बीजेपी और आरएसएस पर तेजस्वी का सीधा हमला
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,2 अक्टूबर –भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय और आरक्षण का मुद्दा हमेशा से एक अहम विषय रहा है.विशेषकर बिहार की राजनीति में जातीय जनगणना (Caste Census) और उसके आधार पर सामाजिक व आर्थिक न्याय की मांग लंबे समय से उठता रहा है.राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने 2 अक्टूबर 2023 को इतिहास रचते हुए बिहार में जातीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट सार्वजनिक किया था . इस रिपोर्ट ने न केवल राज्य की राजनीति को प्रभावित किया बल्कि पूरे देश में जातीय जनगणना को लेकर नई बहस को जन्म दिया.
तेजस्वी यादव ने आज अपने एक्स (Twitter) पोस्ट के माध्यम से इस ऐतिहासिक दिन को याद करते हुए केंद्र सरकार पर आरक्षण विरोधी नीति का आरोप लगाया है और वंचित समाज के अधिकारों के लिए अपनी लड़ाई जारी रखने का संकल्प दोहराया है.
जातीय जनगणना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में आखिरी बार आधिकारिक जातीय जनगणना 1931 में हुई थी.तब से अब तक समाज में काफी बदलाव आया, लेकिन पिछड़ों, दलितों और वंचितों के सामाजिक-आर्थिक हालात को लेकर कोई आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं कराया गया.
बिहार ने 2023 में इस ऐतिहासिक कदम को उठाकर न केवल आंकड़े उपलब्ध कराए बल्कि देशभर में इस मुद्दे को मुख्यधारा में ला दिया.
तेजस्वी यादव का कहना है कि –
“𝟐 अक्टूबर 2023 को हमने दशकों पुराने संकल्प को पूरा किया और जातीय सर्वेक्षण करवा कर उसकी रिपोर्ट प्रकाशित किया.यह साबित करता है कि आज पूरा देश जातीय जनगणना चाहता है.
बीजेपी और आरएसएस पर तेजस्वी का सीधा हमला
तेजस्वी यादव ने अपने पोस्ट में साफ कहा कि भाजपा और आरएसएस शुरू से जातीय जनगणना का विरोध करते रहे हैं.उन्होंने बार-बार इसके खिलाफ बयान दिया.लेकिन राजनीतिक और सामाजिक दबाव के चलते आखिरकार केंद्र सरकार को भी देशव्यापी जातीय जनगणना की घोषणा करना पड़ा.हालांकि तेजस्वी ने सरकार की मंशा और क्रियान्वयन पर संदेह जताया है.
उनका आरोप है कि भाजपा ने जानबूझकर जातीय जनगणना की कमजोरियां बताने की कोशिश की, ताकि दलित-पिछड़े वर्ग को उनका हक न मिल सके.
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आरक्षण पर विवाद और 65% की मांग
बिहार की जातीय सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में पिछड़े, अति-पिछड़े, दलित और आदिवासी समाज की संख्या अधिक है. इसी आधार पर बिहार सरकार ने आरक्षण की सीमा को 65% तक बढ़ाने का फैसला लिया.
लेकिन तेजस्वी का आरोप है कि –
“दलित पिछड़ा विरोधी बीजेपी ने इस 65% आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल नहीं करके इन वर्गों के अधिकारों पर डाका डाला है.डबल इंजन सरकार ने इन वर्गों के सीने में खंजर घोंपा है.
इसका सीधा असर लाखों नौकरियों पर पड़ा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की 50% सीमा से ऊपर जाने वाले आरक्षण प्रावधान को कानूनी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.

तेजस्वी यादव की सामाजिक न्याय की राजनीति
तेजस्वी यादव खुद को लालू यादव की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी मानते हैं. लालू यादव ने सामाजिक न्याय की राजनीति को केंद्र में लाकर पिछड़ों और दलितों को सशक्त बनाने का काम किया था.
अब तेजस्वी उसी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. उनका कहना है कि जब तक आबादी के अनुपात में आरक्षण और हिस्सेदारी सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक उनकी लड़ाई जारी रहेगी.
उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया –
आरक्षण की सीमा 50% से अधिक होनी चाहिये.
जातीय जनगणना का डेटा पूरे देश में सार्वजनिक होना चाहिये.
दलित, पिछड़े, आदिवासी और गरीब तबके को सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक न्याय मिलना चाहिये.
राजनीतिक महत्व
जातीय जनगणना का मुद्दा केवल सामाजिक न्याय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक समीकरणों को भी गहराई से प्रभावित करता है. बिहार जैसे राज्यों में जहां पिछड़े और अति-पिछड़े वर्ग की संख्या सबसे ज्यादा है, वहां यह मुद्दा चुनावी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है.
तेजस्वी यादव ने इसको राष्ट्रीय स्तर पर एजेंडा बना दिया है. यह बात साफ है कि आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में जातीय जनगणना और आरक्षण बड़ा मुद्दा बनेगा.
निष्कर्ष
तेजस्वी यादव का 2 अक्टूबर 2023 को प्रकाशित जातीय सर्वेक्षण केवल बिहार की उपलब्धि नहीं थी, बल्कि इसने पूरे देश की राजनीति को झकझोर दिया.
आज जब वह भाजपा और आरएसएस पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगाते हैं, तो यह साफ है कि उनकी राजनीति का केंद्र सामाजिक न्याय ही रहेगा.
तेजस्वी का संकल्प है कि जब तक वंचितों, पिछड़ों, दलितों और गरीबों को उनके हक के अनुसार शिक्षा, रोजगार और अवसर नहीं मिल जाते, तब तक उनकी लड़ाई जारी रहेगी.
जातीय जनगणना और आरक्षण की यह जंग आने वाले समय में भारतीय राजनीति की दिशा तय कर सकती है.

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