जब सरकार बनी तमाशबीन, और गांव ने थाम ली ज़िम्मेदारी…
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना – बिहार के ग्रामीण इलाकों में विकास की असल तस्वीर एक बार फिर सामने आया है.जहां मूलभूत सुविधाओं के अभाव में स्थानीय लोगों को खुद चचरी पुल बनाने पर मजबूर होना पड़ा है.इस मुद्दे को लेकर विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश साहनी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला है.
साहनी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट साझा करते हुए लिखा है कि,
एनडीए सरकार में हालात ऐसे हैं कि ग्रामीणों को खुद चचरी पुल बनाने पर मजबूर होना पड़ रहा है. और उधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना से विकास की झूठी गाथा गाने में व्यस्त हैं!
इस पोस्ट के जरिए उन्होंने राज्य सरकार की ग्रामीण विकास योजनाओं पर सवाल खड़ा किये हैं.उन्होंने यह भी संकेत दिया कि ज़मीनी हकीकत और सरकारी दावों के बीच भारी अंतर है.
क्या है चचरी पुल?
चचरी पुल बांस और लकड़ी से बना एक अस्थायी पुल होता है, जिसका निर्माण आमतौर पर ग्रामीण खुद करते हैं. यह ऐसे इलाकों में आम है जहां पक्के पुलों की सुविधा नहीं होती.
सवालों के घेरे में ग्रामीण विकास
मुकेश साहनी के आरोपों के बाद यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या बिहार सरकार की योजनाएं केवल कागज़ों पर ही सीमित रह गया हैं? जिस राज्य में आज भी लोग बुनियादी ढांचे के लिए आत्मनिर्भर बनने को मजबूर हों वहां विकास के दावों पर भरोसा कैसे किया जाए?
आइए, जानते हैं इस पूरे मामले को विस्तार से — और समझते हैं कि कैसे बिहार के गांवों की हकीकत सरकारी विकास के दावों को चुनौती दे रहा है.
चचरी पुल बना रहे ग्रामीण: ये है विकसित’ बिहार की असल तस्वीर!
बिहार के एक गांव की तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रह है.जहां ग्रामीण खुद बांस और लकड़ी से चचरी पुल बना रहे हैं. ये कोई फिल्मी सीन नहीं है बल्कि उस राज्य की सच्चाई है जहां सरकार खुद को विकासशील कहती नहीं थकता है.
जहां एक तरफ राजधानी पटना में चमकते रोड शो, उद्घाटन समारोह और बड़ी-बड़ी योजनाओं के दावे होते हैं. वहीं दूसरी ओर सैकड़ों गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं. इन तस्वीरों ने सरकार के कथित विकास की जमीनी हकीकत सामने रख दिया है.
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मुकेश साहनी का हमला: पटना में झूठी गाथाएं, गांवों में जमीनी हकीकत!
विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश साहनी ने इस मुद्दे को लेकर नीतीश सरकार पर करारा प्रहार किया है.उन्होंने अपने आधिकारिक X (पूर्व में ट्विटर) हैंडल @sonofmallah से ट्वीट कर कहा कि,
एनडीए सरकार में हालात ऐसा हैं कि ग्रामीणों को खुद चचरी पुल बनाने पर मजबूर होना पड़ रहा है. और उधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना से विकास की झूठी गाथा गाने में व्यस्त हैं!”
यह ट्वीट ना सिर्फ तीखा है.बल्कि सरकार की कार्यप्रणाली पर एक बड़ा सवालिया निशान भी खड़ा करता है.
कागज़ों पर करोड़ों की योजनाएं, मगर गांव की ज़मीन अब भी प्यासा और टुटा हुआ!
बिहार सरकार हर साल बजट में गांवों को जोड़ने की योजनाओं, पुलों के निर्माण, और ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधार के लिए करोड़ों रुपये आवंटित करता है.लेकिन हकीकत यह है कि ये योजनाएं ज़मीन पर या तो लागू ही नहीं होता है.या फिर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता हैं.
क्या ये योजनाएं सिर्फ पोस्टर-बैनर तक सीमित हैं?
क्या हर बार चुनाव के वक्त ही गांवों की याद आती है?
इन सवालों से सरकार अब बच नहीं सकता.
जब जनता ही उठाएगी बोझ, तो सरकार किस बात की?
जब जनता ही पुल बनायेगा सड़क मरम्मत करेगा, जल निकासी खुद साफ करेगा, तो फिर सरकार और उसके अधिकारियों की ज़रूरत ही क्या रह जाता है? यह सवाल अब जनता के ज़ेहन में बार-बार उठ रहा है.
सरकार की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है – नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं देना. लेकिन यहां तो जनता अपने हक के लिए खुद संघर्ष कर रही है.
अब तो उठना होगा – चुप्पी टूटी तो जवाबदेही तय होगी!
अब समय आ गया है कि जनता सवाल पूछे, जवाब मांगे और चुप्पी तोड़े.
अगर ये हालात बिहार जैसे राज्य में हैं. अगर यहां इतना बुरा हाल है, तो देश के बाकी हिस्सों में हालात कैसे होंगे?
बिहार सरकार और प्रशासन को अब जवाब देना होगा.
कब तक जनता यूं ही हालात से जूझती रहेगी?
कब तक योजनाएं सिर्फ भाषणों और विज्ञापनों में जिएंगी?
और कब सरकार यह मानेगी कि विकास सिर्फ एक जुमला नहीं ज़िम्मेदारी है?
निष्कर्ष: विकास नहीं, विकृति है ये!
बिहार के इस गांव की तस्वीर सिर्फ एक गांव की नहीं है – यह सिस्टम की असफलता कि एक तस्वीर है.मुकेश साहनी जैसे नेताओं की आवाज़ इस दर्द को उजागर कर रहा है.लेकिन असली बदलाव तब आएगा जब जनता सवाल पूछेगी और जवाब मांगेगी.
अब वक्त है सरकार के खोखले दावों को आईना दिखाने का. और ये आईना अब गांव खुद बना रहे हैं – बांस और लकड़ी से क्योंकि सरकार के वादों में दम नहीं.

मेरा नाम रंजीत कुमार है और मैं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) हूँ. मैं महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर गहन एवं विचारोत्तेजक लेखन में रुचि रखता हूँ। समाज में व्याप्त जटिल विषयों को सरल, शोध-आधारित तथा पठनीय शैली में प्रस्तुत करना मेरा मुख्य उद्देश्य है.
लेखन के अलावा, मूझे अकादमिक शोध पढ़ने, सामुदायिक संवाद में भाग लेने तथा समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करने में गहरी दिलचस्पी है.