आइसा बोला – लाठियों से नहीं रुकेगा संघर्ष, अब परीक्षा नहीं, परिवर्तन की तैयारी है
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 7 अगस्त :बिहार की राजधानी पटना में एसटीईटी अभ्यर्थियों द्वारा किए जा रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई ने एक बार फिर सरकार की छात्र विरोधी नीतियों को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा किया है.छात्र संगठन आइसा (AISA) ने इस कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए इसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला बताया है.

आइसा की राज्य अध्यक्ष प्रीति कुमारी और राज्य सचिव सबीर कुमार ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि एसटीईटी परीक्षा को लेकर पिछले डेढ़ साल से छात्र संघर्षरत हैं. लेकिन सरकार समाधान देने की बजाय बल प्रयोग कर रहा है.उन्होंने कहा कि,यह महज़ एक घटना नहीं है. बल्कि छात्रों के आंदोलनों को दबाने की सरकार की लगातार चल रही नीति का एक हिस्सा है.
क्या है मामला?
एसटीईटी परीक्षा लंबे समय से लंबित है.और इसके बिना ही सरकार TRE-4 परीक्षा की घोषणा कर रहा है. छात्र संगठनों का कहना है कि इस निर्णय से दो सत्रों के लगभग 5 लाख अभ्यर्थी बाहर हो जायेगा. जो शिक्षा व्यवस्था के साथ एक गंभीर मज़ाक है.आइसा ने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया न सिर्फ शिक्षा में पारदर्शिता को ध्वस्त करता है.बल्कि बेरोजगार युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी है.
यह भी पढ़े :STET अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज: लोकतंत्र, शिक्षा और रोजगार पर हमला!
यह भी पढ़े :अगर कीमत चुकानी है तो चुकाएंगे लेकिन किसानों से समझौता नहीं!
पुलिसिया दमन बनाम लोकतांत्रिक अधिकार
बिना किसी उग्र प्रदर्शन के शांतिपूर्वक बैठे अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज, गिरफ़्तारी और डराने-धमकाने की कोशिशों ने शिक्षा से जुड़ी वास्तविक समस्याओं से ध्यान भटकाने का प्रयास किया है. आइसा ने यह भी स्पष्ट किया कि यह पहली बार नहीं है. जब छात्रों या बेरोज़गारों की आवाज़ को दबाने के लिए पुलिस बल का सहारा लिया गया है .इससे पहले नियोजित शिक्षकों और प्रतियोगी परीक्षार्थियों के आंदोलनों को भी इसी तरह कुचला गया था.
आइसा की मांगें
- आइसा ने स्पष्ट रूप से सरकार से निम्नलिखित मांगें रखी हैं.
- एसटीईटी परीक्षा की तिथि अविलंब घोषित की जाये.
- TRE-4 परीक्षा से पहले एसटीईटी का आयोजन सुनिश्चित किया जाये.
- पुलिस कार्रवाई पर सार्वजनिक रूप से माफी मांगी जाये और दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो.
- छात्रों से संवाद स्थापित कर उनकी समस्याओं का लोकतांत्रिक समाधान निकाला जाये.
संघर्ष जारी रहेगा
आइसा ने यह भी एलान किया कि वे इस मुद्दे को सिर्फ शिक्षा से जुड़ी एक मांग नहीं बल्कि न्याय और लोकतंत्र की लड़ाई के रूप में देख रहे हैं. संगठन ने ऐलान किया कि यदि सरकार छात्रों की आवाज़ नहीं सुनता है.तो आने वाले दिनों में राज्यभर में छात्र आंदोलन और अधिक व्यापक और उग्र रूप लेगा.
“छात्रों की आवाज़ को लाठियों से दबाया नहीं जा सकता.यह संघर्ष केवल एक परीक्षा का नहीं है बल्कि एक सम्यक और न्यायपूर्ण व्यवस्था की स्थापना का है – आइसा
निष्कर्ष
बिहार में शिक्षा और युवाओं के भविष्य को लेकर एक बार फिर आंदोलन की आग सुलग चुका है. सवाल यह है कि क्या सरकार इस बार संवाद और समाधान का रास्ता चुनेगी. या फिर दमन और टालमटोल का खेल दोहराया जाएगा?

I am a blogger and social media influencer. I have about 5 years experience in digital media and news blogging.