आरएसएस पर उठते सवाल: सुप्रिया श्रीनेत के पोस्ट से शुरू हुई बहस
तीसरा पक्ष ब्यूरो नई दिल्ली,1 अक्टूबर 2025 – भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) हमेशा से ही चर्चा और विवाद का विषय रहा है. एक ओर भाजपा और उसके सहयोगी संगठन आरएसएस को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का वाहक बताते हैं, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस और विपक्षी दल इसके इतिहास और कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते रहते हैं.आज कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने अपने X (Twitter) पोस्ट के जरिए आरएसएस को सीधे कटघरे में खड़ा किया है. उन्होंने तीखे शब्दों में सवाल किया – आखिर किस बात के लिए आरएसएस का गुणगान किया जाए?
सुप्रिया श्रीनेत के सवाल
अपने पोस्ट में सुप्रिया श्रीनेत ने कई गंभीर बिंदु उठाये, जिनमें से कुछ ऐतिहासिक तथ्यों और कुछ विचारधारा आधारित आरोप शामिल हैं.आइए इन्हें विस्तार से समझते हैं:
अंग्रेजों की गुलामी का आरोप
श्रीनेत ने सवाल उठाया कि जब देश अंग्रेजों से लड़ रहा था, तब आरएसएस की भूमिका अस्पष्ट रही है. कई आरोप हैं कि संगठन ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी नहीं की.
तिरंगे का बहिष्कार
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि आरएसएस ने लंबे समय तक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को नहीं अपनाया. यहां तक कि संगठन अपने मुख्यालय नागपुर में भी झंडा फहराने से परहेज करता रहा है .
महानायकों और स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति रुख
उनका आरोप है कि आरएसएस विचारधारा ने भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों को “अराजक” कहकर खारिज किया है.
संविधान और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर पर हमला
उन्होंने कहा कि आरएसएस ने संविधान की प्रतियां जलाने से लेकर बाबा साहेब के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल तक किया है.
साम्प्रदायिकता और जातिवाद
श्रीनेत का कहना है कि आरएसएस ने हमेशा मनुस्मृति को बढ़ावा दिया है, जो महिलाओं और दलितों को हाशिये पर रखती है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि संगठन ने कभी किसी दलित, पिछड़े या आदिवासी को शीर्ष पर जगह नहीं दिया है.
स्वतंत्रता आंदोलनों का बहिष्कार
1930 का सविनय अवज्ञा आंदोलन और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन – दोनों में आरएसएस की भूमिका नदारद रही है , यह बात कांग्रेस प्रवक्ता ने जोर देकर कही है.
जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ गठजोड़ का आरोप
उन्होंने आरोप लगाया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आरएसएस ने कई मौकों पर मुस्लिम लीग के साथ परोक्ष रूप से समझौता किया है.
लाल किले से आरएसएस का महिमामंडन
सुप्रिया श्रीनेत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों का उल्लेख करते हुए कहा कि “लाल किले की प्राचीर से RSS का महिमामंडन असल में उसकी मान्यता दिलाने का प्रयास है.उन्होंने इसे “सियाह सच छुपाने की कोशिश” बताया और कहा कि संगठन की असलियत को भाषणों से बदला नहीं जा सकता है.
महिलाओं और सामाजिक न्याय पर आरोप
एक बड़ा आरोप महिलाओं को लेकर लगाया गया है.श्रीनेत ने कहा कि आरएसएस की विचारधारा महिलाओं को हमेशा दोयम दर्जे पर रखती है. संगठन ने न तो महिलाओं को बराबरी का स्थान दिया है और न ही उन्हें अपनी मुख्यधारा में जगह दी है .इसी तरह, दलितों और पिछड़ों के प्रति भी आरएसएस की नीतियों पर सवाल उठाये गये .
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गांधी की हत्या और गोडसे का मुद्दा
कांग्रेस प्रवक्ता ने यह भी आरोप लगाया कि महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को आरएसएस ने विचारधारा से प्रेरित किया. हालांकि संगठन आधिकारिक तौर पर इससे इनकार करता रहा है, लेकिन यह विवाद आज भी भारतीय राजनीति में ज्वलंत मुद्दा है.
विपक्ष और सत्ता पक्ष की जंग
यह सच है कि जब भी कांग्रेस आरएसएस पर सवाल उठाती है, भाजपा और उसके सहयोगी दल इसे “देशभक्तों का अपमान” बताकर पलटवार करते हैं. वहीं कांग्रेस लगातार यह कहती रही है कि आरएसएस का योगदान स्वतंत्रता संग्राम में नगण्य रहा और यह संगठन हमेशा विभाजनकारी राजनीति करता आया है.
निष्कर्ष
सुप्रिया श्रीनेत के पोस्ट ने एक बार फिर से आरएसएस बनाम कांग्रेस की बहस को हवा दे दी है. सवाल यह है कि क्या आरएसएस को एक सांस्कृतिक संगठन मानकर उसका गुणगान किया जाए या उसके अतीत और विवादित भूमिका की आलोचना जारी रखी जाए.
इतिहास, तथ्यों और विचारधाराओं के बीच फंसी यह बहस आज भी भारतीय राजनीति की धुरी बनी हुई है.
शायद इसलिए सुप्रिया श्रीनेत ने अपनी बात खत्म करते हुए लिखा:
“जो देशभक्त थे, वो जंग में गए…
जो गद्दार थे, वो संघ में गए।”

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