भाकपा-माले ने सरकार से की सुखाग्रस्त घोषित करने की मांग
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 7 सितंबर 2025 – उत्तर बिहार इन दिनों भीषण सूखे की चपेट में है.मानसून की बेरुखी ने यहां के किसानों की उम्मीदों को गहरा झटका दिया है.जुलाई-अगस्त में होने वाली बारिश लगभग नदारद रही, जिसके कारण धान की रोपाई बुरी तरह प्रभावित हुई है.खेतों में न तो पानी है और न ही सिंचाई की कोई ठोस व्यवस्था है. ऐसे में लाखों किसानों की आजीविका पर गंभीर संकट मंडरा रहा है.

इस बदतर स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने राज्य सरकार से उत्तर बिहार को तुरंत सुखाग्रस्त घोषित करने की मांग की है.उनका कहना है कि अगर अभी ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले महीनों में अन्न संकट गहराएगा और किसानों की हालत बद से बदतर हो जाएगी.
यूरिया की किल्लत और कालाबाजारी से बढ़ी परेशानी
सूखे की मार झेल रहे किसानों की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं है.खेतों में पानी की कमी के साथ-साथ यूरिया खाद का भी भारी किल्लत है. किसानों का आरोप है कि सरकारी गोदामों में खाद की आपूर्ति बहुत कम है और जो थोड़ी-बहुत उपलब्ध है.उसकी खुलेआम कालाबाजारी और जमाखोरी हो रही है.
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किसानों को मजबूरन ब्लैक मार्केट से कई गुना ज्यादा दाम पर यूरिया खरीदना पड़ रहा है. इससे उनकी लागत और बढ़ गई है. और मुनाफा लगभग नामुमकिन होता जा रहा है. कुणाल ने कहा कि ,सरकार की उदासीनता का खामियाजा किसान भुगत रहे हैं.जहां खेतों में धान की बुआई और रोपाई रुक गई है, वहीं जो किसान कुछ कर भी पाए हैं, वे खाद के अभाव में परेशान हैं.
भाकपा-माले की चार प्रमुख मांगें
भाकपा-माले ने राज्य सरकार से इस संकट से निपटने के लिए चार अहम कदम उठाने की मांग की है.
उत्तर बिहार को तुरंत सुखाग्रस्त क्षेत्र घोषित किया जाए और प्रभावित किसानों के लिए राहत पैकेज लागू किया जाये.
सभी जिलों में यूरिया खाद की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित किया जाये और उसके वितरण की कड़ी निगरानी हो.
कालाबाजारी और जमाखोरी में शामिल लोगों पर सख्त कार्रवाई की जाये ताकि किसानों को खाद ब्लैक में न खरीदना पड़े.
किसानों को तत्काल ऋण माफी, सिंचाई सहायता और विशेष राहत पैकेज दिया जाए, जिससे वे दोबारा खड़े हो सकें.
आंदोलन की तैयारी
भाकपा-माले ने साफ किया है कि अगर सरकार ने समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो पार्टी अपने जनप्रतिनिधियों और किसान संगठनों के साथ मिलकर सड़कों पर उतरेगी. पार्टी ने यह भी कहा कि किसानों के हक की लड़ाई को हर हाल में आगे बढ़ाया जाएगा. कुणाल ने चेतावनी दी कि,अगर किसानों की समस्या का समाधान नहीं हुआ तो राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ा जायेगा.
उत्तर बिहार के लिए क्यों गंभीर है यह संकट?
उत्तर बिहार मुख्य रूप से कृषि प्रधान क्षेत्र है, जहां धान की खेती किसानों की आजीविका का प्रमुख साधन है. यहां के ज्यादातर किसान छोटे और सीमांत हैं. जिनकी जिंदगी पूरी तरह खेती पर निर्भर करती है.लगातार बारिश की कमी से धान की पैदावार प्रभावित हो रही है.
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह संकट गहराया तो न सिर्फ किसानों की आमदनी पर असर पड़ेगा, बल्कि खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार और राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर असर दिखेगा. वहीं, खाद की कालाबाजारी और जमाखोरी ने किसानों को और भी कमजोर बना दिया है.
निष्कर्ष
उत्तर बिहार में सूखे की स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है.किसानों के सामने खेती छोड़ने या कर्ज में डूबने की नौबत आ सकती है. ऐसे में राज्य सरकार के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह किसानों की पीड़ा को समझे और तुरंत राहत पैकेज लागू करे. भाकपा-माले की यह मांग सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि उस लाखों किसान परिवारों की आवाज है जो अपनी जमीन और जीवन दोनों बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं.

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