एसआईआर की फाइनल लिस्ट पर माले महासचिव का हमला

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Ajit Kumar

बिहार
एसआईआर की फाइनल लिस्ट पर माले महासचिव का हमला

मतदाता सूची में गड़बड़ियां बढ़ीं, माले महासचिव ने आयोग पर उठाए सवाल

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 3 अक्टूबर 2025 – एसआईआर की फाइनल लिस्ट जारी होने के बाद बिहार की राजनीति में नए विवाद खड़े हो गया है.भाकपा (माले) महासचिव ने आज पटना में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाया .उन्होंने कहा कि आयोग ने अब तक जनता और राजनीतिक दलों द्वारा उठाए गए सवालों का कोई ठोस जवाब नहीं दिया है, बल्कि फाइनल लिस्ट आने के बाद गड़बड़ियों और खतरों की संख्या और अधिक बढ़ गई है.

मतदाता सूची में गड़बड़ियां बढ़ीं, माले महासचिव ने आयोग पर उठाए सवाल

नाम काटने का खेल और बढ़ी हुई संख्या

माले महासचिव ने बताया कि पहले चुनाव आयोग ने 65 लाख मतदाताओं के नाम काटे थे. लेकिन फाइनल लिस्ट में और 3 लाख 66 हजार नए नाम काट दिए गए, जिससे कुल मिलाकर नाम काटने का दायरा और बढ़ गया.उन्होंने कहा कि आयोग बार-बार कह रहा है कि संख्या 65 लाख से घटकर 47 लाख हो गई है, लेकिन असली तस्वीर इसके ठीक उलट है.दरअसल, नाम कटौती का पैमाना लगातार बढ़ रहा है, और यह मतदाताओं को असुरक्षित और संदेहग्रस्त बनाने वाला कदम है.

महिलाओं के नाम पर सबसे ज्यादा चोट

फाइनल लिस्ट के आंकड़े एक और बड़ा सवाल खड़ा करता हैं. जनवरी 2025 में बिहार में महिला मतदाताओं का अनुपात 914 प्रति हजार पुरुष मतदाता था.लेकिन अब यह घटकर 892 पर पहुंच गया.यानी 22 अंकों की गिरावट!
माले महासचिव ने पूछा – “महिलाएं पुरुषों की तरह पलायन नहीं करतीं, तो आखिरकार महिलाओं के नाम क्यों गायब हुए? क्या यह किसी संगठित साजिश का हिस्सा है या कर्ज के बोझ तले महिलाएं घर-द्वार छोड़ने को मजबूर हो रही हैं?

नागरिकता संदिग्ध का नया खेल

भाकपा (माले) ने चुनाव आयोग से सवाल किया कि आखिर अचानक 6000 लोगों को ‘नागरिकता संदिग्ध’ कैसे घोषित कर दिया गया? जब 65 लाख नाम हटाए गए थे, तब एक भी ऐसा नाम सूची में नहीं था. 2019 में पूरे देश में सिर्फ 4 ऐसे मामले सामने आए थे और बिहार में तो एक भी नहीं.लेकिन अब अचानक 6000 लोग कहाँ से सामने आ गए? यह सवाल मतदाताओं में गहरी चिंता पैदा कर रहा है.

मरे हुए लोगों के नाम काटने का अजीबोगरीब तरीका

संवाददाता सम्मेलन में माले महासचिव ने एक और गंभीर गड़बड़ी का जिक्र किया है.उन्होंने कहा कि अब लोग चुनाव आयोग को आवेदन देकर कह रहे हैं कि – “हम मर गए हैं, हमारा नाम काट दो. यह किस तरह की प्रक्रिया है? इससे साफ है कि लिस्ट तैयार करने का काम बेहद लापरवाही और गैर-पारदर्शी तरीके से किया गया है.

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सिकटा में घटती संख्या पर सवाल

माले महासचिव ने बताया कि सिकटा विधानसभा क्षेत्र में ड्राफ्ट लिस्ट में जितनी संख्या दिखाई गई थी, फाइनल लिस्ट में उससे भी ज्यादा नाम घटा दिए गए. उन्होंने कहा कि यह आंकड़े और प्रक्रिया समझ से परे हैं और आयोग को तुरंत इस पर सफाई देनी चाहिए.

लोकतंत्र और मताधिकार पर हमला

भाकपा (माले) ने साफ कहा कि एसआईआर की फाइनल लिस्ट की गड़बड़ियां सीधे-सीधे लोकतंत्र और मताधिकार पर हमला हैं.नामों की कटौती, महिलाओं के नामों में गिरावट, संदिग्ध नागरिकता का नया खेल और मृतकों के नाम काटने की विचित्र प्रक्रिया – यह सब मिलकर मतदाताओं को असुरक्षा और अविश्वास की स्थिति में धकेल रही हैं.

चुनाव आयोग से जवाबदेही की मांग

माले महासचिव ने कहा कि चुनाव आयोग को इन सवालों पर तत्काल और पारदर्शी स्पष्टीकरण देना चाहिए.उन्होंने घोषणा की कि चुनाव आयोग के साथ होने वाली आगामी बैठक में उनकी पार्टी इन सभी सवालों को मजबूती से उठाएगी.

निष्कर्ष

एसआईआर की फाइनल लिस्ट जारी होने के बाद बिहार की राजनीति में एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. माले महासचिव के आरोपों ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. नाम कटौती, महिलाओं की संख्या में गिरावट, संदिग्ध नागरिकता और मृतकों के नाम जैसी गड़बड़ियां बताती हैं कि इस पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव है. अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग इन सवालों का क्या जवाब देता है और क्या मतदाताओं का भरोसा बहाल कर पाता है.

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