भागलपुर में अडानी पावर प्लांट: किसानों के साथ ‘डबल ठगी’ का आरोप

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Kumar Ranjit

बिहार
भागलपुर अडानी पावर प्लांट: किसानों के साथ डबल ठगी का आरोप, राज्यव्यापी विरोध

माले-किसान महासभा का राज्यव्यापी प्रदर्शन 22 सितंबर को

तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 21 सितंबर 2025 –भागलपुर जिले के पीरपैती प्रखंड में अडानी समूह को दिए गए पावर प्लांट प्रोजेक्ट पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. भाकपा (माले) और अखिल भारतीय किसान महासभा की संयुक्त जांच टीम ने दावा किया है कि इस परियोजना के नाम पर किसानों को ठगा जा रहा है और बिहार सरकार को सालाना करीब 5000 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ेगा.

माले विधायक रामबली सिंह यादव, किसान महासभा के नेता शिवसागर शर्मा, राजेंद्र पटेल सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने पटना में संवाददाता सम्मेलन कर जांच रिपोर्ट पेश की. इसमें कहा गया है कि सरकार ने अडानी समूह को 1050 एकड़ उपजाऊ जमीन मात्र 1 रुपये प्रति वर्ष के हिसाब से 30 साल के लिए लीज पर दी है और बिजली खरीदने का करार 6 रुपये प्रति यूनिट की दर से किया गया है.

जांच टीम में सांसद का. सुदामा प्रसाद, माले नेता महेश यादव, किसान नेता रणधीर यादव, विंदेश्वरी मंडल, रणवीर कुशवाहा और संजीव कुमार भी शामिल थे. उन्होंने 18 सितंबर को पूरे इलाके का दौरा कर किसानों से बातचीत की थी.

‘गोड्डा मॉडल’ की पुनरावृत्ति?

नेताओं ने आरोप लगाया कि यह वही धोखा है जो झारखंड के गोड्डा पावर प्लांट में किया गया था. वहां भी सस्ती बिजली का वादा किया गया था, लेकिन हकीकत इसके उलट निकली. अब वही स्कीम बिहार में लागू कर राज्य को आर्थिक और पर्यावरणीय संकट में धकेला जा रहा है.

किसानों की जमीन और पेड़ों पर खतरा

रिपोर्ट के मुताबिक, इस परियोजना के लिए जिस जमीन पर कब्जा किया जा रहा है, वहां करीब 10 लाख से अधिक पेड़ हैं—आम, अमरूद, लीची, शीशम, सागवान और महोगनी जैसी प्रजातियों के. इसके अलावा खेतों में गन्ने की फसल खड़ी है.

यह जमीन 7 पंचायतों के 76 गांवों में फैली हुई है और लगभग 1200 किसानों की आजीविका इससे जुड़ी है. इनमें से अधिकांश छोटे और गरीब किसान हैं, जो दलित, आदिवासी, मुस्लिम और पिछड़े समुदायों से आते हैं.

किसानों का दर्द: मुआवजा अधूरा, वादे झूठे

2014 में एनटीपीसी परियोजना के नाम पर जमीन अधिग्रहित हुई थी. किसानों से वादा था कि मुआवजा, नौकरी और मुफ्त बिजली मिलेगी.

11 साल बाद भी अधिकांश किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिला. जिनको मिला, वह बेहद कम था.

दस्तावेज और भुगतान के लिए किसानों को अब तक दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं.

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धमकी और दमन का माहौल

शिलान्यास से पहले ही भाजपा विधायक ललन पासवान पर किसानों को धमकाने का आरोप लगा.

स्थानीय मुखिया दीपक सिंह को फर्जी मुकदमे में जेल भेजा गया.

प्रशासन और भाजपा कार्यकर्ताओं पर आरोप है कि उन्होंने गांवों में डर का माहौल बनाया और किसानों को धमकाया कि विरोध करने पर जेल भेज दिया जाएगा.

जांच टीम के सदस्यों को भी “नक्सली” कहकर डराने की कोशिश की गई.

रोजगार का झांसा और हकीकत

सरकार का दावा है कि प्लांट के निर्माण के दौरान 10-12 हजार मजदूरों को और संचालन काल में 3 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा.
लेकिन नेताओं का कहना है कि यह सिर्फ ठेका और अस्थायी श्रम होगा, और स्थानीय किसानों व युवाओं को इसमें कोई ठोस लाभ नहीं मिलेगा.

शिक्षा बनाम कॉरपोरेट की प्राथमिकता

एक तरफ बिहार सरकार जमीन के अभाव का हवाला देकर 2600 स्कूलों को मर्ज कर चुकी है, वहीं दूसरी ओर अडानी समूह को मात्र 1 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से हजारों एकड़ जमीन दे रही है.
माले नेताओं का कहना है कि अगर जमीन है, तो पहले शिक्षा और स्वास्थ्य संस्थान के लिए उसका इस्तेमाल होना चाहिए, न कि कॉरपोरेट घरानों को सौंपने के लिए.

किसानों की मुख्य मांगें

उचित मुआवजा – जिन किसानों को भुगतान नहीं मिला है, उन्हें तुरंत मुआवजा दिया जाए.

पेड़ों व बाग-बगिचों का मूल्यांकन कर भुगतान किया जाए.

सरकारी वादे पूरे हों – नौकरी, मुफ्त बिजली और पर्यावरणीय सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.

भूमि अधिग्रहण पर रोक – जबरन जमीन कब्जाने की प्रक्रिया बंद की जाए और किसानों को जमीन वापस दी जाए.

राज्यव्यापी प्रतिवाद

भाकपा (माले) और किसान महासभा ने घोषणा की है कि इस ‘डबल ठगी’ के खिलाफ 22 सितंबर को बिहारभर में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.
नेताओं ने कहा कि बिहार की जनता गोड्डा की तरह भागलपुर को भी कॉरपोरेट लूट का केंद्र नहीं बनने देगी.

यह मुद्दा अब सिर्फ किसानों का नहीं, बल्कि बिहार की आने वाली पीढ़ियों और राज्य की आर्थिक सुरक्षा से जुड़ा हुआ है.

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