जब लोकतंत्र अपनी पहचान माँगने लगे: एसआईआर की खामोश दस्तक

| BY

kmSudha

भारततीसरा पक्ष आलेख
जब लोकतंत्र अपनी पहचान माँगने लगे: एसआईआर की खामोश दस्तक

सभी को वोट का हक मिले, दस्तावेज़ों की शर्त न बने रुकावट!

तीसरा पक्ष डेस्क पटना:लोकतंत्र, जिसे हम ‘जनता कि, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन’ के रूप में जानते हैं. भारत जैसे बहुभाषी बहुसांस्कृतिक और विशाल देश की सबसे बड़ी ताकत है.लोकतंत्र की असली सुंदरता उसकी सरलता, समावेशिता और समानता में निहित है. परंतु आज जब लोकतंत्र ही अपनी जनता से उसकी पहचान माँगने लगे तब यह सवाल उठता है कि क्या हम उस लोकतंत्र में जी रहे हैं जो सभी के लिए है या फिर सिर्फ उन्हीं के लिए जो पहचान दिखा सकें?

हाल ही में सिस्टमैटिक इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन (एसआईआर) की चर्चा ने देश में नई बहस को छेड़ दिया है. भारत निर्वाचन आयोग द्वारा शुरू की गई यह प्रक्रिया मतदाता सूची को पारदर्शी, विश्वसनीय और सटीक बनाने का प्रयास है. लेकिन इसके साथ कई जटिलताएं और सवाल भी खड़े हो रहा हैं. आइए समझते हैं एसआईआर क्या है. इसके फायदे.चुनौतियाँ और लोकतंत्र पर इसका संभावित प्रभाव.

एसआईआर (Special Intensive Revision)) क्या है?

एसआईआर एक ऐसी प्रणाली है जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को नियमित और अपडेटेड रखना है.इसमें मतदाता के पहचान पत्र जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, या अन्य सरकारी दस्तावेजों को मतदाता सूची से जोड़कर डुप्लीकेट वोटर और फर्जी मतदाताओं को हटाया जाता है. इसका दावा है कि इससे चुनाव प्रक्रिया और अधिक पारदर्शी, विश्वसनीय और भ्रष्टाचार मुक्त बनेगा.

भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) का कहना है कि इस डिजिटल एकीकरण से मतदाता सूची में त्रुटियां कम होंगा और मतदान कि प्रक्रिया को मजबूत किया जा सकेगा.

एसआईआर के उद्देश्य

डुप्लीकेट मतदाताओं को हटाना: कई बार एक ही व्यक्ति के नाम अलग-अलग जगह मतदाता सूची में दर्ज होता हैं. इससे फर्जी वोटिंग कि संभावना बढ़ जाता है.एसआईआर इसे रोकने का प्रयास करता है.

पहचान का सत्यापन: आधार कार्ड, पैन कार्ड और अन्य कागजात जैसे दस्तावेजों से मतदाता कि पहचान सुनिश्चित करना.

डिजिटलकरण: मतदाता सूची को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाना ताकि अपडेट करना आसान हो और पारदर्शिता बढ़ सके.

एसआईआर से जुड़ी चुनौतियाँ और चिंताये

एसआईआर का मकसद तो अच्छा है.लेकिन इससे जुड़े कुछ बड़े सवाल और परेशानियां भी सामने आ रहा हैं. जो हमारे देश के लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर सकता हैं.

  • दस्तावेजों की उपलब्धता में कमी
    भारत में अभी भी लाखों लोग ऐसे हैं जिनके पास आधार कार्ड या अन्य वैध सरकारी पहचान पत्र आज भी नहीं हैं. खासकर ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में यह समस्या ज्यादा देखने को मिलता है.ऐसे में अगर पहचान के आधार पर मतदान सूची बनाया जाये तो ये लोग मतदान से वंचित हो सकते हैं. यह लोकतंत्र की समावेशिता के सिद्धांत के खिलाफ हो जायेगा.
  • तकनीकी और डिजिटल बाधाये
    एसआईआर को डिजिटल प्रक्रिया के तहत लाया गया है. लेकिन इंटरनेट और स्मार्टफोन की उपलब्धता ग्रामीण क्षेत्रों और गरीब तबकों में बहुत कम है. डिजिटल साक्षरता के कमी भी बहुत बड़ी चुनौती है. इन कारणों से कई पात्र मतदाता अपने आपको पंजीकृत नहीं कर पाएंगे.
  • निजता और डेटा सुरक्षा
    आधार जैसी संवेदनशील जानकारी को मतदाता सूची से जोड़ने पर डेटा लीक, दुरुपयोग और निजता भंग होने का डर भी है. कई नागरिक चिंतित हैं कि उनका निजी डेटा सुरक्षित रहेगा या नहीं.
  • अल्पसंख्यक, प्रवासी मजदूर और आदिवासियों का हाशिए पर जाना
    पहचान आधारित मतदान प्रणाली इन कमजोर वर्गों को और अधिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया से दूर कर सकता है.यह उनके प्रतिनिधित्व को कम कर सकता है. जो पहले से ही कम है.

लोकतंत्र पर एसआईआर का संभावित प्रभाव

लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी यही है कि हर आदमी की आवाज़ को बराबर सुना जाना चाहिये.लेकिन अगर वोट डालने के लिए पहचान पत्र जरूरी कर दिया जाए. तो इससे वे लोग वोट देने से रह सकता हैं जो समाज या पैसे की वजह से कमजोर हैं.जो लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर हैं.

2019 के लोकसभा चुनाव में भारत में लगभग 90 करोड़ पात्र मतदाता थे. पर केवल 67% ने ही वोट दिया था. अगर एसआईआर की वजह से पंजीकरण प्रक्रिया और जटिल हो गया.तो मतदान प्रतिशत और भी कम हो सकता है. इससे लोकतंत्र की जड़ों को बहुत नुकसान होगा.

इतिहास से सीख: मतदाता पहचान पत्र का परिचय

भारत में मतदाता पहचान पत्र (वोटर आईडी कार्ड) की शुरुआत 1990 के दशक में हुआ था.तब भी कई लोगों को इसे प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था. अब जब डिजिटल तकनीक ने शासन व्यवस्था को बदल दिया है. तो यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि नई प्रक्रियाएं सभी के लिए समावेशी हों और वोटिंग के अधिकार को बाधित न करें.

यह भी पढ़े :बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन पर बवाल: क्या ‘SIR’ है छुपा हुआ NRC?
यह भी पढ़े :जातिगत जनगणना और मतदाता सूची विवाद: बिहार से उठी आवाज अब दिल्ली के दरवाजे पर

एसआईआर के सकारात्मक पहलू

  • पारदर्शिता और विश्वसनीयता: साफ-सुथरी मतदाता सूची से चुनाव प्रक्रिया भ्रष्टाचार मुक्त हो सकता है.
  • आधुनिकीकरण: डिजिटल प्लेटफॉर्म से मतदाता सूची नियमित और आसानी से अपडेट की जा सकेगा.
  • जनता का विश्वास: फर्जी मतदान कम होने से लोकतंत्र में जनता का विश्वास बढ़ेगा.

समाधान: समावेशी और प्रभावी एसआईआर के लिए सुझाव

  • व्यापक जागरूकता अभियान
    सरकारी स्तर पर ग्रामीण और शहरी दोनों जगह लोगों को एसआईआर और पहचान पत्र बनवाने के महत्व के बारे में जागरूक किया जाये.
  • मोबाइल और सहायता केंद्र
    दूर-दराज के इलाकों में मोबाइल पंजीकरण केंद्र स्थापित किए जाएं ताकि लोग आसानी से अपना पंजीकरण कर सकें.
  • वैकल्पिक पहचान दस्तावेजों को स्वीकार्यता
    मतदान के लिए सिर्फ आधार या पैन कार्ड की जरूरत न हो.बल्कि दूसरे भी दस्तावेज मान लिए जाएं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग वोट दे सकें.
  • कड़े डेटा सुरक्षा नियम
    निजी जानकारी की सुरक्षा के लिए सख्त नियम बनाए जाएं और उनका पालन सुनिश्चित किया जाए.

निष्कर्ष

एसआईआर एक जरूरी कदम है भारत के लोकतंत्र को और अधिक पारदर्शी और मजबूत बनाने के लिए.लेकिन यह तभी सार्थक होगा जब यह हर नागरिक के लिए सुलभ, समावेशी और सुरक्षित होगा. लोकतंत्र की सुंदरता उसकी सादगी और सभी के लिए समान अधिकारों में है.

यदि एसआईआर प्रक्रिया लोगों के लिए बोझ बन जाता है. तो यह लोकतंत्र की एक खामोश, लेकिन घातक दस्तक साबित हो सकता है.जो सहभागिता और स्वतंत्रता को कमजोर कर देगा .

हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम इस प्रक्रिया को ऐसा बनाएँ कि कोई भी नागरिक अपने मतदान के अधिकार से वंचित न हो सके भविष्य में एसआईआर की सफलता या विफलता इस बात पर निर्भर करेगा कि हम इसे कितनी समझदारी और संवेदनशीलता से लागू करते हैं.

Trending news

Leave a Comment