एनडीए की ताकत
तीसरा पक्ष डेस्क:बिहार में वर्तमान में एनडीए सरकार की शासन हैऔर एनडीए गठबंधन का सबसे बड़ा ताकत है सभी पार्टियों की एकता और मुख्यमंत्री नीतश कुमार के नेतृत्व में.और एनडीए में कई पार्टियां एक साथ मिलकर काम कर रहा है जैसे भाजपा ,जेडयू ,हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम ),लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास ) और भी अन्य पार्टिया है जो मिलकर बिहार में सरकार चला रहा है और एक दूसरे को साथ दे रहा है.
नीतीश कुमार का नेतृत्व: नीतीश कुमार बिहार के राजनीति का एक मजबूत औरचर्चित चेहरा हैं. नीतीश कि प्रगति यात्रा और विकास कार्यों ने उन्हें एक विश्वसनीय नेता के रूप में स्थापित करने का काम किया है.नीतीश कुमार खासकर के कुर्मी और कोईरी समुदायों के लोगो के बिच अपना एक मजबूत जनाधार बनाया है, जो बिहार के राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
जातीय समीकरण: एनडीए ने बिहार के अलग अलग जातियों को साधने के लिये एक रणनीति अपनाई है.बीजेपी ने भूमिहार (उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा), कुशवाहा (सम्राट चौधरी), वैश्य (संजय जयसवाल), और यादव (नित्यानंद राय) जैसे प्रमुख नेताओं को आगे कर एक बहुत बड़ा सामाजिक आधार तैयार किया
हुआ है.
लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन: 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार के कुल 40 में से 30 सीटों पर जितने में सफलता प्राप्त किया था.जिसमें लोजपा (रामविलास) के पार्टी ने पांचों सीटों पर जीत हासिल कर 100% स्ट्राइक रेट हासिल किया था यह प्रदर्शन गठबंधन के ताकत को दर्शाता है.
हाल के उपचुनावों में जीत: जब 2024 में उपचुनाव हुआ तो उसमे में एनडीए ने तरारी, रामगढ़, इमामगंज, और बेलागंज सीटों पर जीत हासिल किया जो गठबंधन के बढ़ते लोकप्रियता और संगठनात्मक ताकत को दर्शाता है.
एनडीए की रणनीति
एनडीए ने अपने रणनीति में विकास, कानून-व्यवस्था, और जातीय समीकरणों का संतुलनों को शामिल किया है. नीतीश कुमार ने लगातार “जंगल राज”का मुद्दा उठाकर महागठबंधन पर हमला बोला है,और खासकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के शासनकाल को उसने निशाना बनाया. इसके अलावा, एनडीए ने सीट बंटवारे की रणनीति पर भी काम करना शुरू कर दिया है, जिसमें सभी सहयोगी दलों को सम्मानजनक सीटें देने की बात कहा जा रहा है.केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने हाल ही में अमित शाह से मुलाकात किया है और जून के अंत या जुलाई 2025 के पहले सप्ताह में सीट बंटवारे पर चर्चा को लेकर पुष्टि किया है.
चुनौतियाँ
हालांकि एनडीए मजबूत स्थिति में है फिर भी कुछ चुनौतियाँ भी हैं:
जेडीयू का घटता जनाधार: 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को केवल 43 सीटें मिला था जो 2015 के 71 से बहुत कम था.
आंतरिक मतभेद: चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेताओं के महत्वाकांक्षाएँ और सीटों की मांग गठबंधन में तनाव पैदा कर सकता है.
विपक्ष का हमला: महागठबंधन द्वारा नौकरी, रोजगार, और पलायन जैसे बिहार के गंभीर मुद्दे को लेकर किये जा रहे हमले एनडीए के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बनसकता है.

महागठबंधन के रणनीति: तेजस्वी के जोश और सामाजिक गठजोड़
महागठबंधन की ताकते
महागठबंधन,जो इंडिया गठबंधन के नाम से जाना जाता है, इस महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस, और वामपंथी दल जैसे सीपीआई(एमएल) के साथ साथ और भी अन्य दल इसमें शामिल है. इस गठबंधन के सबसे बड़ी ताकत है इसकी आक्रामक रणनीति और तेजस्वी यादव का युवा नेतृत्व है जो युवाओ में काफी लोकप्रिय होते जा रहे है.
तेजस्वी यादव का नेतृत्व: आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने अपने आक्रामक शैली और बिहार के युवाओ के अपील के दम पर महागठबंधन को एक नई ऊर्जा देने का काम किया है. 2020 केविधान सभा चुनाव में आरजेडी ने 75 सीटों पर सफलता हासिल कर एक सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरा था.
जातीय आधार: राष्ट्रीय जनता दल का मुख्य जनाधार यादव और मुस्लिम समुदायों के लोगो में अधिक है जो बिहार के जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा हैं. इसके अलावा, महागठबंधन ने दलित और अति पिछड़ा वर्ग को भी साधने की कोशिश कर रहे है.
मुद्दों पर हमला: तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी, पलायन, और जातीय जनगणना जैसे गंभीर मुद्दे को उठाकर नीतीश सरकार को घेरने की रणनीति अपनाया है और अपराध और भ्रस्टाचार के भी मुद्दा पर भी बिहार सरकर को घेरते नजर आये है.जो एनडीए के लीये मुसीबत खड़ा कर सकता है चुनाव में.
कांग्रेस का समर्थन: कांग्रेस ने तेजस्वी को महागठबंधन का चेहरा बनाए जाने का समर्थन किया है, जिससे महागठबंधन में समन्वय बढ़ गया है.
महागठबंधन की रणनीति
महागठबंधन ने बिहार विधान सभा चुनाव 2025 को माने तो “करो या मरो” के लड़ाई के रूप में लिया है.
प्रखंड और जिला स्तर पर समन्वय: बिहार में एनडीए के एकजुटता को देखते हुए, महागठबंधन ने भी प्रखंड और जिला स्तर पर सभी सहयोगी दलों के साथ समन्वय बढ़ाने का रणनीति बनाया है.
क्राइम बुलेटिन: महागठबंधन ने एनडीए की नीतीश सरकार पर बिहार में कानून-व्यवस्था को लेकर हमला तेज कर दिया है.और “क्राइम बुलेटिन” के जरिए जनता तक अपने बातो को पहुँचाने के लिये लगातार कोशिश किया जा रहा है.
जातीय जनगणना के मुद्दा: तेजस्वी यादव ने जातीय जनगणना को एक बड़ा मुद्दा बनाया है, जो सामाजिक न्याय के प्रति उनके समर्थन को उजागर करता है.
चुनौतियाँ
चुनौतियां की बात करे तो महागठबंधन को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
आंतरिक कलह: राजद और कांग्रेस के बीच रिश्तों में तनाव को लेकर भी खबरे आता रहा है.तेजस्वी यादव के आक्रामक तेवर और उनके समर्थकों के गतिविधियाँ गठबंधन के छवि को नुकसान पहुँचा सकता है संभावना के तौर पर देखे तो लेकिन यह ऐसा हो सकता है यह कोई जरूरी नहीं है.
जंगल राज का टैग: नीतीश कुमार और भाजपा ने राजद के शासनकाल को बार बार लगातार “जंगल राज” के रूप में प्रचारित करने का काम किया है.जो बिहार के मतदाताओं के बीच एक नकारात्मक धारणा बनाता है.
सीमित संसाधन: एनडीए के तुलना में महागठबंधन के पास संसाधनों का अभाव है और साथ ही संगठनात्मक ताकत के भी कमी है.
तीसरे मोर्चे की संभावना
तीसरे मोर्चे की संभावना की बात करे तो बिहार में एनडीए और महागठबंधन के अलावा कुछ अन्य दल भी है जो अपनी भूमिका को निभाने का लगातार
कोशिश कर रहा है. मायावती के बहुजन समाज पार्टी (बसपा ) और असदुद्दीन ओवैसी के ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) भी
बिहार में तीसरे मोर्चे के रूप में उभर सकता है. बीएसपी को बिहार में एंट्री को लेकर एक “गेमचेंजर” के रूप में देखा जा रहा है, खासकर के दलित और महादलित वोटों को प्रभावित करने के संदर्भ में बात किया जाये तो बहुजन समाज पार्टी गेम चेंजर साबित हो सकता है. इसके अलावा, मुकेश सहनी के विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) भी निषाद समुदाय के वोटों को साधने के लिये लगातार कोशिश कर रहा है.
जनता का मूड और सर्वे
अब बात आती है बिहार की जनता की तो हाल के सर्वे और विश्लेषण ने बिहार के मूड को समझने में काफी मदद कर सकता है. एक इंटरनल सर्वे के अनुसार, राजद अथवा आरजेडी को 28%, भाजपा को 25%, जेडीयू को 16%, और कांग्रेस को 15% वोट मिलने का संभावना व्यक्त किया है. बाकी 16% वोट छोटे छोटे दलों और अन्य के बीच बँट सकता है. यह दर्शाता है कि 2025 के बिहार विधान सभा का चुनाव काफी रोमांचक होने वाला है और मुकावला भी काँटे का होगा, और वोटों का ध्रुवीकरण एक निर्णायक साबित होगा.
निष्कर्ष: कौन होगा सुपरहिट?
निष्कर्ष के तौर पर बात करे तो बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए के एकजुटता और नीतीश कुमार के नेतृत्व उसे मजबूत स्थिति में रखता है. नीतीश के विकास का एजेंडा, भाजपा के संगठनात्मक ताकत, और चिराग पासवान जैसे नेताओं का समर्थन एनडीए के ताकत को बढ़ा देता है. दूसरी ओर, महागठबंधन की बात करे तो तेजस्वी यादव के जोश और सामाजिक न्याय के मुद्दे के साथ जनता को लुभाने का लगातार कोशिश किया जा रहा है.हालांकि, राजद के “जंगल राज” के छवि और गठबंधन में आंतरिक समन्वय के कमी उनके राह में रोड़ा बन सकता है.
अब बात आती है तीसरे मोर्चे की तो तीसरे मोर्चे की मौजूदगी, खासकर बीएसपी और एआईएमआईएम,जैसे पार्टिया बिहार के वोटों का बँटवारा कर सकता है. जो मुख्य रूप से महागठबंधन को नुकसान पहुँचाएगा ऐसी संभावना है. अगर एनडीए अपनी एकजुटता बनाए रखता है और सीट बंटवारे में भी संतुलन को बनाये रखता है तो संभवतः वह सत्ता में वापसी कर सकता है. वहीं, महागठबंधन को जीत हासिल करने के लिए असाधारण समन्वय और रणनीति की जरूरत होगा.
अंत में, यह कहना बड़ा मुश्किल है कि कौन “सुपरहिट” होगा, लेकिन वर्तमान में देखा जाये तो एनडीए का पलड़ा भारी दिखाई देता है. फिर भी, बिहार के जनता का मूड और आखिरी समय में बदलते समीकरण इस चुनाव के नतीजों को अप्रत्याशित बना सकता है.

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