कांग्रेस का आरोप – खोखले निकले मोदी सरकार के दावे
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,30 सितंबर 2025 – भारत में महिलाओं की सुरक्षा लंबे समय से एक गंभीर मुद्दा रहा है. सरकारें बदलती रहीं, वादे होते रहे, लेकिन जमीनी स्तर पर हालात उतने नहीं बदले है. आज कांग्रेस पार्टी ने NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो) की रिपोर्ट का हवाला देते हुये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महिला सुरक्षा संबंधी दावों को कटघरे में खड़ा किया है. कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार के बड़े-बड़े वादों के बावजूद महिलाओं के खिलाफ अपराधों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है.
NCRB की रिपोर्ट – चौंकाने वाले तथ्य
कांग्रेस के X (Twitter) पोस्ट के अनुसार NCRB के ताजा आंकड़े बेहद चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं:
2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,45,256 मामले दर्ज हुआ.
2023 में यह संख्या बढ़कर 4,48,211 तक पहुंच गया है .
यानी, अपराध कम होने के बजाय और बढ़ गया है .इन आंकड़ों से साफ है कि सरकार के महिला सुरक्षा से जुड़े दावे वास्तविकता से मेल नहीं खाता है .
महिलाओं के खिलाफ अपराधों के प्रमुख प्रकार
NCRB की रिपोर्ट हर साल महिलाओं से जुड़े अपराधों का वर्गीकरण भी करता है.आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं के लिए खतरे कई रूपों में सामने आता है.
दहेज उत्पीड़न और हत्या – ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में यह अपराध लगातार सामने आ रहा है.
बलात्कार और यौन उत्पीड़न – पुलिस थानों में दर्ज मामलों में बलात्कार की घटनाएं सबसे अधिक हैं.
घरेलू हिंसा – विवाहिता महिलाओं पर मानसिक और शारीरिक हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.
छेड़खानी और स्टॉकिंग – खासकर महानगरों और कॉलेज जाने वाली छात्राओं के बीच यह समस्या गंभीर है.
साइबर क्राइम – सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक कंटेंट और ब्लैकमेलिंग के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं.
कांग्रेस का आरोप – खोखले निकले मोदी सरकार के दावे
कांग्रेस पार्टी का कहना है कि मोदी सरकार ने “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे नारे दिए, लेकिन असलियत यह है कि बेटियां खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही हैं.
महिला सुरक्षा पर खर्च होने वाले फंड का सही उपयोग नहीं हो रहा है .
पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी अब भी बेहद कम है.
तेज न्याय और कड़ी सजा का वादा महज चुनावी नारा बनकर रह गया है.
कांग्रेस का यह भी कहना है कि अगर मोदी सरकार महिला सुरक्षा पर गंभीर होती, तो आंकड़े घटते, बढ़ते नहीं.
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सामाजिक और राजनीतिक असर
महिलाओं के खिलाफ अपराध सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, ये समाज की मानसिकता और सिस्टम की कमजोरियों को दर्शाता हैं.जब महिलाएं सुरक्षित महसूस नहीं करतीं, तो उनके शिक्षा, रोजगार और सामाजिक भागीदारी पर भी असर पड़ता है.
राजनीतिक स्तर पर देखा जाये तो यह मुद्दा विपक्ष के लिए बड़ा हथियार बनता जा रहा है.कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल लगातार यह सवाल उठा रहा हैं कि आखिर सरकार के दावे और जमीनी हकीकत में इतना बड़ा अंतर क्यों है?
विशेषज्ञों की राय
कई सामाजिक कार्यकर्ता और महिला अधिकारों के विशेषज्ञ मानते हैं कि,
केवल कानून बनाना काफी नहीं, उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करना भी जरूरी है.
पुलिस और प्रशासन को संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है.
महिला हेल्पलाइन और सुरक्षा ऐप्स को और अधिक मजबूत करना होगा.
समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और समानता की भावना जगाना सबसे बड़ी चुनौती है.
समाधान की राह
महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाने जरूरी हैं:
तेज न्याय प्रक्रिया – महिला अपराधों से जुड़े मामलों की सुनवाई फास्ट-ट्रैक कोर्ट में होनी चाहिये.
पुलिस सुधार – पुलिस बल में महिलाओं की संख्या बढ़ाई जाए और उन्हें संवेदनशीलता की ट्रेनिंग दिया जायें.
सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर – शहरों और गांवों में सीसीटीवी, स्ट्रीट लाइटिंग और महिला सुरक्षा हेल्पलाइन को मजबूत किया जाये.
सामाजिक जागरूकता – स्कूल-कॉलेज स्तर से ही लड़कों को लैंगिक समानता और महिलाओं के सम्मान की शिक्षा दिया जायें .
कड़ी सजा – अपराधियों को सख्त और समयबद्ध सजा दी जाए ताकि समाज में डर पैदा हो.
निष्कर्ष
NCRB की रिपोर्ट एक आईना है, जो दिखाती है कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर किए गए दावे कितने खोखले साबित हो रहे हैं.कांग्रेस द्वारा उठाए गए सवाल सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं हैं, बल्कि उन लाखों महिलाओं की आवाज हैं जो रोज किसी न किसी तरह के अपराध का शिकार होती हैं.
भारत तब ही सशक्त और सुरक्षित हो सकता है जब देश की महिलाएं निर्भीक होकर जी सकें. सरकार और समाज दोनों को मिलकर इस दिशा में ठोस और ईमानदार प्रयास करने होंगे.

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