एक नेता दो पहचान दो उम्र — क्या अब कानून सिर्फ आम जनता के लिए रह गया है?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,10अगस्त :बिहार की राजनीति में उस वक्त भूचाल आ गया जब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से एक ऐसा खुलासा किया.जिसने सत्ता के गलियारों में खलबली मचा दिया है.यह केवल किसी एक नेता पर आरोप नहीं है.बल्कि सवाल है पूरे लोकतंत्र की नींव पर — क्या चुनाव आयोग अब निष्पक्ष बचा है? क्या वोट की पवित्रता सत्ता की हवस के आगे बेमानी हो गई है?

तेजस्वी यादव ने बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा पर दोहरी पहचान और उम्र में हेराफेरी के संगीन आरोप लगाए हैं और इसे देश के इतिहास का सबसे बड़ा वोटर लिस्ट घोटाला करार दिया है.सवाल सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं. बल्कि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और प्रशासन की पारदर्शिता पर है.
तो आइए, जानते हैं विस्तार से कि आखिर तेजस्वी यादव ने किस तरह से एक-एक सबूत के साथ इस घोटाले की परतें खोलीं और क्यों यह मुद्दा अब सिर्फ बिहार का नहीं बल्कि भारत के लोकतंत्र का सबसे बड़ा इम्तिहान बन गया है…
एक व्यक्ति, दो विधानसभा, दो उम्र! क्या यही है एसआईआर की पारदर्शिता?
दो अलग-अलग जिलों में एक ही नेता का नाम, लेकिन उम्र और पहचान अलग
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने प्रेस वार्ता में चौंकाने वाला खुलासा करते हुए बताया कि उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के नाम दो अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों — लखीसराय और बांकीपुर — की वोटर लिस्ट में दर्ज हैं.
लखीसराय: उम्र 57 वर्ष, EPIC नं – प्।थ्3939337ए
बांकीपुर: उम्र 60 वर्ष, EPIC नं – प्थ्ैव्853341ए
जानबूझकर किया गया अपराध या प्रशासनिक मिलीभगत?
तेजस्वी ने सवाल उठाया कि अगर एक ही व्यक्ति ने एसआईआर (विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण) के दौरान दो जगह हस्ताक्षर किए, तो यह घोर अपराध है.और अगर बिना उनके हस्ताक्षर के नाम चढ़ा, तो यह प्रशासनिक स्तर पर बड़ा षड्यंत्र है.
चुनाव आयोग मौन क्यों? क्या उपमुख्यमंत्री कानून से ऊपर हैं?
तेजस्वी पर नोटिस, विजय सिन्हा पर चुप्पी?
तेजस्वी यादव ने यह आरोप भी लगाया कि जब उनके खिलाफ मामूली आरोप लगे. तो मीडिया ट्रायल से लेकर आधिकारिक नोटिस तक तुरंत जारी किया गया. लेकिन जब देश के प्रधानमंत्री के करीबी नेता पर दोहरे पहचान और उम्र में गड़बड़ी का मामला सामने आया है.तो चुनाव आयोग की चुप्पी शर्मनाक है.
यह पक्षपात नहीं तो क्या है?
क्या चुनाव आयोग अब भाजपा की एजेंसी बन गया है? – तेजस्वी का सीधा सवाल.अगर सामान्य मतदाता पर दोहरी प्रविष्टि के कारण FIR दर्ज होता है. तो उपमुख्यमंत्री पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
65 लाख वोटर गायब, फिर भी जवाबदेही नहीं! कैसा एसआईआर?
बूथवार जानकारी नहीं,ऑनलाइन पारदर्शिता खत्म
तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि 65 लाख मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटा दिया गया है. लेकिन चुनाव आयोग ने बूथवार डेटा अभीतक सार्वजनिक नहीं किया है.
जिस वोटर की पहचान छिनी गई है.वह जान भी नहीं पा रहा कि क्यों और कैसे? – यह सीधा हमला है नागरिक अधिकारों पर.
पारदर्शिता का नाटक?
चुनाव आयोग बार-बार कहता रहा कि कोई आपत्ति नहीं आई है. लेकिन तेजस्वी ने दस्तावेज़ों के साथ दावा किया कि राजद द्वारा कई बार शिकायतें दर्ज किया गया है. जिनकी पावती भी पार्टी के पास मौजूद है.फिर भी आयोग द्वारा मीडिया में कोई शिकायत नहीं मिला यह कहना सीधा झूठ और लोकतंत्र से विश्वासघात है.
रक्षाबंधन पर बैठक खानापूरी, जनता की आंखों में धूल?
विपक्ष को सूचना तक नहीं दिया गया
7 और 8 अगस्त को बीएलओ व बीएलए के साथ बैठक बुलाकर चुनाव आयोग ने विपक्ष को दरकिनार करते हुए खानापूरी किया है. वो भी रक्षाबंधन जैसे पर्व के दिन जब अधिकांश कार्यकर्ता पारिवारिक ज़िम्मेदारियों में व्यस्त थे.
आदेश नहीं, एजेंडा चल रहा है
तेजस्वी यादव ने इसे एक पूर्व नियोजित योजना बताया है. जिसके जरिए सत्ता पक्ष के खिलाफ उठती आवाजों को दरकिनार कर वोटर लिस्ट में मनचाहे बदलाव किए जा रहा हैं.
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मतदाता सेवा पोर्टल से छेड़छाड़ का आरोप
तेजस्वी का आरोप है कि पहले वोटर लिस्ट सर्च पोर्टल से नाम आसानी से मिल जाता था. लेकिन अब नई डिजिटल फ़ाइल सिस्टम के नाम पर जानबूझकर खोज प्रणाली को बाधित किया गया है ताकि आम लोग भ्रमित रहें.
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हम ये लड़ाई सड़क से संसद और कोर्ट तक ले जाएंगे
तेजस्वी ने घोषणा किया है कि यह केवल एक राजनैतिक हमला नहीं है बल्कि लोकतंत्र और संविधान की रक्षा एक की लड़ाई है.बिहार की जनता के वोटिंग अधिकार की रक्षा के लिए राजद सड़क, सदन और न्यायपालिका तक संघर्ष करेगा.
अंतिम बात: अब सवाल जनता का है – क्या वोट की पवित्रता बची है?
क्या बिहार की जनता को एक निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया मिल पाएगा ?
क्या चुनाव आयोग वास्तव में संवैधानिक संस्था है या सत्ताधारी दल का हथियार बन गया है?
इन सवालों के जवाब अब सिर्फ सत्तापक्ष नहीं, बल्कि जनता और मीडिया को भी मांगने होंगे।
निष्कर्ष
तेजस्वी यादव द्वारा उठाया गया यह मुद्दा केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है बल्कि चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक मूल्यों की परीक्षा है. यदि एक उपमुख्यमंत्री के नाम और उम्र में गड़बड़ी साबित होता है और उस पर कार्रवाई नहीं होता है.तो यह न सिर्फ कानून का उल्लंघन है बल्कि जनता के विश्वास के साथ धोखा भी है. ऐसे में अब ज़रूरत है कि चुनाव आयोग निष्पक्षता दिखाए, जवाबदेही तय करे और लोकतंत्र की गरिमा को बचाये.

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