नीतीश की कुर्सी पर किसकी नजर !

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Ajit Kumar

तीसरा पक्ष आलेखबिहार
नीतीश की कुर्सी पर किसकी नजर:या सियासी दोस्त बनेंगे नए दुश्मन?

या सियासी दोस्त बनेंगे नए दुश्मन?

तीसरा पक्ष डेस्क पटना:बिहार की सियासत हमेशा से ही भारतीय राजनीति का एक रोमांचक और अप्रत्याशित रंगमंच रहा है. यहां गठबंधन बनते हैं, टूटते हैं, और कभी-कभी रातोंरात नए समीकरण उभर आते हैं. इस मंच के केंद्र में एक नाम जो पिछले दो दशकों से लगातार सुर्खियों में है, वह है नीतीश कुमार. बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उनका लंबा कार्यकाल, उनकी रणनीतिक चतुराई, और बार-बार गठबंधन बदलने की कला ने उन्हें भारतीय राजनीति का एक अनूठा चेहरा बनाया है. लेकिन 2025 में, जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, नीतीश की कुर्सी पर नजरें तेज हो गई हैं. सवाल यह है कि क्या उनके सियासी दोस्त अब नए दुश्मन बनने की राह पर हैं? आइए, इस सियासी ड्रामे की गहराई में उतरते हैं और विश्लेषण करते हैं कि नीतीश की कुर्सी का भविष्य क्या होगा.

नीतीश कुमार: बिहार की सियासत के शहंशाह

नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च 1951 को बख्तियारपुर, बिहार में हुआ था. उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत जनता दल के सदस्य के रूप में की और 1994 में समता पार्टी की स्थापना की. 2005 से बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी यात्रा शुरू हुई, और तब से वे बिहार की राजनीति के एक मजबूत स्तंभ बने हुए हैं. नीतीश ने अपने शासनकाल में बिहार को “जंगलराज” से निकालकर विकास के पथ पर लाने का श्रेय लिया है.सड़कें, बिजली, शिक्षा, और कानून-व्यवस्था में सुधार उनके कार्यकाल की प्रमुख उपलब्धियां रही हैं. लेकिन उनकी सबसे बड़ी खासियत रही है की वह गठबंधन की सियासत में माहिर है.उन्होंने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) दोनों के साथ बार-बार गठबंधन किए और हर बार अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे.

हालांकि, 2025 में नीतीश की स्थिति पहले जितनी मजबूत नहीं दिख रहा है. उनकी उम्र, बार-बार गठबंधन बदलने की वजह से विश्वसनीयता पर सवाल, और बिहार में नए सियासी चेहरों का उभरना उनके लिए चुनौतियां खड़ी कर रहा है.इसके अलावा, उनके मौजूदा सहयोगी, भारतीय जनता पार्टी (BJP), और विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) दोनों ही नीतीश की कुर्सी पर अपनी नजरें जमाए हुए हैं.

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BJP की रणनीति: नीतीश को सहयोगी या प्रतिद्वंद्वी बनाना?

नीतीश कुमार और BJP का रिश्ता बिहार की सियासत का एक दिलचस्प अध्याय रहा है. 1996 से शुरू हुआ यह गठबंधन कई उतार-चढ़ाव से गुजरा है.2013 में नरेंद्र मोदी को BJP का PM उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद नीतीश ने NDA छोड़ दिया था, लेकिन 2017 में फिर से वापसी की. 2022 में उन्होंने एक बार फिर NDA से नाता तोड़ा और RJD के साथ सरकार बनाई, लेकिन 2024 में फिर से NDA में लौट आए.इस बार-बार के पाला बदलने ने नीतीश को “पलटू राम” का तमगा दिलाया, लेकिन BJP ने हर बार उन्हें स्वीकार किया, क्योंकि बिहार में नीतीश का कुर्मी-कोइरी वोट बैंक और उनकी प्रशासनिक क्षमता उनके लिए महत्वपूर्ण रही.

लेकिन 2025 में BJP की रणनीति बदलती दिख रही है. हाल के कुछ बयानों और घटनाक्रमों से संकेत मिल रहे हैं कि BJP अब नीतीश को सिर्फ एक सहयोगी के रूप में नहीं, बल्कि एक अस्थायी साझेदार के रूप में देख रही है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का हालिया बयान, “कौन मुख्यमंत्री बनेगा, यह समय तय करेगा, नीतीश के लिए एक चेतावनी माना जा रहा है. X पर कुछ पोस्ट्स में भी इस बात की चर्चा है कि BJP नीतीश को केवल चुनावी लाभ के लिए इस्तेमाल करना चाहती है, लेकिन जीत के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने पास रखना चाहती है.

BJP के पास बिहार में मजबूत संगठन और सम्राट चौधरी जैसे कोइरी नेता हैं, जो नीतीश के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं. इसके अलावा, BJP हिंदुत्व के एजेंडे को बिहार में और मजबूत करना चाहती है, जिसमें नीतीश की धर्मनिरपेक्ष छवि एक बाधा बन सकती है. 2023 में नीतीश के इफ्तार पार्टी आयोजन और राम नवमी जुलूस पर पत्थरबाजी की घटनाओं को नजरअंदाज करने की वजह से BJP ने उन पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया था. यह सवाल उठता है कि क्या BJP अब नीतीश को हटाकर बिहार में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है?

RJD का दांव: तेजस्वी का उभार और नीतीश की घेराबंदी

RJD, जिसके नेता लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव हैं, भी नीतीश की कुर्सी पर नजर रखे हुए है. तेजस्वी यादव ने 2020 के विधानसभा चुनाव में RJD को सबसे बड़ी पार्टी बनाकर अपनी नेतृत्व क्षमता साबित किया था .2022-2023 में नीतीश के साथ गठबंधन में तेजस्वी उपमुख्यमंत्री रहे और उन्होंने बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाकर युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल किया.तेजस्वी का दावा है कि उनके 17 महीनों के कार्यकाल में 5 लाख नौकरियां दी गईं, जो नीतीश के लिए एक चुनौती है.

RJD बार-बार नीतीश को महागठबंधन में वापस लाने की कोशिश कर रही है. 2025 की शुरुआत में लालू यादव ने कहा था की नीतीश के लिए हमारा दरवाजा खुला है, लेकिन नीतीश ने इसे सिरे से खारिज कर दिया. तेजस्वी ने हाल ही में नीतीश पर तंज कसते हुए कहा कि BJP ने उन्हें “हाईजैक” कर लिया है. यह बयान RJD की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वे नीतीश को जनता की नजरों में BJP का “कठपुतली” साबित करना चाहते हैं.

RJD की रणनीति साफ है: वे नीतीश के कुर्मी-कोइरी वोट बैंक को तोड़ना चाहते हैं और अपने यादव-मुस्लिम समीकरण को मजबूत रखना चाहते हैं. लेकिन तेजस्वी की युवा छवि और आक्रामक रणनीति नीतीश के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती है.अगर RJD 2025 के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनती है, तो तेजस्वी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार होंगे.

नए खिलाड़ी: नीतीश की कुर्सी की दौड़ में कौन-कौन?

नीतीश की कुर्सी पर नजर रखने वालों में केवल BJP और RJD ही नहीं, बल्कि कुछ नए चेहरे भी उभर रहे हैं. इनमें सबसे प्रमुख हैं:

  • सम्राट चौधरी (BJP): बिहार BJP के अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी कोइरी समुदाय से आते हैं और नीतीश के वोट बैंक में सेंध लगाने की क्षमता रखते हैं. उनकी आक्रामक शैली और हिंदुत्व का एजेंडा उन्हें BJP के लिए एक मजबूत उम्मीदवार बनाता है.
  • उपेंद्र कुशवाहा (RLJD): नीतीश के पूर्व सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा भी कोइरी वर्ग से हैं और NDA में अपनी जगह बनाने की कोशिश में हैं.हालांकि, उनकी पार्टी की सीमित पहुंच उनकी दावेदारी को कमजोर करती है.
  • प्रशांत किशोर (जन सुराज): चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर बिहार में एक तीसरा विकल्प पेश करने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी जन सुराज पार्टी नीतीश और BJP दोनों के लिए चुनौती बन सकती है, लेकिन उनकी सफलता अभी अनिश्चित है.
  • चिराग पासवान (LJP): रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान भी नीतीश के खिलाफ मुखर रहे हैं. उनकी दलित वोट बैंक पर पकड़ और युवा छवि उन्हें एक संभावित दावेदार बनाती है.

इन सभी चेहरों की मौजूदगी नीतीश के लिए सियासी समीकरण को और जटिल बना रही है.

नीतीश की रणनीति: कुर्सी बचाने की जंग

नीतीश कुमार कोई नौसिखिया राजनेता नहीं हैं. उनकी सियासी चतुराई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने बार-बार गठबंधन बदले, फिर भी अपनी कुर्सी बचाए रखी.2025 में भी नीतीश अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटे हैं. उनकी हाल की “प्रगति यात्रा” में वे महिलाओं के लिए नई योजनाओं का ऐलान कर रहे हैं, जो उनका एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है.

नीतीश ने NDA के साथ अपनी प्रतिबद्धता बार-बार दोहराई है. BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात में उन्होंने कहा, “हम दो बार RJD के साथ गए, गलती हुई, अब कभी नहीं जाएंगे. लेकिन नीतीश की सबसे बड़ी ताकत उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि और कुर्मी-कोइरी वोट बैंक है. वे इस वोट बैंक को मजबूत रखने के लिए सामाजिक समीकरण साधने में माहिर हैं.

हालांकि, नीतीश के सामने कई चुनौतियां हैं.उनकी उम्र (74 वर्ष) और स्वास्थ्य संबंधी चर्चाएं उनकी दावेदारी को कमजोर कर सकती हैं. इसके अलावा, BJP के साथ तनाव और RJD की आक्रामक रणनीति उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रही हैं.

सियासी दोस्त बनेंगे दुश्मन?

बिहार की सियासत में दोस्ती और दुश्मनी का कोई स्थायी भाव नहीं होता. नीतीश और BJP, जो आज गठबंधन में हैं, कल एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हो सकते हैं. BJP की रणनीति नीतीश को चुनाव तक साथ रखने और जीत के बाद अपनी शर्तें थोपने की हो सकती है. वहीं, RJD नीतीश को पाले में लाने की कोशिश में है लेकिन नीतीश की विश्वसनीयता पर सवाल उठाकर उन्हें कमजोर भी करना चाहती है.

नीतीश के पुराने सहयोगी जैसे जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा भी अब उनके खिलाफ मुखर हो चुके हैं. यह साफ है कि नीतीश की कुर्सी की दौड़ में उनके सियासी दोस्त अब उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी बन सकते हैं.

निष्कर्ष: नीतीश की कुर्सी का भविष्य

2025 का बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव हो सकता है. उनकी कुर्सी पर न केवल BJP और RJD की नजर है, बल्कि नए चेहरे भी इस दौड़ में शामिल हो रहे हैं. नीतीश की रणनीति, BJP की चाल, और RJD की आक्रामकता इस चुनाव को एक सियासी रोमांचक बना सकती है.

क्या नीतीश एक बार फिर अपनी सियासी चतुराई से कुर्सी बचा लेंगे, या उनके सियासी दोस्त उनके नए दुश्मन बनकर उन्हें सत्ता से बेदखल कर देंगे? यह सवाल बिहार की जनता और समय ही तय करेगा. लेकिन एक बात तय है—बिहार की सियासत का यह ड्रामा पूरे देश की नजरों में होगा.

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