संत रविदासजी की 646 वां जयंती पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्रद्धांजलि अर्पित की
तीसरा पक्ष ब्यूरो।।संत रविदासजी की 646 वां जयंती धूम धाम ,उत्साह और पुरी श्रद्धा के साथ पुरे देश में मनाई गई। यह जयंती ऐसे समय में मनाई जा रही है , जब पुरे देश में पाखंड ,आडम्बर और कट्टरता खिलाफ जगह जगह आंदोलन हो रहे है। कही मनुस्मृति को जलाई जा रही है ,तो कही तुलसी दास कृत रामचरित्रमानस और आर एस एस के पूर्व सर संघचालक गुरु गोलवरकर द्वारा लिखित पुस्तक बंच ऑफ़ थॉट्स पर समाज के बहुसंख्यक हिस्से द्वारा सवाल उठाए जा रहे हैं। आपको लग रहा होगा कि संत रविदासजी की जयंती पर इन सभी पुस्तकों पर हम चर्चा क्यों कर रहे है, तो जरा ठहरिए और सोचिये कि आज बिहार और उत्तर प्रदेश सहित पुरे देश अनेक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा जो आंदोलन चलाये जा रहे है उसकी शुरआत सदियों पहले संत रविदासजी ने किया था। उस समय उनके समकालीन कवि संत कबीर के साथ साथ कई अन्य प्रगतिशील संतो ने उनको साथ दिए थे। आप कह सकते है कि बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्र शेखर और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या भी संत रविदास जी की ही बातो को आगे बढ़ा रहे हैं। आगे तीसरा पक्ष के इस आलेख में संत रविदास जी के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डालेंगे ,परन्तु उससे पहले उनकी जयंती के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्या कहा जरा पढ़िए :-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संत रविदास जी की जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने संत रविदास जी की जयंती पर ट्वीट के माध्यम से उनको श्रद्धांजलि अर्पित की है। अपने एक ट्वीट में, प्रधानमंत्री ने कहा :-
“संत रविदास जी की जयंती पर उन्हें नमन करते हुए हम उनके महान संदेशों का स्मरण करते हैं। इस अवसर पर उनके विचारों के अनुरूप न्यायप्रिय, सौहार्दपूर्ण और समृद्ध समाज के अपने संकल्प को दोहराते हैं। उनके मार्ग पर चलकर ही हम कई पहलों के जरिए गरीबों की सेवा और उनका सशक्तिकरण कर रहे हैं।”
संत रविदास जी का जीवन परिचय
चौदह सौ तैंतीस कि माघ सुदी पन्दरास।
दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास।
संत रविदास जी की उपरोक्त प्रचलित दोहा से पता चलता है कि उनका जन्म काशी में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1398 को हुआ था । उनके पिता का नाम संतोख दास तथा माता का नाम कलसांं देवी था। उनकी पत्नी का नाम लोना देवी बताया जाता है। हलाकि उनके जन्म को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वानों का कहना है कि संत गुरु रविदास जी महाराज का जन्म 1377 ईस्वी में राज्य उत्तर प्रदेस बनारस के मंडुआ डीह नामक गाँव में हुआ था। गुरु रविदास जी बचपन से ही साहसी और बहुत ही तेज थे। बचपन से ही उनको उच्च कोटि के जाती के द्वारा उनका कई बार अपमान किया गया और रविदास जी को ईस का सामना करना पढ़ा और वह अपमान सहते थे। उन्होने सोचा उच्च नीच की भावना को दूर करने का एक मात्र सहारा शिक्षा ही है। जिससे इस समाज में फैले कुरितियो को दूर किया जा सकता है। और उन्होने इसे दूर करने का कोशिस भी किये। महान संत गुरु रविदास जी का देहांत 1540 ईस्वी में वारानसी स्थान पर हुआ था। संत गुरु रविदास जी भारत के एक समाज सुधारक के साथ साथ एक प्रसिद्ध संत कवि और दार्शनिक के रूप में पसिद्ध थे। उन्होने अपनी कविता के द्वरा अपने समाज के कोगो को आपस में प्रेम करना सिखाया और उन्होने समाज में फैले जात पात छुया छूत उच नीच की भावना को विरोध किये। उन्होने देश के लोगो को सामाजिक विचार के साथ साथ धार्मिक उपदेश दिया करते थे। उन्होने भारत में भक्ति आन्दोलन भी चलाये।आप कह सकते है कि संत गुरु रविदास जी हिर्दय में ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास रखते थे। उनके द्वारा दिये गए विचार से लोग बहुत ही प्रभावित हुए और उनके बताये गए रास्ते पर चलने के प्रयास किये। कइ लोग गुरु रविदास जी को भगवन तरह पूजते है। और आज भी उनके पुस्तक से हम लोगो को काफी प्रेरणा मिलती है।
गुरु रविदास जी की शिक्षा
संत गुरु रविदास जी अपनी शिक्षा गुरु सरदानन्द जी से प्राप्त किये थे।हलाकि संत रविदास जी के असली गुरु कौन थे उस पर भी मतभेद है। कुछ लोग रामानंद को संत रविदास जी का गुरु नहीं मानते है। जब गुरु रविदास जी पढ़ने के लिए पाठशाला जाते थे। तब उच्च जाती के लड़के इनका नीच जाती समझकर इनका मजाक उड़ाते और उनको अपमान भी करते थे। फिर भी रविदास जी इस अपमान को सहकर पाठशाला जाया करते थे। लेकिन संत गुरु रविदास जी का साहस और प्रतिभा को रविदास जी का गुरु ही समझते थे। उनका अपमान होते देख उन्होने गुरु रविदास जी का शिक्षा अलग से देना शुरू कर दिये गुरु रविदास जी अपने गुरु को बहुत ही सम्मान करते थे। जितना उनका गुरु जी पढ़ते थे। कही उनसे ज्यदा अपने मन से ग्रहण करते थे। संत गुरु रविदास के शिक्षक गुरु रविदास के आचरण से बहुत हि प्रसन्न थे। और सोचते थे की आगे चलकर गुरु रविदास एक दिन एक अच्छा धार्मिक एवं समाज को सही रास्ता दिखने का काम करेगा।जिस पाठशाला में गुरु रविदास जी पढ़ने जाया करते थे। उसी पाठशाला में उनका गुरु का बेटा भी पढ़ते थे। गुरु रविदास और गुरु का बेटा से दोस्ती हो गया था। दोनों एक साथ खेलते थे। हर दिन दोनों साथ साथ रहे लगे और एक दुसरे को समझने लगे इस तरह दोनों में दोस्ती बढ़ते गए दोनों की दोस्ती देखकर संत गुरु के शिक्षक बहुत खुश रहते थे।एक दिन के बात है। सुबह के समय संत गुरु रविदास जी खेलने के लिए गये उनका दोस्त गुरु का बेटा खेलने नहीं आया। संत गुरु रविदास जी अपने दोस्त कि आने की आशा में वही जगह पर बैठ कर इंतजार करने लगे। बहुत इंतजार के बाद भी उनका दोस्त नहीं आता है। तब अपने दोस्त के घर जाने के बारे में सोचते है। और अपने दोस्त के घर चल दिए वहा जाकर देखते है। तो पता चलता है कि गुरु जी का बेटा इस दुनिया में नहीं रहे। उनका मृत्यु हो गया यह बात सुनकर संत रविदास जी को बहुत दुःख हुआ और सोचने लगे की आज मै अकेला हो गया फिर अपने मृत दोस्त के पास जाते है। और अपने दोस्त के सर पर हाथ रखकर कहते है। कि उठो दोस्त मै तुम्हारा दोस्त संत रविदास हू अभी सोने का समय नहीं है। और इतना कहते हि उनका दोस्त उठकर बैठ जाता है। और सभी लोग देखकर आश्चर्य और चकित रह जाते है। इससे पता चलता है कि संत रविदास जी एक धार्मिक अध्यात्मिक संत थे। जो इश्वर में विश्वास रखते थे। संत गुरु रविदास जी राजस्थान कि रानी मीराबाई कि धार्मिक गुरु भी थे। वह राजस्थान के राजा के पुत्री थी। वह रविदास जी से धार्मिक शिक्षा पाकर बहुत हि खुश और प्रभावित थी। मीराबाई अपने गुरु को बहुत हि सम्मान और आदर करती थी। मीराबाई अपने माता-पिता के एक एकलौती संतान थी। मीराबाई जब बचपन कि अवस्था में थी तभी उसकी माता जी का मृत्यु हो गई थी। उसके बाद उनका पालन पोसन उनका दादा जी ने किया था। मीराबाई के दादा जी संत गुरु रविदास के बहुत बड़े भक्त थे। मीराबाई अपने परिवार के सहमती से संत रविदास जी को अपना गुरु मानती थी। और मीराबाई के जब भी कोई कष्ट होता था। तो हमेशा गुरु रविदास ने सहायता करते थे।
संत गुरु रविदास जी का सामाजिक कार्य
संतगुरु रविदास जी महाराज एक महान कर्मयोगी एक महान समाज सुधारक थे। उन्होने अपने जीवन काल में सामाजिक क्षेत्र में बहुत हि सराहनीय कार्य किये थे। उनके जीवन काल में हिंदु धर्म के साथ साथ सामाजिक क्षेत्र में भी काफी बुराइया फैले हुए थे। धर्म और जात पात में नाम पर लोगो को सामाजिक उत्पीडनो का सामना करना पड़ता था। समाज में लोगो को हिन् भावना के नजरो से देखा जाता था। लेकिन संत गुरु रविदास जी ने इस सब बुराईयो को दूर करने का काफी प्रयास किये थे। भगवान ने उनको धरती पर धर्म कि रक्षा के लिए हि भेजा था। उनके जीवन काल में धरती पर पाखंडियो द्वारा काफी पाप और अधर्म किया जा रहा था। लोगो में धर्म के नाम पर जाती के नाम पर रंगभेद किया जाता था। उसको नीच की नजरो से देखा जाता था। इन सब कठिनायो के बाबजूद संत गुरु रविदास जी ने काफी निर्भयता के साथ सामना किये थे। उन्होने लोगो को जाती कि सच्चाई और परिभाषा भी लोगो को बताये। और वह कहते थे की इन्सान जाति धर्म या भगवान पर विश्वास के द्वारा नहीं जाना जाता है। बल्कि उसके कर्म और कर्तब्य से जाना जाता है। उस समय समाज में उच नीच छुआछूत की भावना काफी बढ़ गया था। उस समय जात के नाम पर गलत भावना से देखा जाता था। उसको नीच समझा जाता था। उस समय पूजापाट करना लोगो को घर और गाँव से निकलना यहाँ तक की शिक्षा ग्रहण करना स्कुल में पढ़ना प्रतिबंधित था। उसको अच्छे मकान में रहने के बजाय झोपड़ी में रहने के लिए बिवस किया जाता था। समाज में इन सब सारी बुराइयों को जब रविदास जी महाराज ने देखा तो इसको दूर करने के लिए सोचा और सभी लोगो को यह सन्देश देने लगे की जिनते भी इस धरती पर लोग है। सभी को ईस्वर ने बनाया है। न की पाखण्ड का दिखावा करने वाला लोगो ने इससे जाहिर होता है। की सभी इन्सान को ईस्वर ने बनाया है।और इस धरती पर सभी मनुष्य का एक समान अधिकार है। संत गुरु रविदासजी महाराज ने लोगो के बिच भाईचारा और प्रेम के शिक्षा का सन्देश जबतक रहे इस धरती पर देते रहें। वह बहुत ही महान थे। उन्होने अपने जीवन काल में बहुत से पद और धार्मिक गीतों और उनकी रचना को सिख धर्म के पवित्र मानें जाने वाले धर्म ग्रन्थ गुरु गोविन्द ग्रन्थ साहिब में भी सामिल किया गया था। गुरु अर्जुनदेव ने इसको सामिल किये थे। जो सीखो के पाचवे गुरु थे। संत गुरु रविदास जी महाराज ने जो अपने अनुयायियों को शिक्षा और जो उपदेश दिये वह रविदास्सिया पंथ कहलाया है। रविदास जी महाराज ने सामाजिक कुरितियो को दूर करने में उनके योगदान बड़ा ही उपयोगी और बहुमूल्य साबित हुए आज उनकी देंन है। की समाज और धर्म मे प्रेम और भाईचारा देखने को मिलता है। वह पाखंडी नहीं थे। वह देव पुरुष एक महान धर्मात्मा और यूग पुरुष थे।
संत गुरु रविदास जी के विचार
संत गुरु रविदास एक महान सच्चे और निर्मल विचार के संत थे। उन्होने समाज को अपनी विचार और भक्ति भाव से समाज और देश के लोगो को जोड़ने का प्रयास किये थे। वे हमेशा कहते थे की सभी मनाव जाती इन्सान का इस धरती पर बराबर का अधिकार है। और हर इन्सान को हक़ है की वे अपनी इच्छानुसार अपना लिवास पहन सकता है और जो काम करने में सक्षम है,वह कम कर सकता है। कहा जाता है कि प्रारम्भ में संत गुरु रविदास जी भी ब्राह्मण की तरह जनाव और तिलक लगते थे। इन सब देख के गुरु जी के अपने ही जाती के लोग नफरत करने लगे थे और कहते थे ब्रह्मणो की तरह धोती और तिलक लगाना छोड़ दो। इन सब बाते सुनकर संत गुरु रविदास जी इन सभी बात को विरोध करते थे।और वो हर काम करने लगे जो काम नीच जाती के लिए मनाही था। इस तरह धीरे धीरे निच जाती के लोग अपना अधिकार पर हक़ जमाना शुरू कर दिये जैसे अपने कान पर जनेऊ पहनना अपने सर पर तिलक लगाना और अपने इच्छानुसार कपड़ा पहनना आदि। उच्चजाति के लोग उनकी इस गतिविधियों के देखकर काफी नाराज रहने लगे और संत गुरु रविदास जी के विरुद्ध राजा के दरवार में जाकर राजा से सिकायत की तब उस राज्य के राजा ने संत गुरु रविदास को राजा ने बुलाया तब संतगुरु रविदास जी ने इन सभी सिकायत के सबाल का जबाब देते हुए संत गुरु रविदास ने कहा कि मै भी एक इन्सान हूँ। और इन्सान होने के नाते सभी मनाव जाती का चाहे शुद्र हो या ब्रह्मण सभी को अधिकार है कि अपने पसन्द के कपड़ा पहनना और काम करे । इन सब बातो को कहते हुये रविदास जी भरी सभा में अपनी छाती को चिर कर चारो यूगो का दर्शन कराये।और जो उनके छाती में जनेऊ थे। उन्होने सब को दिखाया यह जनेऊ सोना ,चाँदी तांबा और कपास के बने हुए थे। यह सब देख कर राजा के साथ साथ पुरे सभा में मौजूद लोगो जो थे उसका सर शर्मसार होकर लज्जित होकर अपना सर निचे झुका लिया था।और रविदास जी के चरणों को छूकर क्षमा मागी और भरी सभा में रविदास जी को राजा ने सम्मानपूर्वक उनका सम्मानित किया था। राजा को इस अपनी किये गयें अपराध पर बहुत अफ़सोस होने लगा और वह पछताने लगा और कहने लगा की मै भी पाखंडियो के बातो में आकर आप पर संदेह किया इस लिए हे संतगुरु रविदास जी महाराज मै आप से माफ़ी मागता हु। मै अपने किये पर बहुत ही सर्मिन्दा हु। रविदास जी एक दिव्य पुरुष थे। उन्होने सभी को माफ़ कर दिये और उन्होने कहा की जनेऊ पहनने से ईस्वर या भगवान नहीं मिल जाता है। और उन्होने कहा की मै आप लोगो को सच्चाई और वास्तविकता से ही दर्शन कराने आया हु। इतना कहते हुये रविदास जी ने अपने शरीर से जनेऊ उतार कर राजा को सौप देते है। और उन्होने कभी भी दुबारा या बाद में जनेऊ का धारण नही किया न ही उन्होने कभी तिलक चन्दन अपने शरीर नहीं लगाये। रविदास जी एक महान कर्मयोगी थे। वह ईश्वर को तन और मन से मानने वाले ईश्वर के पुजारी थे। वह आडम्बर और पाखंड करनेवाले दिखावा करने वालो में विश्वास नहीं करते थे। वह महान थे। उनके द्वारा किये सामाजिक कार्य तथा समाज को सच्चाई का मार्ग दिखने के लिये वर्तमान का समाज उनको आजीवन ऋणी रहेगा।
संत गुरु रविदास जी के पिता कि मृत्यु से तथ्य
कहा जाता है।कि जब उनके पिता जी का मृत्यु हुआ था। तब उन्होने अपने पिता जी के पार्थिव शरीर को लेकर अपने पड़ोसियों के साथ मिलकर उनके अंतिम संस्कार करने के लिए गंगा जी के तट पर गयें थे। लेकिन ब्राह्मण लोग उनके संस्कार को लेकर विरोध करने लगे। और कहने लगे की हम लोग गंगा जी में स्नान करते है। आप लोग छोटे जात है। आप इस शरीर को गंगा जी में प्रवाहित नहीं कर सकते है। आप लोगो के शव को प्रबाहित होने से गंगा जी प्रदूषित हो जाता है। यह सुनकर संत गुरु रविदास जी महाराज को बड़ा ही दुःख हुआ। और अपने आप को वह काफी असहाय महसूस करने लगे। लेकिग गुरु रविदास जी अपने आत्म विश्वाश को नहीं छोड़ा। और उन्होने अपने आत्म विश्वाश पर अटल रहे। तब गुरु रविदास जी ने अपने पिता जी के आत्मा के सुख और उनकी आत्मा के शांति के लिए उन्होने ईस्वर से प्राथना करने लगे। तभी गंगा जी में एक तूफान आता है। और गंगा जी के पानी की धारा बिपरीत दिशा में होकर बहने लगी जिस योर उनके पिता जी का मृत सरीर रखा हुआ था। उसके बाद गंगा जी के पानी की लहर उनके पिता जी के मृत सरीर को लेकर अपने गोद में ले लिये उसी दिन से गंगा जी की धारा बिपरीत दिशा में बहने लगी। यह देख कर ब्राह्मणवादी लोग आश्चर्यचकित रह जाता है। और वे लोग सोचने पर मजबूर होता है। और मन ही मन पछताने लगता है। यह था संत गुरु रविदास जी की महिमा जिनकी सच्ची भक्ति और श्रधा देख कर ईस्वर भी काफी प्रसन्न रहते थे।
संत गुरु रविदास जी कि मृत्यु
संत गुरु रविदास जी एक सच्चा इमानदार और ईस्वर में बिश्वास रखने बाले संत थे। इनका भक्ति भाव देखकर समाज के अनेक लोगो ने इनसे जुड़ते गए और दिन प्रति दिन इनका भक्त बढ़ते गये। दूसरी तरफ इनका विरोधी भी बढ़ रहे थे ।कई बार तो गुरु रविदास जी को जान से मारने के लिए भी सोचा पाखंडी लोगो ने लेकिन भगवान् कि कृपा से बच्च जाते थे। एक बार संत गुरु के बिरोधी जो लोग थे वह शहर से काफी बाहर और गाँव से भी काफी दूर एक सभा का आयोजित किया था। और इस सभा में रविदास जी को बुलाया गया था। लेकिन रविदास जी तो खुद ही अन्तर्यामी थे। उन्होने इन ब्राह्मण वादी चाल को पहले ही समझ गये थे। फिर भी वह सभा में उपस्थित होकर इस सभा का शुरुयात किये। लेकिन ब्राह्मण द्वारा रचे गयें इस कुचक्र में उसका हि एक साथी मारा जाता है। उधर संतगुरु रविदास जी जब शंख बजाते है। तो शंख की आवाज सुनकर वे लोग आश्चर्यचकित हो जाता है। इसके बाद वेलोग बहुत ही हारे और दुखी मन से गुरु रविदास जी के पास जाता है। और गुरु जी से क्षमा याचना करता है। और कहता है कि मैंने आपके प्रति गलत सोचकर बहुत बड़ा मैंने अपराध किया है। इसके लिए हमलोग आपसे क्षमा मागते है। और गुरु जी सभी को क्षमा कर देते है। क्योंकि गुरु रविदास जी ईस्वर के सच्चे उपासक थे। कुछ लोगो का मानना है कि उनका मृत्यु 1540 में उत्तर प्रदेस के वारानाशी के पास उन्होने अपना शरीर त्याग दिये थे।
संत रविदासजी की 646 वां जयंती पर तीसरा पक्ष परिवार के तरफ से कोटि कोटि नमन एवं हार्दिक श्रद्धासुमन !

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