उपराष्ट्रपति चुनाव में विचारधारा की जंग, एक न्यायमूर्ति बनाम एक कट्टरपंथी?

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Ajit Kumar

भारत
उपराष्ट्रपति चुनाव में विचारधारा की जंग, एक न्यायमूर्ति बनाम एक कट्टरपंथी?

दो विचारधाराओं के बीच निर्णायक टकराव, भाकपा(माले) ने दिया वक्तव्य

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना,19 अगस्त: भारत में उपराष्ट्रपति पद का चुनाव आमतौर पर शांत प्रक्रिया माना जाता है, लेकिन 2025 का उपराष्ट्रपति चुनाव इस परंपरा से बिल्कुल अलग है. यह सिर्फ एक संवैधानिक पद की नियुक्ति नहीं, बल्कि देश की आत्मा — संविधान, लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों — की रक्षा और सांस्कृतिक व वैचारिक वर्चस्व के बीच एक सीधी भिड़ंत बन गया है.

भाकपा(माले) ने अपने ताज़ा बयान में इस चुनाव को “लोकतंत्र बनाम कट्टरपंथ” की ऐतिहासिक लड़ाई करार दिया है. विपक्ष की ओर से एक संवेदनशील और साहसी न्यायमूर्ति मैदान में हैं. वहीं सत्ता पक्ष ने एक विचारधारा-समर्पित उम्मीदवार को आगे किया है.ऐसे में सवाल उठता है कि — क्या यह चुनाव एक संवैधानिक जिम्मेदारी है या लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा?

आइये, आगे जानते हैं विस्तार से कि क्यों यह चुनाव केवल एक पद की नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की दिशा तय करने वाली लड़ाई है…

भाकपा(माले) ने दिया वक्तव्य

भारत में आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव ने राजनीतिक हलकों में नई बहस छेड़ दिया है. जहां एक ओर लोकतंत्र की संस्थाओं की साख पर सवाल उठ रहा हैं. वहीं दूसरी ओर यह चुनाव दो विपरीत वैचारिक धाराओं के बीच सीधा मुकाबला बन गया है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन [भाकपा(माले)] ने इस संदर्भ में एक सशक्त वक्तव्य जारी किया है. जिसमें उसने उपराष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव को “संविधान की आत्मा बनाम सांस्कृतिक कट्टरता” की लड़ाई करार दिया है.

भाजपा और इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार आमने-सामने

9 सितंबर को होने वाले इस चुनाव में भाजपा की ओर से महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन मैदान में हैं. जबकि विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को अपना प्रत्याशी बनाया है.

भाकपा(माले) का कहना है कि यह चुनाव केवल एक संवैधानिक पद के लिए नहीं है.बल्कि यह उस दिशा को तय करेगा जिसमें देश का लोकतंत्र आगे बढ़ेगा.

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जस्टिस रेड्डी: संवैधानिक मूल्यों के पक्षधर

भाकपा(माले) ने न्यायमूर्ति रेड्डी को सामाजिक न्याय और नागरिक स्वतंत्रता का समर्थक बताया है. अपने कार्यकाल में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से कई ऐतिहासिक फैसले दिये है. जिनमें सलवा जुडूम को असंवैधानिक घोषित करना एक महत्वपूर्ण मिसाल रहा है . यह फैसला केवल एक सशस्त्र आंदोलन पर नहीं था. बल्कि इसने राज्य द्वारा प्रायोजित हिंसा, आदिवासियों के अधिकारों के उल्लंघन और कॉर्पोरेट-प्रेरित संसाधन दोहन के खिलाफ सख्त संदेश दिया है.

पार्टी का कहना है कि जस्टिस रेड्डी जैसे उम्मीदवार का समर्थन संविधान के मूल उद्देश्यों — सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय — को मज़बूती देता है.

सी. पी. राधाकृष्णन: आरएसएस की विचारधारा के प्रतिनिधि

वहीं भाजपा उम्मीदवार सी. पी. राधाकृष्णन को भाकपा(माले) ने महज आरएसएस से जुड़ाव के आधार पर चुनावी मैदान में उतरा प्रत्याशी बताया है. पार्टी का कहना है कि इस प्रकार की उम्मीदवारी लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है., जहां योग्यता और संवैधानिक प्रतिबद्धता के बजाय वैचारिक वफादारी को तरजीह दिया जा रहा है.

भाकपा(माले) ने यह भी टिप्पणी किया कि. चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में है. और ऐसे में लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा बचाए रखने के लिए यह चुनाव अहम है.

अंतरात्मा की आवाज़ पर वोट देने की अपील

भाकपा(माले) ने उपराष्ट्रपति चुनाव के निर्वाचक मंडल — जिसमें लोकसभा और राज्यसभा के सांसद शामिल हैं उनसे अपील किया है कि वे पार्टी लाइन से ऊपर उठकर,अंतरात्मा की आवाज़ पर वोट दें. विशेषकर एनडीए के घटक दलों से यह आग्रह किया गया है कि वे लोकतंत्र, न्याय और संविधान के पक्ष में खड़े हों.

निष्कर्ष: केवल चुनाव नहीं, एक लोकतांत्रिक चयन

यह उपराष्ट्रपति चुनाव केवल सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीतिक मुकाबला नहीं है. बल्कि यह उस भारत की तस्वीर को आकार देगा, जिसमें या तो संवैधानिक मूल्यों को मजबूती मिलेगी, या फिर सांस्कृतिक व वैचारिक वर्चस्व को बढ़ावा मिलेगा. भाकपा(माले) का यह बयान देश की राजनीति में एक चेतावनी और चुनौती दोनों के रूप में देखा जा रहा है.

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