‘उद्धव ’ और ‘राज’ की जोड़ी: क्या यह महाराष्ट्र का नया विपक्ष बनेगा?
तीसरा पक्ष डेस्क,मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ आ चूका है. जब दो दशकों से अलग-अलग राह पर चल रहे ठाकरे बंधु – उद्धव ठाकरे (शिवसेना-उद्धव गुट) और राज ठाकरे (मनसे प्रमुख) – अब एकजुट होकर एक नई सियासी दिशा तय करने को लगभग तैयार दिख रहे हैं. अब सवाल है कि क्या ‘एक मराठी, एक मंच’ के नारे के साथ यह पहल महाराष्ट्र में एक बार फिर ठाकरे युग की वापसी का संकेत दे रही है?
‘आवाज मराठीचा’ मंच के तहत मराठी अस्मिता और महाराष्ट्र के हितों के लिए उनकी यह एकजुटता न केवल राजनीतिक गलियारों में चर्चा की विषय बनी हुई है, बल्कि मराठी माणूस के लिए एक नई उम्मीद की किरण भी लेकर आई है.
क्या है ‘एक मराठी, एक मंच’ की राजनीति?
4 जुलाई को दादर के शिवाजी पार्क में हुई एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में दोनों नेताओं ने साझा मंच पर आने का एलान किया.
मंच से उद्धव ठाकरे ने कहा:
“अब समय आ गया है कि मराठी समाज की आवाज़ एक हो. हमारी संस्कृति, अस्मिता और अधिकारों की रक्षा के लिए हम फिर साथ आए हैं.”
राज ठाकरे ने भी स्वर मिलाते हुए कहा:
“यह गठजोड़ किसी पार्टी के खिलाफ नहीं, बल्कि मराठी जनता के हक़ और सम्मान के लिए है.”
क्या है ‘आवाज मराठीचा’ मंच?

‘आवाज मराठीचा’ मंच एक सांस्कृतिक और राजनीतिक मंच है, जिसे महाराष्ट्र में मराठी भाषा, संस्कृति और अस्मिता को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया है. इसकी शुरुआत 5 जुलाई 2025 को मुंबई के वर्ली में ‘मराठी विजय दिवस’ रैली के दौरान हुई, जहां उद्धव ठाकरे (शिवसेना-यूबीटी) और राज ठाकरे (मनसे) ने लगभग दो दशकों बाद एक मंच पर आकर मराठी स्वाभिमान की बात की. इस मंच का मुख्य उद्देश्य मराठी भाषा, संस्कृति और महाराष्ट्र के हितों को एक साथ मजबूती से उठाना है. इस पहल को राज्य में “एक मराठी, एक मंच” के नारे के साथ पेश किया जा रहा है.
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‘एक मराठी, एक मंच’: ठाकरे युग की नई शुरुआत?
राजनीतिक कटुता, पारिवारिक मतभेद और वैचारिक टकराव के वर्षों बाद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अब एक साझा मंच पर नज़र आ रहे हैं. इस पहल ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई ऊर्जा और उत्सुकता भर दी है. यह सिर्फ दो नेताओं का साथ आना नहीं है, बल्कि एक पूरे विचार और आंदोलन का पुनर्जन्म भी है – ‘एक मराठी, एक मंच’, जो राज्य की सांस्कृतिक अस्मिता और क्षेत्रीय स्वाभिमान को केंद्र में रखता है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यदि यह एकता टिकाऊ साबित होती है, तो यह ठाकरे युग की दूसरी पारी की शुरुआत हो सकती है. एक ऐसी पारी जिसमें न केवल शिवसेना की पुरानी विरासत को पुनर्जीवित करने का प्रयास होगा, बल्कि मनसे के खोए हुए जनाधार को भी पुनः संगठित किया जा सकेगा.
इस गठबंधन का सबसे बड़ा संदेश है –
“अब लड़ाई सत्ता की नहीं, पहचान की है.”
यह ‘एक मराठी, एक मंच’ केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश भी है – कि अब केंद्र के फैसलों पर निर्भर महाराष्ट्र नहीं, बल्कि अपने निर्णय खुद लेने वाला महाराष्ट्र खड़ा हो रहा है.
बदलते सियासी समीकरण
यह सियासी एकजुटता महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े बदलाव की भूमिका तैयार कर सकती है:
- मराठी वोट बैंक का ध्रुवीकरण: मराठी अस्मिता के मुद्दे ने ठाकरे बंधुओं को मुंबई, ठाणे, पुणे और कोंकण जैसे क्षेत्रों में मजबूत स्थिति में ला खड़ा किया है. यह वोट बैंक, जो पहले बीजेपी और शिंदे गुट में बंट गया था, अब एकजुट हो सकता है.
- महायुति गठबंधन पर दबाव: बीजेपी और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के लिए यह एकता बड़ी चुनौती बन सकती है. खासकर बीएमसी चुनावों में, जहां मराठी वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
- विपक्षी गठबंधन में नई जान: महाविकास अघाड़ी (शिवसेना-यूबीटी, कांग्रेस, एनसीपी) में राज ठाकरे की पार्टी के शामिल होने की संभावना से विपक्ष को नई ताकत मिल सकती है. हालांकि, कांग्रेस और एनसीपी के कुछ नेताओं ने इस गठजोड़ से दूरी बनाए रखी, जिससे गठबंधन में दरार की आशंका भी जताई जा रही है.
आगे की राह
फिलहाल सबसे बड़ा सवाल यही है –
क्या यह गठजोड़ लंबे समय तक टिक पाएगा?
क्या पुरानी कड़वाहटें नई रणनीति के नीचे दब जाएंगी?
और क्या यह ‘एक मराठी, एक मंच’ वाकई महाराष्ट्र की राजनीति में नई ऊर्जा भर पाएगा?
इन सवालों का जवाब तो आने वाला वक्त देगा, लेकिन इतना तो तय है कि महाराष्ट्र की राजनीति अब पहले जैसी नहीं रहने वाली. ठाकरे बंधुओं की यह एकता सियासी शतरंज की चालों में बड़ा उलटफेर कर सकती है.
नजर रखिए इस पर – क्योंकि यह केवल गठबंधन नहीं, मराठी स्वाभिमान की वापसी की शुरुआत हो सकती है.

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