहास और उसकी भूमिका पर गहरी चोट हैं.
क्या सचमुच संघ ने दलित, पिछड़ों और आदिवासियों को कभी नेतृत्व नहीं दिया?
क्या तिरंगे का विरोध और अंग्रेजों से नज़दीकी एक ऐतिहासिक सच है?
या फिर ये सिर्फ राजनीतिक आरोप हैं?
इतिहास और राजनीति के बीच यह बहस आगे भी जारी रहेगी, लेकिन इतना तय है कि RSS के 100 साल पूरे होने पर उसकी विचारधारा और अतीत फिर से सियासी बहस का केंद्र बन गया हैं।

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