मोदी सरकार पर सुप्रिया श्रीनेट का हमला: अडानी के लिए कानून बदल रहे हैं, जनता की चिंता किसी को नहीं

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Kumar Ranjit

भारत
मोदी सरकार पर सुप्रिया श्रीनेट का हमला: अडानी के लिए कानून बदल रहे हैं, जनता की चिंता किसी को नहीं

सत्ता, पूंजी और पर्यावरण की तिकड़ी पर नया विवाद

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना 8 अक्टूबर 2025 —देश की राजनीति में अडानी समूह और केंद्र सरकार की निकटता को लेकर विपक्ष लगातार हमलावर रहा है. इस बार कांग्रेस की वरिष्ठ प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेट,ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार पर तीखा प्रहार किया है.
उन्होंने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया X (पूर्व ट्विटर) हैंडल से आरोप लगाया कि सरकार अडानी समूह को लाभ पहुंचाने के लिए पर्यावरण से जुड़े नियमों को बदलने जा रहा है, ताकि मुंबई में अडानी का सीमेंट प्रोजेक्ट बिना किसी रोकटोक के आगे बढ़ सके.

सुप्रिया श्रीनेट का आरोप: अडानी के लिए हर कानून बदलने को तैयार मोदी सरकार

सुप्रिया श्रीनेट ने अपने पोस्ट में लिखा है कि,

अडानी के लिए मोदी जी हर नियम, हर क़ानून बदलने को तैयार हैं – लोग मरे या जियें उससे भी कोई फ़र्क़ नहीं.

उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने हाल ही में एक ड्राफ्ट नोटिफिकेशन (26 सितंबर) जारी किया है, जिसके तहत कैप्टिव पावर प्लांट के बिना काम करने वाले सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट्स को अब पर्यावरणीय मंज़ूरी लेने की जरूरत नहीं होगी.

इस नए नियम का सीधा फायदा अडानी ग्रुप की अंबुजा सीमेंट लिमिटेड को मिलने वाला है, जो मुंबई के कल्याण क्षेत्र में 1,400 करोड़ रुपये की सीमेंट परियोजना स्थापित कर रहा है.

मुंबई के कल्याण में प्रस्तावित 1,400 करोड़ का प्रोजेक्ट

अंबुजा सीमेंट लिमिटेड, जो अब अडानी समूह के स्वामित्व में है, ने कल्याण के मोहने गांव में 6 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष उत्पादन क्षमता वाला सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट लगाने की योजना बनाई है.
इस प्रोजेक्ट के दायरे में करीब 10 गांव आते हैं — जहां के स्थानीय लोग परियोजना के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.

लोगों का कहना है कि इस घनी आबादी वाले क्षेत्र में सीमेंट प्लांट से हवा और पानी दोनों दूषित होंगे, जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा.

स्थानीय विरोध तेज — धारावी के बाद अडानी का दूसरा विवादित प्रोजेक्ट

यह पहली बार नहीं है जब मुंबई में अडानी समूह के किसी प्रोजेक्ट को लेकर विरोध हुआ हो.
सुप्रिया श्रीनेट ने अपने पोस्ट में याद दिलाया कि धारावी पुनर्विकास परियोजना के बाद यह अडानी का दूसरा बड़ा प्रोजेक्ट है, जिसका स्थानीय जनता विरोध कर रही है.

ग्रामीणों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार जनता की आपत्तियों को अनसुना कर, कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता दे रही है.

पर्यावरण मंत्रालय का ड्राफ्ट नियम — विवाद का केंद्र

26 सितंबर को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी ड्राफ्ट अधिसूचना में यह प्रस्ताव दिया गया है कि,

कैप्टिव पावर प्लांट के बिना काम करने वाली सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट्स को EIA (Environmental Impact Assessment) और पर्यावरण मंजूरी से छूट दिया जायेगा.

इसका अर्थ यह है कि अब इन यूनिट्स को EIA रिपोर्ट, सार्वजनिक सुनवाई या स्थानीय विरोध जैसी प्रक्रिया से नहीं गुजरना होगा.

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम ‘Environmental Governance’ को कमजोर करेगा और औद्योगिक प्रदूषण को रोकने वाली जवाबदेही तंत्र को समाप्त कर देगा.

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सुप्रिया श्रीनेट का सवाल: क्या लोगों की जान अब नियमों से छोटी हो गई है?

सुप्रिया श्रीनेट ने सवाल उठाया है कि,

जब स्थानीय जनता अपनी सेहत और पर्यावरण के लिए चिंतित है, तब सरकार क्यों नियम बदलने में लगी है? क्या अब विकास का मतलब सिर्फ अडानी समूह का विस्तार रह गया है?

उन्होंने यह भी कहा कि यह नीति स्पष्ट रूप से ‘कॉर्पोरेट फ्रेंडली और पब्लिक अनफ्रेंडली’ है.
उनके मुताबिक, यह सिर्फ एक कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए नहीं, बल्कि पूरी नीति व्यवस्था को निजी पूंजी के हितों में झुकाने का उदाहरण है.

पर्यावरणविदों की चिंता: प्रदूषण, पानी और फेफड़ों पर असर

पर्यावरण कार्यकर्ता चेतावनी दे रहे हैं कि सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट से निकलने वाली धूल फेफड़ों की बीमारियाँ, त्वचा एलर्जी, और भूजल प्रदूषण जैसी समस्याओं को जन्म दे सकता है.
अगर पर्यावरणीय मूल्यांकन रिपोर्ट (EIA) की बाध्यता हटा दी जाती है, तो इन खतरों की निगरानी और रोकथाम लगभग असंभव हो जाएगी.

राजनीतिक और सामाजिक सवाल

इस मामले ने फिर से यह बहस छेड़ दिया है कि भारत में विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन कहाँ है?
क्या सरकार उद्योगपतियों के दबाव में पर्यावरणीय कानूनों को कमजोर कर रही है?
क्या जनता की आवाज अब केवल कागजों में रह गई है?

सुप्रिया श्रीनेट के इस बयान ने निश्चित रूप से इस बहस को राजनीतिक केंद्र में ला दिया है.

निष्कर्ष: जनता बनाम पूंजी की जंग जारी

मुंबई के कल्याण में अडानी का सीमेंट प्लांट अब केवल एक औद्योगिक परियोजना नहीं रह गया है — यह सत्ता, पर्यावरण और जनता के बीच की लड़ाई का प्रतीक बन गया है.
सुप्रिया श्रीनेट का हमला यह याद दिलाता है कि विकास अगर जनता की कीमत पर होगा, तो वह स्थायी नहीं हो सकता.

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