गड़बड़ियों का जवाब नहीं, विपक्ष पर कार्रवाई! यही है न्यू इंडिया का नया लोकतंत्र?
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 3 अगस्त :बिहार की राजनीति में फिर उबाल पर है.इस बार वजह है.चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता सूची में सामने आई चौंकाने वाली अनियमितताएँ और उस पर उठते विपक्ष के तीखे सवाल.राजद प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने जो आरोप लगाए हैं कि वो केवल प्रशासन की लापरवाही की ओर इशारा नहीं करता है बल्कि एक सुनियोजित साजिश की संभावना की ओर भी संकेत करता हैं.
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को अनुमंडल पदाधिकारी, पटना सदर द्वारा भेजा गया पत्र अब सियासी भूकंप का कारण बन गया है. सवाल यह है कि—क्या चुनाव आयोग सत्ता के इशारे पर लोकतंत्र से खिलवाड़ कर रहा है?
मतदाता सूची में गड़बड़ी या साजिश? तेजस्वी के नाम वाले पेज पर खुली पोल
राजद प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने स्पष्ट रूप से आरोप लगाया कि चुनाव आयोग द्वारा जारी प्रारूप में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का नाम जिस पृष्ठ पर दर्ज है.वहां कई संदिग्ध नाम शामिल हैं. तेजस्वी जिस मकान में रहते हैं. उसी मकान में मंटू कुमार नामक एक अन्य व्यक्ति का नाम भी दर्ज है. सवाल यह है कि एक ही पते पर दो अनजान व्यक्तियों के नाम कैसे हो सकते हैं?
यह केवल एक उदाहरण नहीं है. पूरे प्रारूप में ऐसी गड़बड़ियों की भरमार है. क्या यह सामान्य त्रुटि है. या फिर किसी खास एजेंडे के तहत की गई हेराफेरी?
एक ही घर में अलग-अलग उपनाम वाले वोटर—पारिवारिक संबंध या फर्जीवाड़ा?
चित्तरंजन गगन ने यह भी उजागर किया कि मकान संख्या 107 में एक ही पते पर अलग-अलग उपनामों वाले कई मतदाताओं के नाम हैं. यह अपने-आप में एक बड़ा सवाल खड़ा करता है,क्या एक ही परिवार के लोग अलग-अलग उपनामों का इस्तेमाल करते हैं?
यदि नहीं, तो फिर यह साफ संकेत है कि मतदाता सूची में फर्जी नाम जोड़े जा रहे हैं,जो चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता को नष्ट करने की कोशिश है.
तेजस्वी और INDIA गठबंधन के सवालों से क्यों भाग रहा आयोग?
राजद का दावा है कि तेजस्वी यादव सहित INDIA गठबंधन के नेताओं ने चुनाव आयोग से कई गंभीर सवाल पूछे और मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर स्पष्टीकरण की मांगा गया था.लेकिन आयोग ने जवाब देने की बजाय ध्यान भटकाने का रास्ता चुना.
यह रवैया सवाल खड़ा करता है,क्या चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर अब भरोसा किया जा सकता है? या वह भी सत्ताधारी दल के इशारों पर काम कर रहा है?
लोकतंत्र पर खतरा—जब निगरानी करने वाली संस्थाएं ही गिरवी हो जाएं!
जब देश की संवैधानिक संस्थाएं, जिन पर निष्पक्षता और पारदर्शिता की जिम्मेदारी होती है,सत्ता के दबाव में आकर काम करें, तो लोकतंत्र की जड़ें हिलने लगता हैं.
विपक्ष द्वारा उठाए गए सवाल जनता की आवाज़ हैं. और अगर उन सवालों को नजरअंदाज़ किया जाता है., तो यह केवल चुनाव प्रक्रिया ही नहीं,पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा बन सकता है.
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चुनाव आयोग को देना होगा जवाब—किसके कहने पर हुआ ये खेल?
राजद ने चुनाव आयोग से सीधा सवाल किया है—इन अनियमितताओं का जिम्मेदार कौन है? और क्या यह सब सिर्फ एक मानव त्रुटि है या फिर गहरी राजनीतिक साजिश?
अब जनता को जवाब चाहिए.विपक्ष ने आग दिया दिया है.अब चुनाव आयोग और प्रशासन को भी जवाबदेही निभाना होगा. वरना जनता यह मान लेगी कि चुनाव आयोग अब स्वतंत्र नहीं रहा. बल्कि सत्ता का उपकरण बन चुका है.
निष्कर्ष: लोकतंत्र को कमजोर मत समझिए, जनता सब देख रही है!
राजद द्वारा उठाए गए ये सवाल सिर्फ चुनावी रणनीति का हिस्सा नहीं हैं. बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा की पुकार हैं.अगर इन मुद्दों पर समय रहते कार्रवाई नहीं हुआ तो इसका असर न सिर्फ बिहार. बल्कि पूरे देश की चुनावी व्यवस्था पर पड़ेगा.
अब वक्त है कि चुनाव आयोग सामने आए जवाब दे,और यदि आवश्यक हो तो मतदाता सूची की निष्पक्ष जांच कराए, लोकतंत्र को बचाना है, तो हर संदेह का जवाब देना जरूरी है,

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