क्या बीजेपी अब अपने ही ’75 नियम’ पर दोबारा विचार करेगी? युवाओं को मौका या….नेतृत्व बदलाव पर नई बहस!
तीसरा पक्ष डेस्क,नागपुर: 11 जुलाई 2025 — राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान ने भारतीय राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है. नागपुर में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “75 की उम्र में बधाई नहीं, विदाई होनी चाहिए.” उनके इस वक्तव्य को महज एक सामान्य विचार न मानते हुए राजनीतिक हलकों में इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर संकेत मानकर खूब चर्चा हो रही है. जैसाकि हम लोग जानते हैं कि मोदी जी इस वर्ष सितंबर में 75 वर्ष के हो जाएंगे.
किस मौके पर दिया गया यह बयान?

भागवत नागपुर में आयोजित एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे. यह किताब महाराष्ट्र प्रांत के सह प्रांत प्रचारक, अ.भा. बौद्धिक प्रमुख और RSS विचारक मोरोपंत पिंगले के जीवन पर आधारित थी — “मोरोपंत पिंगले: द आर्किटेक्ट ऑफ हिंदू रिसर्जेंस”.
भागवत ने पिंगले के जीवन और विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि पिंगले अक्सर कहा करते थे, “जब 75 की उम्र में आपको शॉल ओढ़ाई जाए, तो समझिए अब विश्राम का समय आ गया है.”
क्या यह बयान प्रधानमंत्री मोदी के लिए संकेत था?

राजनीतिक पंडितों और विरोधी दलों ने भागवत के इस बयान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर इशारा मानते हुए खूब प्रतिक्रिया दी है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कटाक्ष करते हुए लिखा कि भागवत ने जैसे ही लौटे, मोदी को उनका जन्मदिन याद दिला दिया. रमेश ने यह भी जोड़ा कि भागवत स्वयं भी 11 सितंबर को 75 के हो जाएंगे.
शिवसेना (UBT) के नेता संजय राउत ने भी तंज कसते हुए कहा, “मोदी जी ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेताओं को 75 की उम्र में मार्गदर्शक मंडल में भेजा था. अब देखना है कि क्या वे खुद भी उस नियम को मानेंगे.”
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बीजेपी का जवाब: “ये व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं थी”
बीजेपी नेताओं ने भागवत के बयान को किसी विशेष व्यक्ति पर लक्षित होने से साफ इनकार किया है. गृह मंत्री अमित शाह ने मई 2023 में पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि पार्टी के संविधान में कोई आयु सीमा तय नहीं है और मोदी 2029 तक नेतृत्व करेंगे. पार्टी से जुड़े कुछ नेताओं का कहना है कि भागवत का बयान केवल एक वैचारिक सुझाव था, न कि किसी राजनीतिक कटाक्ष का हिस्सा.
खुद मोहन भागवत भी होने वाले हैं 75 के
इस बयान को दिलचस्प बनाता है यह तथ्य कि मोहन भागवत खुद 11 सितंबर 2025 को 75 साल के हो जाएंगे. उनके इस बयान को कुछ लोग उनके स्वयं के भविष्य की ओर इशारा मान रहे हैं. भागवत ने मजाक में कहा, “मैं जब मर भी जाऊंगा, तो लोग पहले पत्थर मारकर देखेंगे कि मरा हूं या नहीं.” यह हल्का-फुल्का कथन उनके विनम्र और हास्यभरे स्वभाव को दर्शाता है, लेकिन साथ ही उनके आत्मनिरीक्षण की भावना को भी प्रकट करता है.
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क्या है बीजेपी की “75 की उम्र” वाली परंपरा?
2014 के बाद बीजेपी में एक अनकही परंपरा देखने को मिली है कि जो नेता 75 की उम्र पार कर जाते हैं, उन्हें सक्रिय राजनीति से अलग कर “मार्गदर्शक मंडल” में भेजा जाता है. लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह इसके उदाहरण हैं। हालांकि, पार्टी इसे कभी औपचारिक नियम नहीं मानती.
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युवा नेतृत्व की वकालत
मोहन भागवत ने अपने बयान में केवल उम्र पर नहीं, बल्कि युवा नेतृत्व की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया. उन्होंने कहा कि अगर नेता 35 की उम्र में भी रिटायर हो जाएं, तो नई पीढ़ी को नेतृत्व का मौका मिलेगा। यह विचार RSS की उस वैचारिक सोच का हिस्सा है, जो युवा शक्ति को राष्ट्र निर्माण में निर्णायक भूमिका देने पर विश्वास रखती है.
निष्कर्ष: क्या यह महज़ विचार है या भविष्य का संकेत?
मोहन भागवत के बयान ने राजनीतिक गलियारों में एक नई हलचल पैदा कर दी है. यह सवाल अब गहराने लगा है कि क्या यह केवल एक वैचारिक अभिव्यक्ति थी, या फिर 2025 के राजनीतिक परिदृश्य की ओर कोई संकेत?
जैसे-जैसे सितंबर नज़दीक आ रहा है, जब भागवत और मोदी दोनों 75 वर्ष के होंगे, सभी की निगाहें इस ओर टिकी हैं कि क्या भारतीय राजनीति में नेतृत्व परिवर्तन की नई पटकथा लिखी जाएगी, या फिर यह चर्चा कुछ समय बाद खुद ही शांत हो जाएगी?
समय ही तय करेगा कि यह बयान इतिहास बनाएगा या एक और राजनीतिक बहस बनकर रह जाएगा.

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