द वायर पर मुकदमा: सवाल पूछना क्या अब गुनाह है?

| BY

Ajit Kumar

भारतबिहार
द वायर पर मुकदमा: सवाल पूछना क्या अब गुनाह है?

लोकतंत्र बनाम सत्ता, द वायर केस में सच्चाई की सजा!

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 20 अगस्त 2025 – भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमला कोई नई बात नहीं रही. लेकिन असम पुलिस द्वारा देश के दो वरिष्ठ पत्रकारों सिद्धार्थ वर्धराजन और करण थापर, पर देशद्रोह जैसे संगीन आरोपों के तहत समन भेजना.एक खतरनाक मोड़ की ओर इशारा करता है. इन पत्रकारों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 के तहत कार्रवाई, लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है.

पत्रकारिता पर हमला लोकतंत्र पर हमला है: भाकपा (माले)

पत्रकारिता देशद्रोह नहीं है – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने असम पुलिस द्वारा वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वर्धराजन और करण थापर के खिलाफ देशद्रोह जैसे गंभीर आरोपों के तहत की गई कार्रवाई की तीखी आलोचना किया है.

भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तंभ – मीडिया – पर लगातार हो रहे हमले आज एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका हैं. खासकर जब देश के प्रतिष्ठित पत्रकारों को बिना स्पष्ट आरोपों के निशाना बनाया जाये तो यह केवल अभिव्यक्ति की आज़ादी पर नहीं बल्कि संविधानिक मूल्यों पर भी कुठाराघात होता है.

भाकपा (माले) ने इसे भाजपा सरकार की ,सोची-समझी साजिश करार देते हुए कहा है कि यह सिर्फ पत्रकारों को डराने और मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने की कोशिश है.हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वर्धराजन और करण थापर को IPC की धारा 152 (नए स्वरूप में) के तहत गुवाहाटी क्राइम ब्रांच में पेश होने के लिए समन भेजा गया है लेकिन न तो कोई स्पष्ट शिकायत बताया गया और न ही आरोपों की जानकारी दी गई.

यह सब तब हुआ जब 12 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने द वायर की याचिका पर संज्ञान लेते हुए असम पुलिस को ज़बरदस्ती की किसी भी कार्रवाई से रोका था. उसी दिन नया समन जारी कर देना यह दर्शाता है कि राज्य सरकार और पुलिस किस तरह से न्यायपालिका की अवमानना करने पर उतारू हैं.

आइए, आगे जानते हैं कि पूरा मामला क्या है, क्यों इसे लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी कहा जा रहा है.और किस तरह असम को अभिव्यक्ति की आज़ादी के विरुद्ध एक प्रयोगशाला बनाया जा रहा है…

प्रेस की आज़ादी पर हमला या राजनीतिक रणनीति?

सवाल उठता है कि – क्या सवाल पूछना अब गुनाह है? क्या सत्ताधारी पार्टी की नीतियों की आलोचना करना देशद्रोह हो गया है? असम पुलिस की यह कार्रवाई न केवल मीडिया को डराने की कोशिश है. बल्कि यह संदेश भी देता है कि अगर आप सत्ता के खिलाफ कलम उठाएंगे. तो आप पर देशद्रोह का ठप्पा लगाया जा सकता है.

सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि पत्रकारों को भेजे गए समन में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि शिकायत किस बात को लेकर है या आरोप क्या हैं. यह कानूनी प्रक्रिया का मज़ाक नहीं तो और क्या है?

ये भी पढ़े :130वां संशोधन: संविधान का संकटकाल?लोकतंत्र पर गहराता संकट!
ये भी पढ़े :राहुल गांधी ने पिता राजीव गांधी के सपनों को बताया अपने जीवन का उद्देश्य

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी अनदेखी

12 अगस्त 2025 को जब सुप्रीम कोर्ट ने द वायर की याचिका पर संज्ञान लेते हुए असम पुलिस को “किसी भी ज़बरदस्ती की कार्रवाई” से रोका. उसी दिन गुवाहाटी क्राइम ब्रांच की ओर से नया समन भेजा गया. यह सिर्फ न्यायपालिका की अवमानना नहीं है, बल्कि उस अहंकारी रवैये को भी दर्शाता है जो सत्ता के नशे में लोकतांत्रिक संस्थाओं को भी चुनौती देने से पीछे नहीं हटता.

असम: एक प्रयोगशाला बनता राज्य

द वायर के पत्रकारों के खिलाफ बढ़ते हमले केवल एक मीडिया संस्थान को दबाने की कोशिश नहीं हैं – ये उस व्यापक दमनचक्र का हिस्सा हैं जिसमें असम को एक प्रयोगशाला बना दिया गया है.आदिवासी समुदायों और बंगाली भाषी प्रवासियों को बेदखल किया जा रहा है. ज़मीनें कॉरपोरेट कंपनियों को सौंपी जा रही हैं. और जो भी आवाज़ उठाता है. उसे ‘देशद्रोही’ करार दिया जा रहा है.

इन विस्थापनों को लागू करने के लिए पुलिस बल का क्रूर उपयोग किया जा रहा है.और साथ ही यह नैरेटिव फैलाया जा रहा है कि हर विरोध ‘राष्ट्र विरोध’ है.

लोकतंत्र की रक्षा के लिए खड़े होना होगा

आज पत्रकारों पर हमले हैं, कल ये हमले छात्रों, शिक्षकों, कलाकारों और आम नागरिकों पर हो सकता हैं.लोकतंत्र की आत्मा स्वतंत्र मीडिया से ही जीवित रहती है.अगर पत्रकारों को चुप करा दिया गया तो जनता की आवाज़ भी दम तोड़ देगी.

अब वक्त आ गया है कि हम सब मिलकर इस उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठाये,पत्रकारिता देशद्रोह नहीं है – यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि लोकतंत्र की पहली शर्त है.

Trending news

Leave a Comment