तीसरा पक्ष ब्यूरो : पटना, 22 अप्रैल 2025 को राजद प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा कि प्रधानमंत्री 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर बिहार दौरे केदौरान पंचायती राज संस्थाओं को महज ‘शोपीस’ से बाहर निकालकर 73वें संविधान संशोधन के तहत उनके अधिकार सुनिश्चित करें. ऐसा न होने पर उनका यह कार्यक्रम केवल दिखावटी और चुनावी आयोजन माना जाएगा.
राजद प्रवक्ता ने कहा कि एनडीए सरकार ने बिहार की पंचायती राज संस्थाओं को राजद शासनकाल में मिले संसाधनों और अधिकारों में भारी कटौती की है, जिससे ये संस्थाएं अब केवल दिखावटी बनकर रह गई हैं. इस साल 12 फरवरी को केंद्रीय मंत्री एस.पी. सिंह बघेल द्वारा जारी पंचायती राज संस्थाओं के डी.आई. स्कोर में बिहार को 18वें स्थान पर रखा गया है.
चित्तरंजन गगन ने कहा कि राजद शासनकाल में बिहार में सबसे पहले पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी, जिसमें पंचायत प्रतिनिधियों को विकास, शासन और प्रशासन में सीधी भागीदारी दी गई थी. 73वें संविधान संशोधन के तहत प्रदत्त सभी अधिकार पंचायतों को सौंपे गए थे. योजनाओं के चयन, निगरानी के साथ-साथ समस्त प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार भी पंचायती राज व्यवस्था को हस्तांतरित किए गए थे.2004 में केंद्र सरकार द्वारा जारी डी.आई. स्कोर में बिहार शीर्ष पांच राज्यों में शामिल था.
राजद प्रवक्ता ने कहा कि वर्तमान सरकार की उदासीनता के कारण पंचायती राज व्यवस्था की नियमावली अभी तक तैयार नहीं हो सकी है. उन्होंने बताया कि लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री काल में 1993 में बिहार पंचायती राज अधिनियम बनाकर पंचायती राज संस्थाओं को स्वायत्तता प्रदान की गई थी. साथ ही, राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रीत्व काल में 2001 में पंचायत प्रतिनिधियों के चुनाव कराए गए थे। राजद शासनकाल में 2001 के पंचायती राज चुनावों में ही महिलाओं और अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षण व्यवस्था लागू की गई थी.
राजद प्रवक्ता ने कहा कि भाजपा शुरू से ही पंचायती राज व्यवस्था की विरोधी रही है.इसके बावजूद 1993 में पंचायती राज अधिनियम बनाया गया, लेकिन 1996 में चुनाव प्रक्रिया शुरू होने पर भाजपा और तत्कालीन समता पार्टी (जदयू) के इशारे पर आरक्षण प्रावधानों के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट दायर कर चुनाव रुकवा दिया गया। उन्होंने बताया कि एनडीए सरकार ने राजद सरकार के समय बने अधिनियम में संशोधन कर डीडीसी के स्थान पर बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को जिला परिषद का मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी नियुक्त कर दिया, जबकि 73वें संविधान संशोधन में स्पष्ट है कि जिला परिषद का मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी जिलाधिकारी के समकक्ष स्तर का होना चाहिए। इसी तरह, पंचायत समिति के कार्यपालक पदाधिकारी के रूप में प्रखंड विकास पदाधिकारी को हटाकर कनिष्ठ अधिकारी को नियुक्त किया गया। इससे पूरी पंचायती राज व्यवस्था को नौकरशाही के हवाले कर दिया गया, जिसके चलते यह व्यवस्था अब केवल दिखावटी बनकर रह गई है.
राजद प्रवक्ता ने कहा कि प्रधानमंत्री जब राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर बिहार में पंचायत प्रतिनिधियों को संबोधित करने आ रहे हैं, तो उन्हें अपने मंत्री द्वारा 12 फरवरी को जारी डी.आई. स्कोर पर भी ध्यान देना चाहिए। साथ ही, बिहार में पंचायती राज व्यवस्था को दिखावटी स्थिति से बाहर निकालने और नौकरशाही के नियंत्रण से मुक्त करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए.

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