भाजपा-जदयू का दमन तंत्र: 24 साल पुराने केस में माले विधायक गिरफ्तार बिहार में उबाल

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Ajit Kumar

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अरवल से विधायक का. महानंद सिंह की गिरफ्तारी ने खोली सत्ता की काली राजनीति

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 4 अगस्त 2025: बिहार की राजनीति उस बिंदु पर पहुंच चुका है.जहां सत्ता अपने विरोधियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजकर खामोश करवाना चाहती है. भाकपा-माले विधायक का. महानंद सिंह की गिरफ्तारी ने इस दमनचक्र की पोल खोलकर रख दिया है.गिरफ्तारी उस मामले में हुई है जो 2001 में राजनीतिक प्रतिवाद के दौरान दर्ज किया गया था. यानी पूरे 24 साल पहले.

दो दशक पुराना केस, आज की साजिश: ये न्याय नहीं, राजनीतिक प्रतिशोध है

इस गिरफ्तारी के पीछे का केस साल 2001 का है.उस वक़्त झारखंड में भाकपा-माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य पर बर्बर पुलिसिया हमला हुआ था. इसके खिलाफ देशभर में प्रतिवाद हुआ. जिसमें अरवल में का. महानंद सिंह ने नेतृत्व किया था.उसी समय फर्जी केस दर्ज कर दिया गया था.जो आज—24 साल बाद—अचानक जिंदा कर दिया गया है.लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि,
इतने सालों तक ये केस कहां था? और अब क्यों उठाया गया?जवाब साफ है.यह गिरफ्तारी भाजपा-जदयू गठबंधन द्वारा भाकपा-माले जैसे सशक्त विपक्षी दल को कमजोर करने की साजिश है.

बच्चों की हत्या का विरोध करने पर मुकदमा, अपराधियों को रिहाई!

हाल ही में फुलवारीशरीफ में दो मासूम बच्चों को जिंदा जलाकर मार दिया गया था.और जब इस वीभत्स अपराध के खिलाफ भाकपा-माले विधायक गोपाल रविदास ने जनप्रदर्शन का नेतृत्व किया है.तब सरकार ने उन्हें मुकदमे में फंसा दिया है.

दूसरी ओर, बिहार सरकार उन हत्यारों, बलात्कारियों और सामूहिक नरसंहार के दोषियों को रिहा कर रहा है. जिनका इतिहास खून से सना हुआ है.
यह एक तरफा न्याय व्यवस्था और साफ-साफ फासीवादी प्रवृत्ति को दिखाता है.जहां आवाज उठाने वालों को जेल और हत्यारों को बेल मिल रहा है.

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माले का एलान: दमन चाहे जितना हो, जनता की आवाज नहीं दबेगी

भाकपा-माले ने इस पूरी कार्रवाई को.लोकतंत्र पर हमला करार दिया है.राज्य सचिव का. कुणाल ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि,

हम न दमन से डरते हैं. न जेल से. भाजपा-जदयू को सत्ता की लत है. पर जनता अब जाग चुकी है.

उन्होंने यह भी दोहराया कि यह सरकार अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है.जो जनता को दबाने की कोशिश कर रहा है.वही बहुत जल्द खुद जनता के गुस्से के नीचे दब जाएगा.

सत्ता की चालें बेनकाब: यह सिर्फ गिरफ्तारी नहीं, लोकतंत्र की हत्या है

का. महानंद सिंह की गिरफ्तारी एक सामान्य कानूनी प्रक्रिया नहीं है.यह लोकतंत्र की हत्या है.
यह गिरफ्तारी सत्ता के इशारों पर काम कर रहे प्रशासन की पोल खोलता है.जो अब पक्षपाती, दमनकारी और अलोकतांत्रिक रवैये पर उतर चुका है.

यह बिहार की राजनीति के लिए एक खतरनाक संकेत है. यदि आज इसे नहीं रोका गया.तो कल कोई भी जननेता, आंदोलनकारी या आम नागरिक सुरक्षित नहीं रहेगा.

निष्कर्ष: बिहार बदल रहा है, अब सत्ता को भी बदलना होगा

यह स्पष्ट है कि भाकपा-माले के विधायकों को टारगेट करना सिर्फ राजनीतिक बदले की कार्रवाई नहीं है. यह जनता की आवाज़ को कुचलने की एक कोशिश भी है.लेकिन बिहार की जनता इस बार चुप नहीं है.
भाजपा-जदयू के लिए यह सत्ता का आख़िरी दौर हो सकता है.
जिस दिन आम जनता ने एकजुट होकर जवाब दे दिया. उस दिन सत्ता के सिंहासन हिल जाएंगा.

क्या आप चाहते हैं कि बिहार में लोकतंत्र बचे? फिर आवाज़ उठाइए, क्योंकि चुप रहना अब गुनाह होगा.

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