मौत का प्रमाण नहीं प्रवास का कोई सबूत नहीं—तो नाम कैसे कटे?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 1 अगस्त:बिहार में चुनाव प्रक्रिया को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है. भाकपा-माले (CPIML) के राज्य सचिव कुणाल ने आज चुनाव आयोग की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठाते हुए कहा कि आयोग द्वारा मृत, स्थायी रूप से प्रवासित और ‘अनट्रेसेबल’ (पता न चल सकने वाले) मतदाताओं की जो सूची जारी की गई है. वह अधूरी और अपारदर्शी है.
कुणाल का कहना है कि आयोग ने जिला स्तर पर तो एसआईआर (सस्पेक्टेड इनवैलिड रजिस्ट्रेशन) की लिस्ट दिया है. लेकिन राज्य स्तर पर कोई समेकित सूची जारी नहीं की गई है. उन्होंने यह भी कहा कि आयोग ने महज एक आंकड़ा—65,64,075 मतदाताओं का—साझा किया है. लेकिन इन लोगों के नाम या पहचान से जुड़ी कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है.
मृत या प्रवासी किस आधार पर?
भाकपा-माले नेता ने यह सवाल भी उठाया कि आयोग ने इन लाखों लोगों को मृत, स्थायी रूप से प्रवासित या अनट्रेसेबल घोषित करने के लिए कौन-सी प्रक्रिया अपनाई?
क्या मृतकों के परिजनों से डेथ सर्टिफिकेट मांगा गया? क्या प्रवासी मजदूरों से संपर्क किया गया? या फिर महज बीएलओ की एक-दो बार की रिपोर्ट पर ही इन नामों को बाहर कर दिया गया?: कुणाल
उनका कहना है कि यह पूरी प्रक्रिया अंधेरे में” चल रही है. और इससे आम मतदाता के मन में अविश्वास की भावना पैदा हो रही है. कुणाल ने दावा किया कि कई इलाकों से उन्हें रिपोर्ट मिली है कि गरीब और वंचित तबकों के मतदाताओं के नाम जानबूझकर एसआईआर लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है.
पारदर्शिता की मांग
भाकपा-माले ने चुनाव आयोग से मांग किया है कि वह 65 लाख से अधिक हटाए गए मतदाताओं की नाम सहित पूरी सूची सार्वजनिक करे.पार्टी का मानना है कि इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि यह भी स्पष्ट हो सकेगा कि किन मानकों के आधार पर मतदाता सूची से नाम हटाए जा रहे हैं.
कुणाल ने चेतावनी दिया कि अगर आयोग ने जल्द इस विषय पर स्पष्ट और पारदर्शी रुख नहीं अपनाया। तो यह मामला लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप और वंचित वर्गों के मतदान अधिकारों के हनन के रूप में देखा जाएगा.
संपर्क में रहने वाले नागरिकों और संगठनों से भी भाकपा-माले ने अपील किया है कि वे अपने इलाके की मतदाता सूची की जांच करें और यदि नाम गायब हैं.तो उसका विरोध दर्ज कराएं.

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