सम्राट अशोक जयंती 2025 : मगध का ऐतिहासिक वैभव वापस आएगी ?

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kmSudha

बिहारतीसरा पक्ष आलेख

पाटलिपुत्र के ऐतहासिक धरती के अलावे गया में भी सम्राट अशोक की जयंती मनाई गई

तीसरा पक्ष ब्यूरो,पटना : मगध सम्राट अशोक महान की जयंती वैसे तो देश के कई भगो में मनाया जाता है लेकिन मगध साम्राज्य की राजधानी रही पाटलिपुत्र के ऐतिहासिक धरती पर जब 5 अप्रैल 2025 को उनकी जयंती मनाई गई ,तो उसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है। पटना से सटे भगवान बुद्ध के ज्ञान स्थली बोधगया में भी उनकी जयंती के अवसर पर देश विदेश के अनेक बौद्ध धर्मावलम्वी पहुंचे और महाबोधि महाविहार को बौद्धिष्टों के हांथो में प्रबंधन सौपने की मांग उठाए। आपको बता दे कि लगभग पचास से अधिक दिंनो से बौद्ध धर्मावलम्वी बीटी एक्ट 1949 को रद्द करने की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं।

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सम्राटअशोक जयंती पटना में शामिल नेता

सम्राट अशोक, जिन्हें अशोक महान के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास के सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक थे। उनकी जयंती, जिसे अशोक विजयदशमी या अशोक जयंती के रूप में मनाया जाता है, उनके जीवन और योगदान को याद करने का अवसर है। अशोक मौर्य वंश के सम्राट थे, जिन्होंने मगध साम्राज्य को अपने चरम पर पहुँचाया।

मगध का यह गौरवशाली इतिहास और अशोक का शासन

मगध का गौरवशाली इतिहास और सम्राट अशोक का शासन भारतीय सभ्यता के सबसे महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक है। मगध, जो प्राचीन काल में भारत के पूर्वी हिस्से (आधुनिक बिहार और आसपास के क्षेत्र) में स्थित था, अपनी शक्ति, संस्कृति और बौद्धिक उन्नति के लिए प्रसिद्ध रहा। अशोक के शासन ने इस क्षेत्र को न केवल एक विशाल साम्राज्य के रूप में स्थापित किया, बल्कि इसे शांति और धर्म के वैश्विक केंद्र के रूप में भी पहचान दिलाई।

अशोक ने अपने शासन की शुरुआत एक विजेता के रूप में की थी। कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) में भारी रक्तपात और विनाश को देखकर उनका हृदय परिवर्तन हुआ। इसके बाद उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया और अहिंसा, शांति व धर्म के सिद्धांतों को पूरे एशिया में फैलाया। उनके शिलालेख (अशोक के अभिलेख) और स्तंभ आज भी उनके शासन की महानता और नीतियों के प्रमाण हैं।

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सम्राटअशोक जयंती पटना में शामिल नेता एवं कार्यकर्ता

अशोक का शासन: एक परिवर्तनकारी युग

मगध का यह गौरवशाली इतिहास और अशोक का शासन आज भी भारतीय संस्कृति और मूल्यों में गहराई से समाया हुआ है। उनकी शिक्षाएँ, जैसे “धम्म लिपि” में व्यक्त विचार, मानवता के लिए एक कालजयी संदेश हैं। क्या आप अशोक या मगध के किसी विशेष पहलू के बारे में और जानना चाहेंगे?

  • धम्म नीति: अशोक ने “धम्म” की नीति अपनाई, जो नैतिकता, सहिष्णुता, और जनकल्याण पर आधारित थी। यह नीति उनके शिलालेखों में देखी जा सकती है, जो पूरे भारत में फैले हुए हैं।
  • साम्राज्य का विस्तार: अशोक के अधीन मौर्य साम्राज्य अफगानिस्तान से बांग्लादेश और दक्षिण में कर्नाटक तक फैला था। मगध इस विशाल साम्राज्य का केंद्र था।
  • प्रशासनिक सुधार: उन्होंने एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की, जिसमें सड़कों, कुओं, और विश्रामगृहों का निर्माण शामिल था। उनके शिलालेखों में अधिकारियों को जनता की सेवा करने के निर्देश दिए गए हैं।
  • बौद्ध धर्म का प्रसार: अशोक ने बौद्ध धर्म को न केवल भारत में, बल्कि श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड और यूनान तक फैलाया। उनके पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मगध की सांस्कृतिक और आर्थिक समृद्धि

मगध न केवल सैन्य शक्ति का केंद्र था, बल्कि यह व्यापार, कला और शिक्षा का भी गढ़ था। पाटलिपुत्र उस समय का एक समृद्ध नगर था, जिसे यूनानी दूत मेगस्थनीज ने भी अपनी रचनाओं में वर्णित किया है। यहाँ के विश्वविद्यालय, जैसे नालंदा (जो बाद में गुप्त काल में प्रसिद्ध हुआ), मगध की बौद्धिक विरासत को दर्शाते हैं।

अशोक की विरासत और मगध का महत्व

अशोक के शासन के बाद मगध की शक्ति भले ही कम हुई हो, लेकिन उनकी नीतियों और बौद्ध धर्म के प्रभाव ने इसे अमर बना दिया। उनके अशोक चक्र और स्तंभ आज भी भारतीय राष्ट्रीय प्रतीकों में शामिल हैं। मगध का यह गौरवशाली इतिहास न केवल भारत, बल्कि विश्व इतिहास में भी एक अनूठा स्थान रखता है, क्योंकि यहाँ से शांति और मानवता का संदेश पूरी दुनिया में फैला।




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