चुनावी निष्पक्षता पर उठे सवाल, माले ने कहा – प्रशासन बना एनडीए का हथियार
तीसरा पक्ष ब्यूरो पटना, 5 नवंबर 2025 — बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण से ठीक पहले भोरे विधानसभा क्षेत्र (गोपलगंज) में एक बड़ी राजनीतिक हलचल देखने को मिली है.माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने गंभीर आरोप लगाया है कि जनता दल (यूनाइटेड) के प्रत्याशी और मंत्री सुनील कुमार के इशारे पर प्रशासन ने महागठबंधन समर्थित माले प्रत्याशी के चुनाव कार्यालयों पर छापेमारी किया है.
माले के राज्य सचिव कॉ. कुणाल ने इस कार्रवाई को लोकतंत्र पर हमला बताते हुए कहा कि यह प्रशासनिक शक्ति का सत्ता-पक्षीय दुरुपयोग है। उन्होंने आरोप लगाया कि “सुनील कुमार अपनी आसन्न हार को भांप चुके हैं, इसलिए अब चुनाव जीतने के लिए पुलिस-प्रशासन का सहारा ले रहे हैं.
चुनाव कार्यालयों पर अचानक छापेमारी, ₹2 लाख जब्त
कुणाल ने बताया कि बुधवार की शाम प्रशासन की एक टीम ने भोरे के दो चुनाव कार्यालयों पर बिना किसी पूर्व सूचना के छापेमारी किया है .प्रशासन ने यह कार्रवाई नकदी होने के संदेह में की.
हालाँकि, माले नेताओं के अनुसार, वहां केवल ₹2,00,000 की राशि थी, जो पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा 10-10 रुपये के सहयोग अभियान के तहत एकत्रित की गई थी.इसके बावजूद प्रशासन ने कार्यालय सील कर दिया और राशि जब्त कर ली.
कुणाल ने कहा कि,
यह पैसा जनता के छोटे-छोटे योगदान से जुटाया गया था. इसकी पूरी जानकारी दी गई, फिर भी जबरन सीलिंग कर दी गई. यह कदम जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों पर प्रहार है.
सुनील कुमार प्रशासन के सहारे चुनाव जीतना चाहते हैं
माले ने आरोप लगाया कि सुनील कुमार पहले भी इस तरह के हथकंडे अपनाते रहे हैं.
कुणाल ने कहा है कि,
पिछली बार सुनील कुमार महज चार सौ वोटों की हेराफेरी से जीत पाए थे. इस बार उन्हें जनता का मूड पता है, इसलिए वे डरे हुए हैं और प्रशासन को ढाल बना लिया है.
उन्होंने आगे कहा कि यह प्रशासनिक दबाव जनता के मनोबल को कमजोर नहीं कर पाएगा.
भोरे की जनता सजग है, हर वोट का हिसाब इस बार लिया जाएगा.महागठबंधन की जीत रिकॉर्ड मतों से होगी — उन्होंने दावा किया.
भाजपा-जदयू उम्मीदवारों पर कार्रवाई क्यों नहीं?
माले ने इस मामले में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए हैं. कुणाल ने पूछा:
जब भाजपा और जदयू उम्मीदवारों द्वारा खुलेआम धनबल और प्रचार–खर्च की होड़ चल रही है, तब प्रशासन की कार्रवाई केवल विपक्ष पर ही क्यों?
उन्होंने कहा कि पूरे पटना, गोपालगंज और आसपास के जिलों में बड़े-बड़े होर्डिंग्स, प्रचार वाहनों और महंगे रोड शो पर लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती.
क्या आयोग की कार्रवाई सिर्फ महागठबंधन के लिए आरक्षित है? — उन्होंने तंज कसा.
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चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर खतरा
माले ने कहा कि इस तरह की पक्षपातपूर्ण कार्रवाइयों से चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं.कुणाल ने कहा कि यदि आयोग तुरंत दखल नहीं देता, तो जनता के मन में यह धारणा बनेगी कि प्रशासन एनडीए के दबाव में काम कर रहा है.
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि ऐसी कार्रवाइयाँ जारी रहीं, तो माले राज्यभर में लोकतांत्रिक प्रतिरोध आंदोलन शुरू करेगी.
निष्पक्ष चुनाव की माँग
माले ने चुनाव आयोग से माँग की है कि,
भोरे विधानसभा में हुई छापेमारी की उच्चस्तरीय जाँच कराई जाए.
जब्त की गई राशि को तत्काल वापस किया जाए.
प्रशासन को निष्पक्ष रहने का सख्त निर्देश दिया जाए.
सभी राजनीतिक दलों को समान प्रचार-अवसर दिया जाए.
कुणाल ने कहा,
हम किसी विशेष सुविधा की मांग नहीं कर रहे, सिर्फ बराबरी का मौका चाहते हैं। लोकतंत्र तभी बचा रहेगा जब सबके लिए एक समान नियम लागू होंगे.
जनता का मूड: बदलाव की ओर इशारा
भोरे विधानसभा क्षेत्र में इस घटना के बाद से राजनीतिक माहौल गरम है. स्थानीय नागरिकों के अनुसार,सरकारी ताकत का उपयोग वोटिंग से पहले माहौल बनाने में किया जा रहा है.
हालाँकि, कई मतदाता यह भी कहते हैं कि इस बार लोग मुद्दों पर वोट करेंगे, न कि डर या दबाव में.
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, यह घटना पहले चरण के मतदान (6 नवंबर) से ठीक पहले राजनीतिक माहौल को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकती है.
निष्कर्ष
भोरे की यह घटना बिहार की राजनीति में प्रशासनिक निष्पक्षता बनाम सत्ता का दुरुपयोग जैसी पुरानी बहस को फिर से जगा चुकी है.
जहाँ एक ओर माले इसे जनता की आवाज़ दबाने की कोशिश बता रही है, वहीं सत्ता पक्ष इसे “नियमित जांच कार्रवाई” करार दे सकता है.
लेकिन एक बात तय है ,
बिहार का चुनाव अब सिर्फ वोटों की लड़ाई नहीं, बल्कि लोकतंत्र की साख की परीक्षा बन चुका है.

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