बिहार में NRC की परछाईं?

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Ajit Kumar

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बिहार में NRC की परछाईं? दीपंकर भट्टाचार्य ने 'विशेष सघन पुनरीक्षण' पर उठाए सवाल

दीपंकर भट्टाचार्य ने ‘विशेष सघन पुनरीक्षण’ पर उठाए सवाल

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 25 जून:भारत निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूची के “विशेष सघन पुनरीक्षण” अभियान की शुरुआत को लेकर राजनीतिक हलकों में घमासान मच गया है. भाकपा (माले) के महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने इस प्रक्रिया को असम में हुए एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) जैसी कवायद करार देते हुए गहरी चिंता जाहिर की है.

दीपंकर भट्टाचार्य का कहना है कि यह अभियान प्रशासनिक रूप से अव्यवहारिक है और इसका सबसे ज्यादा असर राज्य के गरीब, दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदायों पर पड़ सकता है.उन्होंने चेताया कि इस प्रक्रिया के जरिए लाखों लोगों को मतदाता सूची से बाहर करने का खतरा है, जिससे वे अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित हो सकते हैं.

उन्होंने विशेष रूप से ध्यान दिलाया कि जिन लोगों का जन्म 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच हुआ है, उनसे माता या पिता में से किसी एक के भारतीय नागरिक होने का प्रमाण मांगा जा रहा है. वहीं, 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे नागरिकों को माता-पिता दोनों की नागरिकता के दस्तावेज पेश करने होंगे. उनका दावा है कि असम में हुए एनआरसी की तरह यह प्रक्रिया भी व्यापक नागरिक असमंजस और अधिकारों के हनन का कारण बन सकती है.

भट्टाचार्य ने सवाल उठाया कि इतने बड़े पैमाने पर पुनरीक्षण का कार्य महज एक महीने में कैसे पूरा किया जा सकता है. उन्होंने इसे चुनाव की तैयारियों को पटरी से उतारने वाला कदम बताया.

उन्होंने चुनाव आयोग से स्पष्ट मांग की कि बिहार जैसे राज्य को ऐसी “प्रयोगशाला” न बनाया जाए और मतदाता सूची में सुधार की कोई भी प्रक्रिया पारदर्शी, समावेशी और लोकतांत्रिक तरीके से होनी चाहिए. उनका कहना है कि नागरिकता को लेकर दोहरी जांच की प्रक्रिया से मतदाताओं में डर और असुरक्षा की भावना पैदा हो सकती है, जो कि लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है.

यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब देश में कई राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी हो रही है. अब यह देखना होगा कि चुनाव आयोग इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है और पुनरीक्षण प्रक्रिया को लेकर उठी चिंताओं का समाधान कैसे करता है.

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